सादर अभिवादन
प्रेम मास का दूसरा दिन
माँ सरस्वती को प्रणाम
आज वसंत पंचमी है
माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 02 फरवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट पर होगी।
वहीं, इस तिथि का समापन 03 फरवरी को सुबह 06 बजकर 52 मिनट पर होगा।
तनिक भी मतिभ्रम नहीं है कि सरस्वती पूजन कब है
माता जी से तो जन्म से मृत्यु तक हमारे साथ रहती है हमसे अलग नहीं हैं वे
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आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो बसंत
-सुभद्रा कुमारी चौहान
बदला जो न स्वभाव पड़ेगी ‘उसकी’ लाठी
न आयेगी काम नौकरी, कद और काठी !
लाओगे बदलाव जो खुद में रख कर निष्ठा
पाओगे पहचान जगत में नाम, प्रतिष्ठा !
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात
प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
- अटल बिहारी वाजपेयी
अपना सवाल तो गीत के बोल ,ख़त के अल्फ़ाज़ों पर आज भी वही का वही टिका है -
रंग सात ही क्यों ? कम रंगों के मिश्रण से भी परिणाम सुखद हो सकते हैं ।
रंग सात ही क्यों ? कम रंगों के मिश्रण से भी परिणाम सुखद हो सकते हैं ।
क्यों चाहिए सातों रंग..,सारा आसमान । जीने के लिए छोटी -छोटी बातें..,
छोटी - छोटी आशाएँ और छोटी-छोटी ख़ुशियाँ क्या कम हैं ।
पतझर ही पतझर था मन के मधुबन में
गहरा सन्नाटा-सा था अंतर्मन में
लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर, भावों के आँगन में
बहुत दिनों के बाद चिरैया बोली हैं
ओ बसंती पवन हमारे घर आना!
-कुँअर बेचैन
निरक्षरों को
अब साक्षर
बना रहा हूँ
खाली बिलों
में दस्तखत
करना
सिखा रहा हूँ
बुद्धिजीवी
का
प्रमाण पत्र
जब से
मिला है
सिर से पैर तक
फूल-फूल हो गई उसकी देह,
नाचते-नाचते हवा का
बसंती नाच ।
-केदारनाथ अग्रवाल
पीठ पर उसी ने खंजर चला दिया
जिसकी आँखों में गहराई बातों में कस्तूरी थी
कितने पर्वत जीत लिए कितने रण साध दिए
मेरी दुनिया फिर भी तेरे बिना अधूरी थी
राजा वसंत वर्षा ऋतुओं की रानी
लेकिन दोनों की कितनी भिन्न कहानी
राजा के मुख में हँसी कंठ में माला
रानी का अंतर द्रवित दृगों में पानी
-रामधारी सिंह "दिनकर"
मध्य प्रदेश के इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली गांव के पास जुगराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। उसी से जरा आगे जाने पर खेतों में भोलू सैय्यद का मकबरा बना हुआ है। जो अपने नाम और खुद से जुड़ी प्रथा के कारण खासा मशहूर है। इसे चुगलखोर की मजार के नाम से जाना जाता है और प्रथा यह है कि यहां से गुजरने वाला हर शख्स इसकी कब्र पर कम से कम पांच जूते जरूर मारता है। क्योंकि यहां के लोगों में ऐसी धारणा है कि इसे जूते मार कर आरंभ की गयी यात्रा निर्विघ्न पूरी होती है। अब यह धारणा कैसे और क्यूँ बनी, कहा नहीं जा सकता। इसके बारे में अलग-अलग किवदंतियां प्रचलित हैं !
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन बसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ बसंत।
चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
-दिनेश शुक्ल
आज बस
वंदन
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