मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मनुष्य अगर प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर आत्मसात कर लें तो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव कर सकता है। दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे- पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है।
दिन ढलने का अर्थ सिर्फ़ अंधकार नहीं होता प्रकृति जीवन को नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है जरूरत है उसके संदेश को समझने की।
सोचती हूँ
समय-समय पर हमें चेताती
प्रकृति की भाषा समझकर भी
संज्ञाशून्य है मनुष्य,
तस्वीरों में कैद प्रकृति के अद्भुत सौदर्य
और पुस्तक में
लिपिबद्ध जीवनदायिनी
गुणों की पूँजी
आने वाली पीढ़ियों के लिए
धरोहर संजो रही
शायद...?
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आज की रचनाएँ-
जितनी भी कोशिश करते हैं हम
उतनी ही अधिक बिगड़ रहा है
मौसम का मिजाज
बढ़ रही है
धरती की खीझ।
भीतर अंतहीन गहराई है
जो नहीं भरी जा सकती
किसी भी शै से
इसी कोशिश में
कुछ न कुछ पकड़ लेता है मन
और जिसे पकड़ता
वह जकड़ लेता है
रुदन नहीं
प्रेम विश्वास चाहता है
अविश्वास नहीं
प्रेम साथ चाहता है
तन्हाइयां नहीं
प्रेम मौन होता है
मुखर नहीं
अलविदा—
गहरे कोहरे में हिलता हाथ,
या जैसे
कोई समंदर के बीचो-बीच
डूबता हुआ एक हाथ।
झूठ की उम्र छोटी लेकिन जबान बहुत लम्बी रहती है।
हवा हो या तूफान सच की ज्योति कभी नहीं बुझती है।।
एक झूठ को छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पड़ते हैं।
सच और गुलाब हमेशा कांटों से घिरे रहते हैं।।
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
प्रेम के मौसम का इंतजार भी
जवाब देंहटाएंहो जायेगा खत्म
चेतावनी देती प्रस्तुति
अब बंकर में मनेंगे सारे उत्सव
आभार
वंदन
सुप्रभात ! वसंत का तो अभी आगमन बस हुआ ही हुआ है, आम के पेड़ बौर से लद गये हैं, अभी होली का मौसम आएगा, फिर भी सचेत रहना होगा, सुंदर अंक, आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंरचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंशुभ रात्रि।