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सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

4409 ...गए मेहमान बाहर, चट हुए बादाम सारे.

 


सादर अभिवादन


सोमवार
फरवरी अवसान निकट है

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इसी पल में निहित है सभी ऋतुओं का आनंद
उल्लसित हृदय के लिए हर दिन रहे मधुमास,

सीमित विकल्प हैं फिर भी गुज़रना है लाज़िम
जीवन के सफ़र में हमेशा नहीं खिलते पलाश.







हंसते गाते बचपन बीता,
बीती करते काम, जवानी
अब निश्चिंत,जी रहे जीवन ,
आया बुढ़ापा, उम्र सुहानी
बाकी ,कुछ ही दिन जीवन के
उम्र जनित, पीड़ाएं सहते
लिखा नियति का भोग रहे हैं
फिर भी हम मुस्कुराते रहते
जैसे भी कट जाए ,काट लो ,
भेद ये गहरा ,बात जरा सी
जैसे तैसे, एक-एक करके
कटे उम्र के बरस तिर्यासी





भावों की माला रच
ताल में पिरोता है,
अर्पित कर चरणों में
अश्रु में भिगोता है !

जाने क्या पाएगा
गीत रोज़ गाता है,
तारों से बात करे
चंदा संग जगता है !






बस यूँ ही गुजर जाती है शाम भी
और आ जाती है रात,
जो गुजर जाती है यह सोचते कि
शायद उसे बिल्कुल भी नहीं आती
कभीमेरी याद।
मैं तो बिल्कुल भी नहीं करती तुम्हें याद।






मुझे मेरे ही बच्चों ने मेरा बचपन दिखाया.
गए मेहमान बाहर, चट हुए बादाम सारे.

किसी से कब वफादारी निभाती हैं ये लहरें,
मिटा डालेंगी गीली रेत से पैगाम सारे.


आज बस
वंदन

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