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शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

3112.... जीने की ख़्वाहिश

शुक्रवारीय अंक में मैं श्वेता
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन 
करती हूँ।

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बारिश के मौसम में बारिश न हो तो 
शिकायत करते हैं 
सूखे से बेहाल नदियों के ओठ
बूँद-बूँद पानी को तरसते हैं
शहरों का तापमान बेहिसाब
पसीने में नहाये लू से तड़पते है
और ... फिर
चार घंटे की बारिश मूसलाधार
बहाने लगती है ज़िंदगी निर्ममता से
मैदान, पहाड़, झील, नदी एकाकार
लाल सैलाब मचाता  हाहाकार
पूछते हैं बादल,
धरा की छाती किलसती है
मनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने 
के लिए जीवनदायिनी
 बगिया का
ये क्या हाल बना डाला...?

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चलिए आज की रचनाओं के संसार में चलते हैं-


ऐ ज़िंदगी!
तुझे जीने की ख़्वाहिश गर बची होती,
साज़िशें कुछ हमने भी शायद रची होती।
दो पल के साथ के ताम-झाम,नाम-वाम 
खेल-तमाशों पर यूँ तालियाँ बजी होती--

अंतिम छोर

फिर लगा लेते है दौड़ 
उसको पाने की 
ख्वाहिश लिए 
जो सर्वदा हो 
अवांछनीय ।
आखिर क्या होता है 
लक्ष्य हमारा 
जिसके संधान में 
भटकते हैं यूँ 
दर -  बदर  ।

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माँ शब्द ही भावनाओं का मधुर और पवित्र ज्वार है जिसके स्पर्श से जीवन की साँसें सुकून पाती हैं।
माँ के आँचल से दूर होकर भी ममता की छाँव महसूस करती बेटियों के मन के उद्गार-

वाट्सएप में.माँ मुस्कुराती माँ

दूभर  हुई   साँझ जीवन की 
जर्जर- सी देह काँप रही ,
जाने कैसी संभल रही है 
साँसों की लय हाँफ रही ,
वक्त की  आँधी से लड़ती
बुझती लौ सी लहराती माँ !!

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मौसम कोई भी हो छतरी की जरूरत पड़ती है और अगर बात बारिश की हो तो
इसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है
छतरी के बारे में ज्ञानवर्धक लेख-



लोगों की पसंद और इसकी उपयोगिता को देखते हुए इस पर तरह-तरह के प्रयोग भी होने शुरू हो गए । इसका रंग-रूपबदलने लगा। इसके कई तरह के "फोल्डिंग" प्रकार भी बाजार में छा गए, जिनका आविष्कार 1969 में हुआ।  इसकी यंत्र-रचना और इसमें उपयोग होने वाली चीजों में सुधार तथा बदलाव आने लगा।  सबसे ज्यादा ध्यान इसके कपडे पर दिया गया जिसे आजकल टेफ्लॉन की परत चढ़ा कर काम में लाया जाता है, जिससे कपड़ा पूर्णतया जल-रोधी हो जाता है।

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इस रचना को पढ़कर
मुझे अपनी लिखी कुछ पंक्तियाँ याद गयी-
मन का ज़ंग लगा चरमराता दरवाज़ा
दस्तक से चिंहुककर ज़िद में अड़कर बंद 
रहना चाहता है आगंतुक से भयभीत
जानता है यथोचित 
आतिथ्य सत्कार के अभाव में
जब लौटेगा वो,तब टाँग देगा
स्मृतियों का गट्ठर
दरवाज़े की
कमज़ोर कुंड़ी पर।

परन्तु 
लग गया है जंग
मन के दरवाज़े के
कब्जों में
पथरा गई हैं
पल्लों की लकड़ियां
उन पर पड़ने वाली थाप
अब नहीं होती
ध्वनित, प्रतिध्वनित


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बालमन पर किसी भी सीख का गहरा असर होता है।
बच्चों को सही गलत का भेद बताना हर अभिवावक का कर्तव्य है।
विक्की जैसा ही हर बच्चे को ऐसा ही मार्गदर्शन मिले यही बच्चों को नैतिक शिक्षा की सच्ची पढ़ाई होगी।

सच्चा दोस्त



और आपको साइंस की बुक में सोशल स्टडी समझ आ रही थी"  ?  माँ ने पूछा तो विक्की बोला ; "मम्मा मैं घर आकर स्टडी कर लेता न । पता भी है पूरी क्लास के सामने डाँट खाना कितना बुरा लगता है... सब सौरव की वजह से...गंदा कहीं का "।  कहकर विक्की ने मुँह फुला लिया।


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और चलते-चलते 
इस रचना की भूमिका भाव को स्पष्ट कर रही है। समाज की दोहरी मानसिकता क्या सचमुच सामान्य है?
पर सच तो ये है कि परिभाषा गढ़ना और परिभाषित करना,
वैचारिक स्तर और दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

नीयत संग नज़रिया

उलट मगर इसके, 
'फैशन चैनल' पर 'टीवी' के,
अक़्सर .. 'कैट वॉक' करती 
'रैंप' पे या फिर दिखने वाली
मदमायी भंगिमाओं में
'मॉडल्स' सह 'कैलेंडर गर्ल्स' - 
"नटालिया कौर" या
"नरगिस फाखरी" या फिर ..

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कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी


12 टिप्‍पणियां:

  1. भूल गए सब कुछ
    याद नहीं अब कुछ
    बस यही बात न भूली
    पहले भी बच्ची थी
    और अब भी वही बच्ची ही हो
    बढ़िया अंक..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी ! सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. आज सुबह-सुबह श्वेता जी के लिए बच्ची जैसे विशेषण की सार्वजनिक घोषणा कर के और 1975 की 'जूली' फ़िल्म की पैरोडी सुना कर 60-70 के बीच जन्म लेने वाले मुझ जैसे वयस्कों को भी आपने अपने-अपने बचपन के दौर के बच्चे को याद करा दिया .. बस यूँ ही ...
      (तब हम बच्चों के लिए फ़िल्में प्रतिबंधित हुआ करती थी, काले घुमते तवे पर या 'बिनाका गीतमाला' में ही गाना सुनकर मन को बहलाना होता था .. शायद ...).

      हटाएं
  2. जी ! सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. इस मंच पर, आज अपनी बहुरंगी प्रस्तुति में मेरी बतकही को जगह देने के लिए ...
    आज की भूमिका में एक अहम् सवाल "बगिया का, ये क्या हाल बना डाला...?", बेशक़ सोचनीय है। प्रकृति का एक-एक कण भी पाखंडियों और कर्मकांडियों से सवाल पूछता होगा, कि मुझे नकार कर पत्थरों को पूजने में क्यों मशग़ूल हो गए ???
    उपरोक्त भूमिका के अलावा बीच-बीच में प्रत्येक रचना के पूर्व, मंच-संचालन वाले अंदाज़ में कही गई आपकी अपनी चंद पंक्तियाँ भी परिपक्वता की परछाई है .. शायद ...
    (पर आपकी परिपक्वता के बावजूद, यशोदा जी आपको बच्ची 😃😃😃 कह रही हैं, तो उनकी बात को ही माननी होगी .. बस यूँ ही ...)

    जवाब देंहटाएं
  3. अलग अलग रंगों को बिखेरता आज का अंक बहुत सुंदर और सराहनीय है प्रिय श्वेता जी,कुछ रचनाएँ पढ़ीं कुछ पर जाना है अभी,आपके श्रमसाध्य कार्य हेतु आपका बहुत आभार । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  4. बारिश के दिन , कहीं बाढ़ तो कहीं धरती जल बिन , प्रकृति तो करती ही है कमाल , बाकी इंसान अपने पैरों पर मार लेता है कुल्हाड़ी ,कम कलाकार तो इंसान भी नहीं न ...बेहतरीन भूमिका बाकी तो जैसी नीयत वैसा नज़रिया । अत्यधिक दुःख जैसे हृदय को ही फॉसिल बना देता है .... फिर भी ज़िन्दगी चलती रहती है जैसे सड़क यूँ सड़क एक ही जगह टिकी होती है फिर भी लोग पूछते हैं कि ये सड़क कहाँ जा रही है खैर कितना सुकूँ होता है जब सच्चे दोस्त अलमस्त सड़क पर हाथ में हाथ डाले चले जा रहे हों और बारिश आ जाए .... पास में न हो छाता । लेकिन आज की प्रस्तुति में छाता भी है । बेहतरीन लिंक्स से सजी आज की प्रस्तुति में टाट के पैबंद सी अंतिम छोर भी है । शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बढियां बहुत बढियां संकलन

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय श्वेता , सबसे पहले अनमोल लिंकों तक पहुँचाने का बहुत बहुत शुक्रिया |सभी लिंक बढ़िया और पठनीय हैं |भूमिका मर्मान्तक प्रश्न -----------
    पूछते हैं बादल,/धरा की छाती किलसती है/मनुष्य तुमने अपने घर सुंदर बनाने //के लिए जीवनदायिनी/ बगिया का/ये क्या हाल बना डाला...////
    सच में आखिर अपने वैभवशाली जीवन के चक्कर में हमने धरती के विषय में क्यों नहीं सोचा कभी ?फटते बदल और तटबंध तोडती जलधाराओं का भयंकर शोर आने वाले समय में किसी भयावहता की दस्तक तो नहीं -- ये चीज बहुत डराती है | दूसरी बात कुछ सालों के बाद शायद ये धरती रहने लायक ही बचे | लघु कथा और रोचक लेख के साथ सरस कवितायें पढ़कर बहुत अच्छा लगा |सभी रचनाकारों को सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई | रोचक अंक में मेरी रचना को शामिल करने की आभारी हूँ | सस्नेह -

    जवाब देंहटाएं
  7. सारगर्भित भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुतीकरण सभी लिंक्स बेहद उम्दा एवं पठनीय... मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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