शीर्षक पंक्ति: आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आज पढ़िए पाँच पसंदीदा
रचनाएँ-
विह्वल मन होठों को सी देंगे
अश्रु आंखों के सब कह देंगे
संवाद नही मौन चाहिए .....
प्रभु मौन की भाषा समझ लेंगे।।
*****
जहां एकत्व है और स्वतंत्रता
अटूट शाश्वत समता
जो अर्जित की गई है
पूर्णता की धारा से
जहाँ आश्रय मिलता है
हर तुच्छता की
कारा से
*****
एक प्रेमगीत -उसकी यादों
में मैं गीत सुनाता हूँ
यात्राओं में मिला
मगर संवाद नहीं,
इंद्रधनुष को
बंज़रपन की याद नहीं,
नये नये चंदन वन
की ये खुशबू है
मैं खुशबू के साथ
नहीं उड़ पाता हूँ.
*****
ज़िंदगी कैसे हाथ से
फिसल रही..
स्वप्न हुए ठेर है
रेखाओं के सब फेर है
संकेत है या संघर्ष है
हर मार्ग में बस गर्द है
हार ही हार है
प्रलय का अंधकार है
दुखों की आँधी चल रही
ज़िंदगी कैसे हाथ से फिसल रही…
*****
इंद्रधनुष को
जवाब देंहटाएंबंज़रपन की याद नहीं,
नये नये चंदन वन
की ये खुशबू है
मैं खुशबू के साथ
नहीं उड़ पाता हूँ.
बहुत खूब 🙏
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक।
जवाब देंहटाएं