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सोमवार, 11 अगस्त 2025

4477 ..एक बेचैन शब्द का सफर, चल से चुल तक

 सादर अभिवादन



एक बेचैन शब्द का सफर
चल से चुल तक
प्राचीन 'चल्' धातु
अमूर्त गति से मूर्त बेचैनी तक
'चुलबुलाहट' का चुल
पंजाबी स्रोत के कोशगत प्रमाण
उर्दू की गवाही
खुजली से  ख़ब्त तक
पंजाबी से मुम्बइया हिन्दी तक
और चलते चलते...

और भी है... वो भी आएगा पर शैनेः शैनेः




छाया निहित माया, स्वप्न के अंदर स्वप्न का
उद्गम, ठूँठ के जड़ से उभरे जीवन वृक्ष,
ढूंढे आकाश पथ में आलोक उत्स,
वक़्त का हिंडोला घूमे निरंतर,
दर्पण के भीतर हज़ार
दर्पण, कौन प्रकृत
कौन भरम,
स्वप्न के
अंदर स्वप्न का उद्गम ।




गुंजन, कंपन, सिहरन, तड़पन भरा वो आंगन,
सुने क्षण में, विरह भरा वो आलिंगन,
कितना कुछ, मन भर लाया!





क़द, रुतबे, या दौलत से
लोग छोटे नहीं होते,
छोटे लोग
दिल के छोटे होते हैं।

उनकी हर रेवड़ी
उनके मुँह तक पहुँचती है
उनकी हर दौड़
उनके महल पर रुकती है।





ख़ुदा तो प्रेम को मैंने ही बनाया पहले,
में किसका दोष निकालूँ किसे लानत भेजूं.

मेरा तो दिल भी मेरे पास नहीं रहता है,
में किसके पास कहो इसकी शिकायत भेजूं.






सावन पावन मास , बहन है पीहर आई ।
राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।।

टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती ।
देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।।






हां बकवास करने से
तुझे कोई नहीं रोक रहा है ‘उलूक’
वो भी शशर्त वैधानिक चेतावनी के साथ
कि पढ़ने के बाद कोई ये नहीं कह बैठे
समझ में आ गया है |
****
आजकल लोग लिख रहे हैं
जैसै भी हो, रचनाएं बढ़ रही है
ये टेम्पो कायम रहे
******

आज बस
सादर वंदन

5 टिप्‍पणियां:

  1. आभार यशोदा जी | आजकल लोग पढ़ना भी शुरू कर दें तो बल्ले बल्ले हो जाए :)

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब प्रस्तुति सुन्दर रचनाओं से सजी...
    मेरी रचना शामिल करने हेतु हृदयतल से आभार सखी !

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार मेरी ग़ज़ल के लिए इस सुंदर हलचल में

    जवाब देंहटाएं

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