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शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

3741.....मन का दीप जलाये रखना

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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हरी-भरी,फलती-फूलती
गर्भिणी धरती की
उर्वर कोख़ उजाड़कर
बंजर नींव में
रोप रहे हम
भावी पीढ़ियों के लिए
रेतीला भविष्य।

निर्दयता से प्रयोग करते हैं
अपनी सुविधानुसार,
दूहते...!
कलपती,सिसकती,
दिन-प्रतिदिन
खोखली होती
धरती,
 अपने गर्भ में ही 
मार डाले गये भ्रूणों के
अबोले शाप की अग्नि में
झुलसने से
कब तक बचा पायेगी
मनुष्य का अस्तित्व ...?
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अब आइये चलते हैं आज की रचनाओं के संसार में-

धमनियों में बहने लगा ये कौन-सा ज़हर,
जल रहे हैं आग में सभ्य,सुसंस्कृत शहर,
स्तब्ध हैं बाग उजड़े,सहमे हुये फूल भी
रंजिशें माटी में बीज लहू के बो रही हैं....
समाज की विसंगतियों पर करारा प्रहार करती एक बेहतरीन बतकही।

होड़ बाड़े में क़ैद करने की धर्म-मज़हब के, कैसा जबर है?
कोई हिन्दू या मुसलमां, लापता इंसाँ, किसने रोपी ज़हर है?
मन मारना है हिस्से में मेरे,वो मनमानी करता सारी उमर है।
नुमाइंदे ख़ाक होंगे वो रब के,जिन्हें इंसान की नहीं क़दर है।


रोगनिरोधक दे जीवाणु।।
नष्ट करें बिशारू बिषाणु।।
आयुर्वेद शुद्धि लाकर,
रोग हरे सभी तरह के।।
स्वास्थ्य से बढ़कर कोई धन नहीं...
दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली
पौधों,फूल,पत्तियों के गुणों को समझिए
इन सुंदर शब्दों के माध्यम से-



ब्राह्मी 

ब्राह्मी औषध गुण भरी, काटे कई विकार।

बुद्धि वृद्धिकर योग है, बहुल व्याधि प्रतिकार।।

अशोक 

पथरी सूजन दर्द को, करता दूर अशोक।

महिला रोगों के लिए,नाम बड़ा इस लोक।।



मनुष्य को अपना सुखी जीवन जीने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।  आशा जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है , साथ ही मनुष्य के दृष्टिकोण को शुभता प्रदान करती है, मनुष्य जिस तरह की भावनाएँ रखता है वैसी ही प्रेरणाएँ मिलती हैं। 

सफ़र जीवन का यूँ अनवरत चलता रहा
अंधेरों में मन के विश्वास दीप जलता रहा

अँधियारे में एक परछाईं

साथ तुम्हारा पकड़े होगी।

उँगली में उँगली हाथों में

हाथ गहे कस जकड़े होगी॥

रूप बदलकर तरह तरह

से साथ चलेगी वो पल-पल,

परछाईं के पदचिह्नों पर

अपनी नज़र गड़ाए रखना॥


मन मैला मन निरमला, मन दाता मन सूम।

मन ज्ञानी अज्ञान मन, मनहिं मचाई धूम॥



आसमान की तरफ देखते हुए
अपनी देखने की सीमा का बोध नहीं होता
उसके लिए देखना होता ठीक सामने
शायद तभी
हम समंदर और पहाड़ को
एक साथ नहीं देख पाते।


और चलते-चलते पढ़िए एक संदेशप्रद कहानी
जो लोग संतुष्ट नहीं हैं, वे कभी भी शांत नहीं हो सकते हैं। सिर्फ धन और सुख-सुविधाएं किसी व्यक्ति के मन को शांत नहीं कर सकती हैं। असंतुष्टि व्यक्ति के मन को अशांत बनाए रखती है। 

सोने के सिक्के हाथों से छूटकर वापस मिट्टी में मिलने लगे! सिक्के क्या, अब तो वह भी मिट्टी में धंसने लगा!!तभी अचानक चमत्कार हुआ। लंबी गरदन, बड़ी चोंच और पूरी तरह मिट्टी से सने 8 पैरों वाला एक पंछी सामने आया और पूछने लगा, "सोना चाहिए या अभी और जीना चाहते हो?" रोते हुए उसके मुख से एक ही वाक्य निकला, "मुझे बचाओ! लंबी गरदन वाले पंछी ने दया दिखाई, उसे अपनी चोंच से पकड़ कर पीठ में बिठाया और पलक झपकते ही उड़ चला। 

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आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अंक
    ये पंक्तियां भा गई
    सफ़र जीवन का यूँ अनवरत चलता रहा
    अंधेरों में मन के विश्वास दीप जलता रहा
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में पिरो कर इस मंच पर टाँगने के लिए ... हर बार की तरह आज भी आपकी काव्यात्मक संदेशप्रद भूमिका और हर रचनाओं की भूमिका में काव्यात्मक स्वरूप में ही अनमोल टिपण्णियां भी आज की प्रस्तुति में रोचकता प्रदान कर रहे हैं .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन
    पठनीय सामग्री
    आभार
    सादर वन्दे

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर सतगर्भित भूमिका के साथ हर रचना की सूक्ष्म समीक्षा रचना को विस्तृत आयाम दे गई। रचनाओं का चयन और आपका श्रमसाध्य प्रस्तुतिकरण बहुत सुकून देता है। बहुत आभार और शुभकामनाएँ प्रिय सखी श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. एक न एक दिन तो मनुष्य का अस्तित्व खत्म होना ही है । धरती जब तक बोझ सह पा रही है सह रही है । मनुष्य अपने स्वार्थ में अंधा हुआ कहाँ सोच पा रहा है कि भविष्य में अपनी पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ रहा है ? वो तो बस निचोड़ रहा है ।
    चिंतनशील भूमिका के साथ आज विचारणीय लिंक्स भी पढ़ने को मिले ।
    सुबोध जी यूँ ही बतकही कहते हुए बड़ी मार्क बातें लिख जाते हैं तो आज कुसुम जी ने देश में पाई जाने वाली औषधियों के विषय में अच्छी जानकारी दी है दोहों के माध्यम से ।
    जिज्ञासा ने हौसला देते हुए संदेश दिया है कि अंधेरा मिट जाएगा यदि मन का दीप जलाए रखोगे तो ।
    आँखें पर एक गहन विचार पढ़ने को मिला तो इंसान के लालच से परे खेत में काम करते मज़दूर और प्रकृति प्रदत्त खाना ही जीवन की ज़रूरत है ये बताने के लिए बेचैन आत्मा ही तो भटक सकती है ।
    कुछ मिला कर बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर सारगर्भित रचनाओं का सुंदर संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई, मेरी रचना को प्रस्तुति में शामिल करने के लिए हृदय से आभार प्रिय श्वेता आपकी पंक्तियां गज़ब है आत्म विश्लेषण करने को प्रेरित करती ।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर सारगर्भित रचनायें

    जवाब देंहटाएं

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