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बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

4397..मन हुआ बेकल

 ।।प्रातःवंदन।।

भोर की दस्तक हुई है, जग !

पूर्व में छायी अरुणिमा, 

बह चली सुखकर हवा,

फिर नये अंदाज में 

गाने लगे मिल खग !

तितलियाँ मकरंद वश

उड़ने लगी हैं,

भ्रमर, मधु का मीत,

खुश हो गुनगुनाता,

राग में पागल हुआ सा

रहा इत-उत भग !

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

बुधवारिय प्रस्तुति की छटा और 

मैं सुख़नवर हूँ मेरी ताक़त सदाक़त है तो है ।

ऐ ख़ुदा तेरे लिए सच्ची इबादत है तो है ।।

हथकड़ी में भेजता वो देश का बेरोजगार ।

शर्म तुमको हो न हो मुझमें हिक़ारत है तो है ।।

✨️

प्रवासी पूत  

1.

नीड़ की यादें 

मन हुआ बेकल

प्रवासी पूत। 


2.

देश को लौटा

रोज़ी-रोटी की खोज

प्रवासी बेटा। 

✨️

मेला किताबों का 2025

जब दिल्ली में था तो गाम के मेले को याद करता था। मेले की पुरानी कहानी बांचता था, और अब जब दिल्ली से दूर अपने गाम-घर में हूं तो 'किताब मेला' और 'जलसाघर ’ की याद आ रही है। क्योंकि आज पुस्तक मेला का अंतिम दिन है!

✨️


पतझड़

बसंत के आने से 

आहट आती है पतझड़ की 

नव पल्लव को देख कर 

मुश्किल नहीं होता है 

✨️

लेटेंट

 रणवीर इलाहाबादिया

तुमने यह क्या किया

माँ अमूल्य अविनाशी

किस संस्कार में जिया...

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️





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