शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरमं जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आइए पढ़ते हैं गुरुवारीय अंक की पाँच रचनाएँ-
सिद्ध होगी तब सच्ची स्वतंत्रता
जब हिंदुस्तान का हर एक बच्चा
सङकों पर बेचता ना भटकेगा
गर्व से स्कूल में फहराएगा तिरंगा!
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ईश्वर,
अपने विवेक का इस्तेमाल करना,
अपनी स्तुति पर मत रीझना,
प्रार्थना से मत पिघलना,
ज़रूरत से थोड़ा कम देना,
बस उतना ही
कि मैं छीन न सकूँ
किसी और का हक़,
बना रहूँ मनुष्य।
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हरियाली से भरे झुरमुट
और पंछियों के कलरव में
एक सुंदर कविता से आगाज़ हुआ
हर दिल में सुकून जागा
और कुदरत के साथ
होने का अहसास हुआ!
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वन सघनों की हरियाली,
जितना मन बहलाती है,
गाड़ गदनों की कल-कल छल-छल,
जितना मन को भाती हैं,
मर्म इनके जानने हैं तो
उकाळ उंदार नापना होता।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
वन सघनों की हरियाली,
जवाब देंहटाएंजितना मन बहलाती है,
गाड़ गदनों की कल-कल छल-छल,
जितना मन को भाती हैं,
सुंदर अंक
आभार
सादर
आदरणीय सर, सादर प्रणाम। इतनी सुन्दर और सामयिक प्रस्तुति पढ़ कर आनंदित हूं। "ईश्वर से" यही प्रार्थना है कि" झंडा ऊंचा रहे हमारा" और धर्म के नाम पर संबंधों में कभी "दरार" न आए। हम सब सदैव " प्रकृति के सानिध्य में" "पहाड़ गीत" का आनंद लेते रहें। इस भावपूर्ण और प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार एवं पुनः प्रणाम।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सुंदर रचनाओं का संयोजन, टिप्पणियाँ भी शानदार हैं, 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार रवींद्र जी!
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक. आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन रवींद्र जी..कहीं प्रकृति की खुली हवा में बसने की बात...कहीं रिश्तों को पुख़्ता करने की कोशिश..स्वतंत्रता के विभिन्न पहलू, स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ! रचना सम्मिलित करने के लिए और बेहतरीन पढ़ने का सामान जुटाने के लिए हार्दिक आभार। सभी को शुभकामनाएं..वंदे मातरम..
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