।।प्रातःवंदन।।
भोर की दस्तक हुई है, जग !
पूर्व में छायी अरुणिमा,
बह चली सुखकर हवा,
फिर नये अंदाज में
गाने लगे मिल खग !
तितलियाँ मकरंद वश
उड़ने लगी हैं,
भ्रमर, मधु का मीत,
खुश हो गुनगुनाता,
राग में पागल हुआ सा
रहा इत-उत भग !
त्रिलोक सिंह ठकुरेला
बुधवारिय प्रस्तुति की छटा और
मैं सुख़नवर हूँ मेरी ताक़त सदाक़त है तो है ।
ऐ ख़ुदा तेरे लिए सच्ची इबादत है तो है ।।
हथकड़ी में भेजता वो देश का बेरोजगार ।
शर्म तुमको हो न हो मुझमें हिक़ारत है तो है ।।
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मन हुआ बेकल
प्रवासी पूत।
2.
देश को लौटा
रोज़ी-रोटी की खोज
प्रवासी बेटा।
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जब दिल्ली में था तो गाम के मेले को याद करता था। मेले की पुरानी कहानी बांचता था, और अब जब दिल्ली से दूर अपने गाम-घर में हूं तो 'किताब मेला' और 'जलसाघर ’ की याद आ रही है। क्योंकि आज पुस्तक मेला का अंतिम दिन है!
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बसंत के आने से
आहट आती है पतझड़ की
नव पल्लव को देख कर
मुश्किल नहीं होता है
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तुमने यह क्या किया
माँ अमूल्य अविनाशी
किस संस्कार में जिया...
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
सादर वंदन
बढ़िया प्रस्तुति।
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