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गुरुवार, 11 जुलाई 2019

1455...बरसात का मौसम है ख़ुशियाँ लाता है ख़तरात में लपेटकर...

सादर अभिवादन। 

बरसात का मौसम है
ख़ुशियाँ लाता है ख़तरात में लपेटकर, 
धूल-धूसरित फूल-पत्ते धुल गये
 बहा ले असबाब गये नदी-नाले भँवर में लपेटकर। 
-रवीन्द्र    

आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-  




‘उलूक’ 
देखता 
चलता है 

आदमी के 
बीच से 
होते हुऐ 
भगवान 
कई सारे 



अब न बिहार में वह छूटा हुआ गाँव मेरा है 
न कोयला खादानो के बीच वे कालोनियां 
दिल्ली तो होती है सरकारों की 
और दिल्ली की सीमा पर खड़े उत्तरप्रदेश भी 
कहाँ मानता है अपना 





खेल-खेल में एक दिन
छुपी थी इसी खंडहर में
वह घंटों तक 
वापस नहीं आई थी
हर ओर उदासी छाई थी
मसली हुई 
अधखिली वह कली
घंटों बाद 
शान से खड़े 
एक बुर्ज के पास मिली





क्रोध के तिलमिलाहट में क्लब के अध्यक्ष को फोन किया, हेलो की आवाज सुनते फट पड़ी मानों बरसात में बादल फटा हो और सैलाब लाया,-"आपने मेरे साथ धोखाधड़ी किया, आपलोगों के वश में नहीं था कि स्लम के बच्चों को जुटाकर विद्यालय खोल सकें और उन बच्चों की देख-भाल कर सकें तो मेरे संस्थान को सहायता करने के नाम पर , संस्थान को गोद लेने का नाटक कर लिया और मेरे संस्थान के नाम का जिक्र भी नहीं किया कहीं भी...! मूसलाधार बारिश में पौधे सींचती हैं आपलोग..., इस कार्य के नाम पर जो फंड का जुगाड़ होगा उससे आपलोग मौज-मस्ती ऐश करेंगी...! संस्थान के विद्यार्थियों को स्लम के बच्चे- स्लम के बच्चे का प्रचार कर आपलोग महादेवी बन रही हैं...,"




क्रिप्स मिशन की नाकामयाबी के बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ इस बड़े आन्दोलन का फैसला 8 अगस्त सन 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के इजलास में किया गया | गांधी जी को फ़ौरन ही गिरफ्तार कर लिया गया , लेकिन मुल्क भर के नौजवान वालेंटियर हड़ताल और तोड़फोड़ की कार्यवाई करने लगे | जयप्रकाश नारायण , डा राममनोहर लोहिया व दीगर नेता रूपोश होकर आन्दोलन की सरपरस्ती करते रहे |

हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
✳️
आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    नाम,नाम और नाम..
    चिंता तो होगी ही..
    और वर्षा ऋतु में पानी लाजिमी है..
    पानी आएगा तो कीचड़ और बीमारी भी संग लाएगा..
    अगस्त आने को है..तो कुछ बोए जाएँगे और कुछ उखाड़ भी जाएँगे.. पता नहीं किस प्रवाह में लिखा
    पर सोच कर लिखा...भारत वर्डकप से बाहर हो गया..फेसबुक पर टीका-टिप्पणी का दौर भी शुरू हो गया होगा... लोगों के पास समय बहुत है..बेवजह उखाड़ते-गाड़ते रहते हैं.. ठीक मेरी तरह..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर गुरुवारीय हलचल प्रस्तुति। आभार रवींद्र जी 'उलूक' को स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन सूत्रों के साथ सुन्दर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत कुछ बयान कर गयी, आज की 'हलचल'!

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!रविन्द्र जी ,खूबसूरत प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर रचनाओं का अभिनव संकल्न ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  8. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा पठनीय लिंक्स...

    जवाब देंहटाएं

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