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रविवार, 23 अप्रैल 2023

3737...."पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान

जय मां हाटेशवरी....
सादर नमन.....
पुनः उपस्थित हूं.....
आज के लिये.....

दलदल
पत्रकार : कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन
उम्मीद करता हूँ वक्त का हिसाब ना हो हीन।"

जिंदगी तमाशाई न थी. ✍️
माफ कर, माफ़ी  मांग  लेते खताओं  की,
रिश्तों में दर्द था  रकीबपन रूखाई न थी।
हंस कर भूल  जाते कहे का मलाल न था
वीर मोहब्बत से बढ़ कर  कोई दवाई न थी।

पर्व उत्सवों त्योहारों से,  भारत की पहचान
वैशाखी में बल्ले बल्ले, खुशी मनाते संग दादी।
परशुराम जयंती अक्षय तृतिया ,  गुड्डा गुड़िया की शादी।।
जगन्नाथ रथ की यात्रा को , देश मनाता है सारा।
बलराम सुभद्रा संग कृष्ण का, भक्त करे हैं जयकारा।।

आलेख) आइए ,हम सब मिलकर बचाएँ अपनी ख़ूबसूरत पृथ्वी को              
नैसर्गिक धन -धान्य से परिपूर्ण हमारी पृथ्वी माता हमें क्या -क्या नहीं देती ? अपने हरे -भरे  जंगलों की स्वच्छ हवा और जीवन रक्षक  वनौषधियाँ ,  हमारी प्यास
बुझाने के लिए वनाच्छादित पर्वतों से निकलकर बहते रुपहले झरनों और  नदियों -नालों का अमृत तुल्य पानी हमारे लिए पृथ्वी माता का वरदान हैं। सोना ,चाँदी ,लोहा
ताम्बा और कोयले की अनमोल खनिज सम्पदा वह अपने गर्भ से हम पर लुटा देती है। लेकिन उसकी  संतान के रूप में उसके इन बहुमूल्य उपकारों के बदले हम इंसान  उसे दे
क्या रहे हैं ?महात्मा गांधी कहते  थे -- "पृथ्वी इंसानों की हर ज़रूरत को पूरा कर सकती है ,लेकिन वह इंसानों की लालच को पूरा नहीं कर सकती।'   उन्होंने धरती
माता की अनमोल और अपार सम्पदा के प्रति  मनुष्य के बेहिसाब प्रलोभन को देखकर  कभी यह टिप्पणी की थी ,जो आज भी प्रासंगिक है।

  

कंकरीट का जाल
कंकरीट जबसे बना,  जीवन का आधार।
धरती की तब से हुई, बड़ी करारी हार।२।
--
पेड़ कट गये भूमि के, बंजर हुई जमीन।
प्राणवायु घटने लगी, छाया हुई विलीन।

वादा करो मुझसे
ऐसे में तुमसे एक वादा चाहती हूँ
अभी तुम बिलकुल चुप रहना
कुछ भी न बोलना  
इस वक्त जो कुछ भी तुम कहोगे
वह किसी भी तरह से बुद्धि सम्मत,
तर्क सम्मत या मानवता सम्मत तो
हरगिज़ नहीं होगा
ऐसे में तुम्हारा चुप रहना ही
श्रेयस्कर होगा

धन्यवाद।

3 टिप्‍पणियां:

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