सादर अभिवादन
फूलों से लदे इन बाग़ों की
और रंग बिरंगे फूलों की
हर कोई सिफ़त बतलाता है
हर कोई ख़ुशी जतलाता है
ख़ुशबू है वहाँ, रंगत है वहाँ
और पत्तों की संगत है वहाँ
जी करता है कुछ ले जाएं
और घर को अपने महकाएं
बेवकूफ
टिंग-टॉंग, टिंग-टॉंग, टिंग-टॉंग। “कौन है?” मैंने शॉल हटाते हुए पूछा। “पोस्टमैन” उधर से आवाज आयी। “आती हूँ” कहते हुए मैं चप्पलें पैर में फँसाने लगी। फँसाने इसलिए कि चिट्ठी लेकर मेरा फिर से सोने का इरादा था। वैसे भी छुट्टियाँ कम ही मिलती हैं उस पर छुट्टी के दिन सर्दियों की धूप अपने रेशमी एहसास के साथ पूरे आँगन में पसरी हो, तो कौन बेवकूफ होगा जो ऐसे दुर्लभ मौके को जाने देगा ? खैर अलसाते हुए मैं दरवाजे तक पहुँची । पोस्टमैन ने पीले लिफाफे में एक बड़ा सा कार्ड पकड़ा दिया।
कल फिर
वंदन




सुप्रभात भाई साहब 💐
जवाब देंहटाएंसराहनीय संकलन।
रचना को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
समय मिलते ही संकलन अवश्य पढूंगी 🙏
सादर
बहुत सुंदर रचनाओं से सुसज्जित अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सुंदर प्रस्तुति ! 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु ह्रदय से आभार!
जवाब देंहटाएंसभी को आभार
जवाब देंहटाएंवंदन
धन्यवाद दिग्विजय जी, पोस्ट को अपने इस संकलन में शामिल करने के लिए आभार
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