जय मां हाटेशवरी.....
आज जन्म-दिवस है.....
हिंदी की महान लेखिका मन्नू भडारी जी का.....
(जन्मः 03 अप्रैल,1931)
कोटी-कोटी नमन आप की अमर लेखनी को.....
(यदि लेखन में ताकत है तो आप बिखर नहीं सकते।
लेखन ऐसी शक्ति है जो विपरीत परिस्थिति में भी साथ देती है । लेखन ने मुझे थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी ।
बल्कि मैं तो कहती हूँ कि लेखन ही नहीं वरन अभिव्यिक्ति की कोई भी विधा चाहे वह संगीत हो या चित्रकारी , इनमें वह शक्ति होती है जो आपका वजूद बचाए रखती हैं।मैंने
अपनी पीड़ा किसी को नहीं बताई क्योंकि मेरा मानना है कि व्यक्ति में इतनी ताकत हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख, अपने संघर्षों से अकेले जूझ सकें। - मन्नू भंडारी
हे मानव मत मानवता छोडो
महामुनि का श्रेष्ठ वचन है
हे मानव, मानवता को जोड़ो
अजेय है बल-शक्ति तुम्हारी
क्रोध -विध्वंस द्रोह को छोडो.
गिरा कहाँ ये समझ न आया
दया-धर्म मानव-संस्कार
व्यर्थ अभिमान में जीते लोग
छोड़ जाते सुख मोह के द्वार.
रात भर न बारिश हुई
घर हो
तो चार बेडरूम का हो
वरना वो घर ही क्या है
नौकरी हो
तो मैनेजर की
वरना वो नौकरी ही क्या है
अनदेखा फ़ासला - -
बिछी हैं खुली शतरंज की बिसात,
कहीं जीत है तो कहीं मात,
हर दौर में लेकिन
पहले मरता
है ग़रीब
प्यादा,
पल की ख़बर नहीं, और वो करते
हैं अंतहीन वादा - -
नारी उत्पीडन और धार्मिक आस्था">नारी उत्पीडन और धार्मिक आस्था
नारी उत्पीडन के मामलों में वृद्धि का एक अन्य कारण यह भी है कि आज की नारी शिक्षित तो अवश्य हुई है लेकिन साहस और दुस्साहस में अंतर करने की समझ उसमें विकसित
नहीं हुई है ! वह आधुनिक तो हुई है और हर क्षेत्र में पुरुषों को चुनौती देकर विजेता भी बनी है लेकिन इस मद में अपनी सीमाओं और मर्यादाओं का भी कई बार अतिक्रमण
कर जाती है और घात लगाए बैठे दरिंदों की कुत्सित मनोवृत्ति का शिकार हो जाती है !
संस्कार और नैतिकता का पाठ लोगों को घोल कर नहीं पिलाया जा सकता ! इसके लिए आज के युवाओं को आत्म चिंतन कर अपनी सोच को परिमार्जित करना होगा, अपनी जीवन शैली
और आदतों को बदलना होगा ! सुरुचिपूर्ण साहित्य से नाता जोड़ना होगा और पारिवारिक मूल्यों, नैतिक मूल्यों और धार्मिक मान्यताओं को सही अर्थ के साथ फिर से समझना
होगा तब ही कुछ बात बन सकेगी ! घर परिवार, शिक्षा संस्थान, एवं समाज के नीति नियंताओं को भी नए सिरे से पुनर्विचार कर ऐसी व्यवस्था को स्थापित करना होगा
राजनैतिक दोहे
बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न मिलिया कोय ,
जांच कमीशन में यहां, कालिख, चूना होय ।।
आधुनिकता और नारी
ऐसा बदलाव यदि कोई अपने जीवन में अपनाता है तो उस में कोई बुराई नहीं है और ऐसे बहलावों को आधुनिकता का नाम देना सही भी है तो जब लोग इस परिवर्तन को आधुनिक
मान का स्वीकार करने के लिए उत्सुक हो सकते है तो नारी के द्वारा अपने निजी जीवन में लाये गये परिवर्तनों को भी लोगों को खुशी –खुशी अपना लेना चाहिए न की
यह सोच कर उस पर उँगली उठाते रहना चाहीये कि सारी आधुनिकता का प्रभाव केवल महिलाओं पर ही पड़ता है नये अनुभवों के साथ सोच में परिवर्तन आना तो स्वाभाविक सी
बात है किन्तु उसका भी एक सीमित दायरा होता है लेकिन सोच में उस बदलाव का अर्थ, संस्कारों को भूल जान नहीं होता और यदि उस सोच को Broad minded होना कहा जाये
तो वो गलत नहीं होगा यह मेरा मत भी है और मेरा अपना अनुभव भी जय हिन्द ...
चलो एक कहानी लिखें ...संवेदनाओं को अपनी ज़ुबानी लिखें...
अक्षर की कटारों में
समय की धार लिखें।
छांव के नाम लिखें...
इज़हार-ए-मुहब्बत धूप का।
ज़रूरत आन पड़ी तो...
आग को आधार लिखें।
अपनी ज़ुबानी लिखें।
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं जन्मदिवस पर
स्तरीय रचनाओं का संगम
आभार
सादर
लाज़बाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं