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गुरुवार, 7 अगस्त 2025

4473...पर्वत तो यूं बिखर रहे, ज्यों ताश के पत्ते...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.टी.एस.दराल जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए (पाँच+एक अतिरिक्त) पसंदीदा रचनाएँ-

दोहे...

पर्वत तो यूं बिखर रहे, ज्यों ताश के पत्ते,

पेड़ काटकर बन रहे ,रिजॉर्ट्स बहुमंजिले।

जब पाप बढ़े जगत में, कुदरत करती न्याय,

आजकल तो सावन में, शेर भी घास ख़ाय।

*****

दुनिया तो बस इक दर्पण है

डर लगता है, गर्हित  दुनिया

हम ही भीतर कहते आये,

अपने ही हाथों क़िस्मत में

दुख के जंगल बोते आये!

*****

 अदृश्य हरकारा--

शैल हो या अस्थि हर एक चीज़

का क्षरण है निश्चित। ये जान
कर भी हम दौड़े जाते
हैं कि क्षितिज
रेखा का
कोई
अस्तित्व नहीं, आँख लगते ही जगा जाता
है अदृश्य हरकारा,

*****

अब प्रकृति भी ज़हर उगलने लगी है..

चिड़ियों की चहकें सहमी हैं,

पेड़ लगे हैं जैसे रोने।

धरती की धड़कन डगमग सी,

लगी है फूलों की लाली खोने।

*****

आख़िरी इच्छा (लघुकथा)

थाली देखकर दादा की आंखें चमकने लगी। पूरीखीरगोभी आलू मटर की सब्जी,बैंगन भाजा रसगुल्ला। दादी ने कहा ," पहले कमरा बंद करोकोई देख न ले। फिर चुपचाप खा लोऔर खबरदार जो थाली में एक निवाला भी छोड़ा।" दादा की नज़र थाली से नहीं हट रहीयाद नहीं आ रहा कब ऐसे भोजन के दर्शन हुए थे। दादी से बोलेज़रा मेरे दांत ले आओवहीं मेज पर रखे हैं। रात में निकाल कर रखे थे"। दादी दांत खोजने लगीं। दांत कहीं नहीं मिले। पूरा कमरा छान लिया। इधर दादा से खाने का इंतजार नहीं किया जा रहाउधर दांत नहीं मिल रहेखाएं तो खाएं कैसे! किसी के आ जाने का डर अलग से।

 *****

उत्तरकाशी का धराली.. सब कुछ अपनी गोद में समेट कर ले गई मां गंगा

उत्तरकाशी का धराली बता रहा है क‍ि चट्टानों पर बने जल प्रवाह के निशान चेतावनी देते हैं, '...बस यहीं तक, इसके आगे नहीं!" सदियों से हिन्दू समाज, प्रकृति पूजक समाज प्रकृति मां की चेतावनी को समझता आया। मर्यादा में रहा।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर अंक
    बहुत बहुत आभार महोदय🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रकृति की विनाश लीला देखकर मन व्यथित होता है, उन लोगों की बात सोचकर भी जिनका सब कुछ एक झटके में चला गया, जीवन की क्षण भंगुरता पर यक़ीन होता है, फिर भी, एक जीवन ऐसा भी है जो शाश्वत है, वह फिर लौट कर आयेगा और अनंत काल से चल रही यह श्रृंखला ऐसे ही चलती रहेगी। सुंदर प्रस्तुति, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर, सार्थक संकलन। शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद रवींद्र जी, हमें इस शानदार मंच पर स्थान देने के ल‍िए आभार

    जवाब देंहटाएं

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