न जागृत हो,जो हमें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त
करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है।
वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं।"
अभी बादलों के बीच में
कोई समझौता हुआ है
कहां पर हुआ है
पन्ने भरें हैं लिखे हुए से
पढ़ दी गई हैं किताबें सारी
फिर से लिखने को कहा है
किसने कहा है किससे कहा है
किसका लिखना अपना सा हुआ है
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निखर
जाए, न वो कुआं ही रहा, न वो प्रतिबिंब,
न वो चौबारा जहाँ से कभी उठती
थी सांझे चूल्हों की महक, न
जाने कितने हिस्सों में
बँट चुका समुदाय
हमारा,
मैं उनके घर कभी भी रहने आ सकता हूं।पर ऐसा हो नहीं पाया।हाँ ये जरूर है कि उनसे मेरा बराबर मिलना होता रहा।वो कभी आकाशवाणी में या कभी हमारे आफिस के आस-पास आते तो बिना मुझसे मिले न जाते।और मौक़ा मिलने पर मैं भी भाई के घर पहुँच जाता।पर शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि भोजन किये बिना उन्होंने मुझे वापस आने दिया हो।

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जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे,
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले,
हममें गति और शक्ति न पैदा हो,
हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो,
जो हमें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त
करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे,
वह हमारे लिए बेकार है।
व्वाहहहह
शानदार सोच
सुंदर अंक आभार
वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं।"
Shukriya.
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी मेरे ब्लाग पोस्ट का लिंक यहाँ साझा करने के लिए 🙏🙏
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