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शनिवार, 7 सितंबर 2019

1513..गज़ल


चित्र में ये शामिल हो सकता है: 2 लोग, स्क्रीन
जय हिन्द ... जय भारत के किसान/जवान/वैज्ञानिक 

"त्रिवेणी"

आपस में रहने दे, आपस की बातें 
दिल लरजता है, रिश्ते की नुमाइश से
खुर्दबीनी से देखते हैं लोग, बाज़ार में
【राहुल जगताप 'देव'】

वादा कर कि अब ना करेगा वादा कभी !
रोज मोम जलती है और याद पिघल कर उतर आती है! 
धुआं सी हैं जिंदगी कल का किसको पता है!
【रूपल उपाध्याय】

सबको यथायोग्य
प्रणामाशीष

जब भी मौक़ा आये, बातें कुनबा के इर्द-गिर्द हो
 अपने हों और अपनों के अपने के ध्यान में सपनें
बातें खाश-खाश हे दुनिया चाहे कुछ भी बोलेऽऽऽ,
बोले हम कुश नहीं बोलेगा हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता हे
हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता हे
हम कुश नहीं बोलेगा



हालत नही माली घर की है अच्छी
सुखी – रुखी से बच्चे पड़ा जाइएगा
रुपया नही, खाली है जेबें हैं  सबकी
तबीबो के चक्कर से बेच जाइएगा

गज़ल क्या है

My Photo
 दिल की धड़कन और आवाज़ को
मिटर या वज्न में क्यूं बांधना!
बस निकलने दो काफीया और रदीफ में)
लेख पढ़ें और लिखते रहें; संज

मौत के इंतजार में गुजरी

Dr. Zarina Sani
कुछ तो पैमाने यार में गुज़री
और कुछ एतबार में गुज़री।
मंज़िले ज़ीस्त हमसे सर न हुयी
यादे ग़ेसु ए यार में गुज़री।

आहट सी कोई आए

मेरा फोटो
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो।
जब शाख़ कोई हाथ लगाते ही चमन में
शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो

तो करार आये

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ये उम्र लम्हों में , सिमट जाये , तो क़रार आये ,
बात बिगड़ी भी , सँवर जाये , तो क़रार आये !
रातें महकी हो , चाँदनी में यहाँ , बरसों तो क्या ,
कभी दिन में भी , सुरूर आये , तो क़रार आये !



आज की गजल तरह-तरह के आरण्यक संदर्भों में खो गयी है। कलम रुकनी नहीं चाहिए। बस, इसी साधना-याचना-आराधना-अर्चना-आशा- अभिलाषा और विश्वास के साथ कि-
जो कि कहना चाहती है,
आज कहने दो गजल को।
>< सत्तासिवां विषय
ज़िन्दगीउदाहरण

सुनो ऐ ज़िंदगी 
ज़रा इक पल भर को 
आराम तो दो 
सांस तो लो
पृथ्वी सी हूँ
पृथ्वी नही हूँ मैं 
उसके पैरों तले तो 
आसमान है 
और मेरे पैरों तले 
मेरे पैरों तले ज़मीन है.. मेरे घर की !
रचनाकार हैं
कैलगरी,कनाडा की जोया


प्रेषण तिथिः 07 सितम्बर 2019
सायंकाल 3.00 बजे तक
ब्लॉग सम्पर्क फार्म के द्वारा

फिर मिलेंगे...


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी प्रस्तुति अति विशिष्ट रहती है दी जी...
    नवोदित रचनाकारों के लिये साहित्यिक लेखन में बिल्कुल प्रकाश पुंज सा..
    विज्ञान और तकनीक का जयगान होना ही चाहिए, परंतु ये विनाशकारी न हो ?
    प्रणाम सभी को।

    जवाब देंहटाएं
  2. उव्वाहहहह..
    बेहतरीन सदा की तरह..
    सादर नमन...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह दी ग़ज़ल पर बढ़िया संकलन..आभार आपका।
    बहुत कुछ सीखने को मिला।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय दीदी
    बेहतरीन ग़ज़लें
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात।
    बेहतरीन माला जोड़ी है ग़ज़लों की।

    कुछ तो पैमाने यार में गुज़री
    और कुछ एतबार में गुज़री।

    जवाब देंहटाएं

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