।।प्रातःवंदन।।
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ऐतिहासिक ध्वंस और पुनर्निर्माण : (डॉ.) कविता वाचक्नवी
2-3 सौ वर्ष पूर्व आई औद्यौगिक क्रान्ति के साथ पश्चिम में साईंस और रिलीजन दो हुए, और रिलीजन के फंदे से कुछ लोग बाहर निकले तथा कुछ आधुनिक होने लगे अन्यथा रिलीजन वालों का उस से पूर्व के लगभग 17-अठारह सौ वर्ष कितना भयंकर कुत्सित एवं..
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छायाओं से लड़कर कोई
जीत सका है भला आजतक
सारी कश्मकश
छायाएँ ही तो हैं
उनके परिणामों से बंधे..
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नज़्म - - जीने का मज़ा
कुछ भी क़ायम कहाँ, ग़ैर यक़ीनी सूरतहाल,
न फ़लक अपना, न ज़मीं अपनी, न ही
कोई बानफ़स चाहने वाला, बस
दो पल के मरासिम, फिर
तुम कहाँ और..
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किसी के प्यार को क्या समझो
“कैसे लिखू कविता”
मुझे छंदों का ज्ञान नहीं
ना ही मुझे मीटर का बोध
कभी बड़ी कमी लगती है
लेखन मैं परिपक्वता नहीं
..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
पूरे ब्रम्हाण्ड में
जवाब देंहटाएंजिव्हा ही एक ऐसी जगह है
जहाँ "जहर" और "अमृत"
एक साथ रहते
बहुत ही सुन्दर अंक
आभार
सादर
वाणी का मूल्यांकन दर्शाती भूमिका में सजी ठकुरेला जी की सार्थक कुंडलिया ने अंक को अधिक सुंदर और रोचक बना दिया, सभी रचनाएं सारगर्भित, आभार आपका पम्मी जी।
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
सुन्दर अंक !
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