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बुधवार, 6 अगस्त 2025

4472..हर दीवार, हर कोना एक किस्सा ..

 ।।प्रातःवंदन।।

एक बार और जाल फेंक रे मछेरे

जाने किस मछली में बंधन की चाह हो !

सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है

हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है

रेत के घरौंदों में सीप के बसेरे

इस अँधेर में कैसे नेह का निबाह हो !

 बुद्धिनाथ मिश्रा

सच है कि परिस्थितियाँ हमेशा अनुकूल नहीं रहती है इसलिए हिम्मत बनाए रखे जिंदगी से निबाह के लिए..(प्राकृतिक आपदा उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली में बादल फटने की और तबाही का मंजर ..सत्य है कि प्रकृतिक की लीला अपरंपार है)

संजीदा कब तक, कितना हुआ जाय,

ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जिया जाय।

​बहुत बड़े सपने देखने वाले भी चले जाते हैं

सपनों के पीछे कहाँ क्यों कर भागा जाय।

✨️

एक ताज़ा ग़ज़ल -सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे


साज साजिन्दे सभी महफ़िल में घबराने लगे 

सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे 

भूल जाएगा ज़माना दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल 

अब नई पीठी को शापिंग माल ही भाने लगे ..

✨️

एक पुरानी रेसिपी, एक नई होली और कटिहार की धूप...


घर लौटने का सुख हमेशा ही कुछ खास होता है। ये वो जगह होती है, जहाँ हर दीवार, हर कोना एक किस्सा कहता है। कुछ जगहें सिर्फ जगह नहीं होतीं — वो वक़्त का ठहराव होती हैं, एक एहसास, जो हर बार लौटने पर हमें थोड़ा और खुद से मिलवाता है। मेरे लिए कटिहार वैसी ही जगह है।  

✨️

चांद को पानी में...

मानो चांद को पानी में उबाला जा रहा है 

जैसे समंदर को लोटे में डाला जा रहा है

ये इश्क़ कितना मुश्किल काम है यारों

सुई की नोक से हाथी निकाला जा रहा है..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत सुंदर अंक। साधुवाद!

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  2. बहुत सुंदर रचनाओ से सुसज्जित अंक 🙏

    गुनाहों पर पर्दा डाला जा रहा है
    सच को बेमतलब दुनियाँ से निकला जा रहा है
    आम आदमी भटक रहा है रास्तों पे
    बेईमानों को z+ सुरक्षा के साथ पाला जा रहा है 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. शानदार संकलन, सभी कलमकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. आपका हृदय से आभार. विलम्ब से देख पाया. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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