" अवनी के कण कण , जल में ,
पवन में अमृत-जीवन सरसाए !
निज कर्म-लीन तल्लीन हो'
हर प्राणी झूमे नाचे गाए !
ना कोई व्यथित, मन मन प्रमुदित हो,
निकट-निकट हर छोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!"
राजेन्द्र स्वर्णकार
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण की ओर बढते हुए...
आगमन वसंत का
पुलकित वसुधा किये हुए है कैसा यह अतुलित श्रृंगार
लिए हाथ में थाल सुसज्जित खड़ी खोल कर स्वागत द्वार
हुआ आगमन प्रियतम का, अब होगा हर दुविधा का अंत
होंगे तृप्त नयन आतुर अब होंगे प्रगट हृदय उद्गार..
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हमारे न होने का #अहसास वो करते हैं !
हमारे न होने का
#अहसास वो करते हैं
किसी #महफिल का
जब वो #आगाज करते हैं ।
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जो घूम रहा
लावारिस बचपन
बना रहे
उनका लड़कपन
बस इतना वर मिले
हर मुरझाया चेहरा खिले। ..
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अर्से बाद आईने नज्म उतराई जंग लग गयी पहलू इन रस्मों को l
संदूक बंद लिहाफों से कतरा कोई बह चला आँखों यादों को ll
नब्ज रज्म रिवायत तहरीर आईने उलझी रह गयी इस तारीख को
सोंधी सोंधी खोई खुमार इसकी रुला गयी यादों दर्पण आँचल को ll
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मेरी क़िशमत थी या तेरी मजबूरी थी
पास आकर भी,रह गयीं थोड़ी दूरी थी
कुछ ना बोला मैंने तो बस गले लगा लिया
माफ़ क़रदेना तो अब उसकी मज़बूरी थी..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
अर्से बाद आईने नज्म उतराई जंग लग गयी पहलू इन रस्मों को l
जवाब देंहटाएंसंदूक बंद लिहाफों से कतरा कोई बह चला आँखों यादों को ll
वाह