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गुरुवार, 28 अगस्त 2025

4494...मंगल मूर्ति मोरया, बुद्धि हमें दीजिए।

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच रचनाएँ-

दोहे "श्री गणेश चतुर्थी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

हुआ चतुर्थी से शुरू, गणपति जी का पर्व।

हर्षित होते दस दिवस, सुर-नर, मुनि गन्धर्व।।

--

वन्दन-पूजन से किया, सबने विदा गणेश।

विघ्नविनाशक आप ही, सबके हो प्राणेश।।

*****

जै मयूरेश गणेश नमन वंदन : कविता रावत

तुम हो सत्, असत्, व्यक्त अव्यक्तरूप सर्वशक्ति के स्वामी
तुमको भजते इन्द्र देवगण, तुम हो नाना अस्त्र-शस्त्रधारी
तुम सम्पूर्ण विद्या के प्रवक्ता, हो सर्वव्यापक सर्वरूपधारी
जै मयूरेश गणेश नमन वंदन, हो तुम अन्तर्यामी विघ्नहारी

*****

गणेश वंदना

विघ्न विनाशक आप,स्मरण से मिटें शाप।,

मंगल मूर्ति मोरया, बुद्धि हमें दीजिए।

मूढ़ मति लोभी हम,भक्ति भाव नहीं दम,

क्षमा मूर्ति पाप हर,शरण ले लीजिए।

***** 

अब जो हुआ

अब जो हुआ, अब न वो फिर होगा....

 पर बिंब हो उठी हैं, समस्त असंवेदना,

सुसुप्त सी हो चली, चेतना,

सहेजे, कौन भला,

अब जो ढल रहा, ये पल न रुकेगा!

*****

एक कहानी जो बचपन में सुनी थी

तो उसके भाई ने पूछा कि क्या बात है? तो लड़की ने बताया कि एक राज्य का राजा अंधे लोगों को खीर खिलाता था। लेकिन दूध में साँप के ज़हर डालने से 100 अंधे लोग मर गए। अब धर्मराज समझ नहीं पा रहे हैं कि अंधे लोगों की मृत्यु का पाप राजा पर हो, साँप पर या उस रसोइए पर जिसने दूध खुला छोड़ दिया।

राजा भी सुन रहा था। राजा को उससे जुड़ी कुछ बातें सुनकर दिलचस्पी हुई और उन्होंने लड़की से पूछा कि फिर क्या फैसला हुआ?

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात ....
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ...
    आ. Kavita Rawat जी की रचना अत्यंग ही सराहनीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात, बहुत शानदार अंक 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. गणेश चतुर्थी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं

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