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रविवार, 6 दिसंबर 2020

1969.....प्रेम को बाँधने से प्यार-स्नेह नहीं नफरत-हिंसा ही फैलेगी

जय मां हाटेशवरी...... 
स्वागत व अभिनंदन है आप का...... 
पेश है.....आज की हल चल इन चंद पंक्तियों के साथ..... 

कभी बचपन मे पढ़ा था मै
किसानो की वो गर्व गाथा ,
हर सुबह वो खेतो में
फावड़ा लेकर निकल जाता ,

एक छोटे से खेतो में
क्या क्या वो उपजा पाता ,
किसानो का दर्द इतना
किसको वो समझा पाता ,

इंतजार में सब गंवा देना 
मुश्किल कितना होता है,
किसी को भुला देना।
गुलाब के पौधे से जैसे,
उसकी खुशबू मिटा देना।।

बसा दिल में हो जाने कब से,
बेदखली की सजा क्यूं देना।
जलते हुए चिराग को बुझा,
जीवन में अंधेरा फैला देना।।



आज संध्या समय
जो बाला दिया, 
बहुत देर तक
जलता रहा ।

अकंपित लौ
तम के भाल पर 
तिलक समान
शोभायमान ।
 


सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, आयुर्वेदिक अध्ययन के पाठ्यक्रम में सर्जिकल प्रक्रिया के लिए प्रशिक्षण मॉड्यूल को जोड़ा जाएगा। इसके लिए अधिनियम का नाम बदलकर भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (स्नातकोत्तर आयुर्वेद शिक्षा) संशोधन विनियम, 2020 कर दिया गया है। आयुष चिकित्सा की प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों की ओर से लंबे समय से एलोपैथी के समान अधिकार देने की मांग हो रही थी। नए नियमों के मुताबिक, आयुर्वेद के छात्र पढ़ाई के दौरान ही शल्य (सर्जरी) और शालक्य चिकित्सा को लेकर प्रशिक्षित किए जाएंगे। छात्रों को शल्य-चिकित्सा की दो धाराओं में प्रशिक्षित किया जाएगा और उन्हें एमएस (आयुर्वेद) जनरल सर्जरी और एमएस (आयुर्वेद) शालक्य तंत्र (नेत्र, कान, नाक, गला, सिर और सिर-दंत चिकित्सा का रोग) जैसी शल्य तंत्र की उपाधियों से सम्मानित भी किया जाएगा। 

मन           
सांझ की...
दहलीज़ पर
कभी हाँ…
तो कभी ना में
उलझा …
घड़ी के पेंडुलम सा
स्थिरता..
की चाह में झूलता
स्थितप्रज्ञ मन…. 

दरअसल प्रेम बंधन का नाम नहीं, किसी रिश्ते का नाम नहीं, किसी सम्बन्ध का नाम नहीं. प्रेम तो विशुद्ध प्रेम है, एक अवधारणा है, खुद को मुक्त कर देने की अवस्था है. यदि प्रेम बंधन पैदा करे, व्यक्ति को कैद करे तो वह प्रेम नहीं आसक्ति है, लालसा है, तृष्णा है. प्रेम बाँधता नहीं है बल्कि स्वतंत्र उड़ान प्रदान करता है, स्फूर्ति पैदा करता है, विश्वास जगाता है. अभी भी प्रेम की इस अवधारणा को समझने वाले न के बराबर हैं. जब तक प्रेम को संकुचित समझा जाता रहेगा, जब तक प्रेम में बंधन जैसी स्थिति बनी रहेगी तब तक प्रेम को लेकर भ्रांति बनी ही रहेगी. यदि व्यक्तियों को प्रेम की पावनता का एहसास करना है तो उनको प्रेम की मुक्तता का, प्रेम की स्वतंत्रता का सम्मान करना होगा. प्रेम को बाँध कर समाज में प्रेम, स्नेह नहीं बल्कि नफरत, हिंसा ही फैलाई जा सकती है.

चाहे आर्थिक रूप से
मैं सक्षम नहीं
लेकिन घर का सबसे कमाऊ सदस्य मैं ही हूँ
रिश्तों की दौलत से बढ़कर और कौन सी कमाई होती है
मैं नहीं जानती और ना जानना चाहती हूँ

आ लगे, कितने बैठे रहे
अपनी जगह, काग़ज़
की नाव बहती
जाए, कुछ
यादें
हैं बहुत ही हठीले, अल्बम से -
निकल, नदी घाटों में हैं
जा बैठे, विगत पलों
की धूनी रमाए,                 
 धन्यवाद।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति..
    आभार आपका
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब संकलन । मेरी रचना साझा करने के लिए सादर आभार कुलदीप जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएं अपने आप में अद्वितीय हैं, मुझे शामिल करने हेतु आभार, प्रस्तुति एवं संकलन अभिनव व सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद कुलदीप जी । शामिल करने के लिए आभार ।
    कुछ अलग सा ज़ायका है आज के अंक में । सभी रचनाकारों का अभिनंदन ।

    जवाब देंहटाएं

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