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शनिवार, 13 जुलाई 2019

1457... टेढ़े-मेढ़े


कल देर रात तक फेसबुक पर वीडियो प्रेम में उलझी रही


कद्रदान तारीख़ तेरह वार शनिवार
असर हुआ तो बुढ़िया का बेड़ा पार
लो नहीं समझ में आई बातें टेढ़े-मेढ़े
आगे खेत था। सरसों की तरह बारीक दोनों वाले कोसरा की
झुकी-झुकी बालियाँ ढलवान से लेकर पहाड़ी के चढ़ाव तक फैली हुई थीं।
जगह-जगह उड़द के सूखे पौधों का ढेर, अधकटे पेड़ों के सिरों पर लदा हुआ था 
और जिर्रा भाजी के नन्हे पौधों में लगे खट्टे फूलों की सुर्क कलगियाँ हिल-हिलकर खींचती थीं।
सुबोध पहले ही चंद्रनगर के पास वाले सूर्यनगर अपने नए मकान मेँ सपरिवार जा चुका था. कुछ महीने हम लोग उस के साथ रहे, फिर 1981 मेँ अपने घर सी-18 चंद्रनगर रहने आ गए. अब तक वहीँ रहते हैँ.जो भी हो, मुंबई से दिल्ली-गाज़ियाबाद तक के सफ़र मेँ जो कठिनाइयाँ आईं, उन से भी भारी कठिनाइयाँ समांतर कोश बनाने मेँ झेलनी पड़ीँ. हमारे लिए रास्ते टेढ़े-मेढ़े
“पर साधु नही माना तो बोले..अच्छा जाना है..तो तेरी मरजी, पर ये तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ? कहते हुए बिहारी जी कुंए की तरफ नहाने चल दिये ।वृन् दवन वाला साधू गुस्से से बोला – . अरे, जब आपका..”नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण, धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन, काम भी तो सारे टेढ़े – कभी किसी के कपड़े चुरा, कभी गोपियों के वस्त्र चुरा और सीधे तुझे कभी किसी ने खड़े होते नहीं देखा।टेढ़े-मेढ़े
हमने तो उनसे हर वादा निभाया था ।
वो अम्दन हमें बेवफा बता रहे थे ।।
अच्छा, तो वो तेरे शहर के मुसाफिर थे ।
जो गुजरते हुए हर बस्ती जला रहे थे ।।
बीच सैराबी वो भी छोड़ चले हमको ।
हम जिनकी खातिर कश्ती बना रहे थेटेढ़े-मेढ़े
लेता रहा कई आड़े-टेढ़े मोड़ फिर पूछ ही लिया
उसने ननिहाल के बारे में नहीं जान पाया अधिक कुछ
फिर जानना चाहा उसने मेरी बस्ती के बारे में नहीं लगा
हाथ कुछ भी पत्नी के ननिहाल तक पहुँचा
वहाँ पर भी असहाय ही रहामुसीबत

अब बारी विषय की
उन्यासिवाँ अंक (79)
विषय
सावन
उदाहरण
एक तो आज के अंक में है
और दूसरा

रात सावन की
कोयल भी बोली
पपीहा भी बोला
मैंने नहीं सुनी
तुम्हारी कोयल की पुकार
तुम ने पहचानी क्या
मेरे पपीहे की गुहार?
कालजयी रचना है ये
रचनाकार
स्मृतिशेष अज्ञेय जी

अंतिम तिथि- 13 जुलाई 2019(शाम 03 बजेतक)
प्रकाशन तिथि- 15 जुलाई 2019
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग संपर्क प्रारूप में ही भेजें
सादर

13 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    आपने तो
    नयी पुरानी हलचल
    की याद दिला दी..
    एक ही रचना पर
    दस लिंक दे दिया करते थे...
    आभार...
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन और बस बेहतरीन...
    आपके नये-पुराने अन्दाज सुखद अनुभूतियां देते हैं ।

    जवाब देंहटाएं
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  4. सुप्रभात।बेहरीन प्रस्तुति दी।कभी-कभी टेढ़ी चाल भी चलनी पड़ती है,टेढ़े सास्ते का भी सफर करना पड़ता है और कभी-कभी टेढ़ा बनकर भी रहना पड़ता है।यह जीवन का कड़वा सच है।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह दीदी ! आज की विविध रचनाएँ आपके वाचन की व्यापकता का बखान कर रही हैं। आपकी प्रस्तुति को पढ़ना एक अलग ही आनंद दे जाता है। सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. अद्भुत प्रस्तुति है दी कितनी अलग और कैसे समेटा सबको एक साथ बहुत अलग बहुत आकर्षक।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही टेढ़ी-मेढ़ी शानदार प्रस्तुति अलग ही अंदाज मे....।

    जवाब देंहटाएं

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