जय मां हाटेशवरी.....
सादर नमन.....
जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो जिंदगी में नया रंग ला नहीं सकते
जो रास्ते के अँधेरों से हार जाते हैं
वो मंजिलों के उजाले को पा नहीं सकते
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो
जान आयी मुर्दों में,शमशान शहर हुए, शानो सम्मान फतह का मुकाम आया। खत्म हुए गुब्बारो गंद युगों के छाए, गुरु सिक्खीका उजला आसमान आया।
बीती रात न बातें थीं न सितारे और न सुकून । वेदों ने हमको दिया, आदिकाल में ज्ञान। इनके जैसा है नहीं, जग में छ्न्दविधान।
कड़ी मेहनत ,पूर्ण लगन जब हो दिल में ,वक़्त भी शायद उसकी परीक्षा है लेता गर ठान लिया मन में तो चीर सकता है पर्वत का सीना भी हर इंसान सिर्फ हवाई घोड़े कल्पना में दौड़ाकर कामयाब ना हुआ कोई इंसान
बरसों बाद भी, उजड़े
हुए गुलशन को
लफ़्ज़ों से
संवारता
है,
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंलिंको में कविता
आभार
सादर
प्रस्तुति का रंग अच्छा लगा
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