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सोमवार, 1 जुलाई 2019

1445....हमक़दम का सतहत्तरवाँ अंक. ...बारिश...

स्नेहिल नमस्कार
-----
सोमवारीय विशेषांक में 
आप सबका हार्दिक अभिनंदन है।


बरखा ....

ओ सजना बरखा बहार आई

थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी 
जलते तन पर फिर बरस गयी
-श्वेता सिन्हा


..............................
कालजयी रचनाएँ..



मेरी साँसों पर मेघ उतरने लगे हैं,
आकाश पलकों पर झुक आया है,
क्षितिज मेरी भुजाओं में टकराता है,
आज रात वर्षा होगी।
कहाँ हो तुम?






ढक लिया अपने आपको
हल्की-पतली पारदर्शी चादरों से
झीने-झीने, 'लूज'
झीनी-झीनी, लूज बिनावटवाली
वो मटमैली ओढ़नी
बादलों को ढक लेगी अब
अब फुहारोंवाली बारिश होगी
बड़ी-बड़ी बूँदें तो यह
शायद कल बरसेंगे...
शायद परसों...
शायद हफ़्ता बाद...




मेरी इस रेतीली वेला पर
एक और छाप छूट जाएगी
आने की, रुकने की, चलने की


इस उदास बारिश की

पास-पास चुप बैठे
गुपचुप दिन ढलने की!

★★★

सबसे पहले सुनिये
आदरणीया रेणुबाला जी द्वारा प्रेषित
उनकी पसंद का गीत
आओगे जब तुम साजना...

.........................
चलिए अब ब्लॉग का रुख करते हैं;
शब्दों की बारिश ने
मन का मौसम हरा कर दिया है।
सोंधी सी खुशबू हवाओं में फैल गयी है
नयी आशाओं और उम्मीदों के बीज
अंकुराने लगे है।
आइये पढ़ते हैं हमलोग 
हमारे प्रिय रचनाकारों की
रचनात्मक कृतियाँ-
★★★★★


आदरणीया साधना वैद

(तीन रचनाएँ)

क्रोधित त्वरा गगन ...

डराती घटा 
घनघोर गर्जन 
हँसती धरा 


दे चेतावनी 

गरजी तो बरस 
साहसी धरा 
★★★★★




मुझे बारिश घर के बाहर ही अच्छी लगती है लेकिन तुम तो मुझे घर के हर कमरे में उपकृत करने लगीं ! मैंने ऐसा तो नहीं चाहा था ! हर कमरे की छत टपक रही है ! घर के सारे बाल्टी, मग, जग, लोटे, पतीले, भगौने कमरों में जगह-जगह टपकती छत के नीचे रखने पड़े हैं ! सुरक्षित कोने ढूँढ कर कमरों के सामान को तराऊपर गड्डी बना कर समेट दिया गया है !  खिड़की दरवाजों के पास से सामान हटा कर कमरे के बीच में सरका कर रखना पड़ा है

★★★★★




चंचल चुलबुली हवा ने
जाने बादल से क्या कहा
रुष्ट बादल ज़ोर से गरजा
उसकी आँखों में क्रोध की
ज्वाला रह रह कर कौंधने लगी ।
डरी सहमी वर्षा सिहर कर
काँपने लगी और अनचाहे ही
उसके नेत्रों से गंगा जमुना की
अविरल धारा बह चली ।
नीचे धरती माँ से उसका
दुख देखा न गया ,

★★★★★

आदरणीय सीमा सदा जी
 (दो रचनाएँ)
कुछ बूंदे उम्‍मीद की !!!
कुछ बूंदे उम्‍मीद की 
बरसी हैं बादलों से झगड़कर 
आईं हैं धरती पर प्‍यास बुझाने उसकी 
मिलकर माटी से हो गई हैं माटी 
सोंधेपन की खुश्‍बु जब
लिपट गई गई झूम के बयार से 
सावन ने हथेली में लिया प्‍यार से 
उम्‍मीद की कुछ बूंदों को 
मेंहदी में मिलाकर 
रचा लिया जो हथेलियों को 


 

शब्दों की बारिश से
भीगा है मन
मेरे आस पास
कुछ नमी सी है
कहीं तुम उदास तो नहीं ??


★★★★★★



आदरणीय आशा सक्सेना 

(दो रचनाएँ)
स्वागत वर्षा का ....


बूँदें बारिश की  
टपटप टपकतीं
झरझर झरतीं
धरती तरवतर होती
गिले शिकवे भूल जाती |
हरा लिवास  पहन ललनाएं
कई रंग जीवन में भरतीं 
हाथों में मेंहदी रचातीं
मायके को याद करतीं |





बारिश के मौसम में
बरसता जल  
छोटा सा पुल उस पर
छाई  हरियाली 
चहु ओर 
पुष्प खिले बहुरंगे 
मन को रिझाएँ 

★★


आगरणीया सुप्रिया "रानू"

आयी बरखा सब तृप्त करने को ....
फीकी फीकी रसोई में 
भजिया और समोसे तलने को,
रिमझिम बूंदो में भीगकर
अन्तस् के सारे दुख घुलने को,
सोंधी सोंधी मिट्टी की 
खुशब तन मन मे बसने को,
एक एक जीव के मन को संतृप्त करने को
आयी बरखा एक एक कोने को तृप्त करने को..

★★★★★


आदरणीया सुधा सिंह

बरखा रानी....
Varsha, barkha
अमृत बनकर फिर से बरसो  
झम- झम बरसो बरखा रानी। 
अपना रूप मनोहर लेकर  
और सुघड़ बन जाओ रानी ।।  

★★★★★


आदरणीय डॉ. सुशील सर

‘कभी तो खुल के बरस 

अब्र इ मेहरबान की तरह’ 
जगजीत सिंह की 
गजल से जुबाँ 
पर थिरकन 
सी हो रही थी 
कैसे बरसना 
करे शुरु कोई 
उस जगह जहाँ 
बादलों को भी 
बैचेनी हो रही थी 

★★★★★


आदरणीय यशु जान

बारिश आई चलो नहाएं ....

अपने सखी सखा संग खेल, 
हम आनंद उठाएंगे, 
इस बारिश में डूब - डूब कर, 
गीत प्यार का गाएंगे, 
मज़ा लें इसका सारे बच्चे, 
आओ उन्हें बुलाएं, 
काले बादल घनघोर घटाएँ, 
बारिश आई चलो नहाएं | 


★★★★★★


आदरणीया निधि सक्सेना
बारिश खुली नही है अभी ...

बारिश खुली नही है अभी
अभी तो बंधे पड़े हैं बादल
हवाओं का बहकना बाकी है अभी
अभी सूखा पड़ा है मन..


★★★★★★



आदरणीया मीना शर्मा

(दो रचनाएँ)
मेघ-राग ....

चंचल दामिनी दमके,
घन की स्वामिनी चमके,
धरती पर कोप करे,
रुष्ट हो डराए....


गरजत पुनि मेह-मेह

बरसत ज्यों नेह-नेह
अवनी की गोद भरी
अंकुर उग आए....

आओ मेघा बरसो न


इस मन की बंजर भूमि को
थोड़ा - सा उर्वर कर दो ना !
पार क्षितिज के कहाँ रुके हो,
आओ मेघा, बरसो ना !!!

दामिनी का हो अद्भुत नर्तन
शीतल बयार से सिहरे मन !
रिमझिम फुहार से भीगे तन,
भीगे हर तृण, भीगे कण-कण ।


★★★★★
आदरणीया कुसुम कोठारी जी

(दो रचनाएँ)
पहली बारिश की दस्तक

बादलों के अश्व पर सवार है
ये पहली बारिश की आहट है
जो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।






प्यासी कई मास से
विरहन जो धरा थी
आज मिला बूंदों सा मन मीत
धरा के अंग जागा अनंग ।

ढोलक पर बादल की थाप थी
रिमझिम का संगीत था
आज  धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।


★★★★★



आदरणीया सुजाता प्रिया जी 

(तीन रचनाएँ)
बारिश आई है ....
झूमो- नाचो - गाओ  भाई, देखो बारिश आई है।
झोली भरकर खुशियाँ लाई, देखो बारिश आई है।
नभ में बादल गरज रहे,
रूई  जैसे  लरज   रहे,
चलती झूम- झूम पुरवाई, देखो बारिश आई है।







आ  रे पयोधर लट सुलझा दे।
मेघ तू मेंहदी,बिंदिया सजा दे।
काली मेघा लगा दे कजरिया।
आज  बनूँगी मैं  तो बहुरिया।
पहनकर बरखा झमझम चोली।
सखी घन से वह हँसकर बोली।
पहना  आकर  भींगी चुनरिया।
खोइछा-पुड़िया भर दे अचरिया






आषाढ़ माह है बीत रहा,
लेकिन यह बात अनूठी है।


नभ  के  मेघ नहीं बरसते,
क्या  वर्षा  रानी रूठी  है?


पेड़ों  के काटे जाने से,
हरियाली  है  छट  रही।


मॉनसून का मन है सूना,
जलवृष्टि  भी  घट  रही।

★★★★★


आदरणीया शुभा मेहता

बारिश
बारिश की इक बूँद हूँ मैं 
छोटी -सी ,नन्ही -सी 
एक से एक जब मिल जाएँ 
घट भर जाए ......

★★★★★


आदरणीया अनुराधा चौहान

 (तीन रचनाएँ)
तपिश मिटे अब ....
https://narendraraghuvir.blogspot.com/2019/06/blog-post_21.html
आ जाओ अब छा जाओ
मेघों पानी बरसा जाओ
हो"तेरी मेहरबानियाँ"अब
"बारिश"जम कर हो जाने दो
प्रभू"सावन को आने दो"
रिमझिम फुहारों के संग झूमकर
तन-मन को भीग जाने दो






निकला बादलों का सैलाब 
रिमझिम गिरती
बारिश की बूँदें
चेहरे पर खेलती
कुछ पल रुकती 
फिर ढुलक जाती






मिटी वसुधा की प्यास
आखिर झूमकर बरसे बदरा
थिरक उठी बूँदें धरती पर
दे गई तन को शीतलता

★★★★★


आदरणीय अभिलाषा चौहान

आई बारिश (तांका विधा)

जीवनामृत
अंबर से बरसे
तू क्यों तरसे
बूंद-बूंद सहेज
बारिश का जल तू।

★★★★★★


आदरणीय लक्ष्मीनारायण गुप्ता

असहिष्णु बादल.....

अषाढ़, सावन भादों निकले
रिमझिम बरसे बादल।
अपना नाम लिखाती वर्षा
निकली झलका छागल।
हिनहिनाते घोड़े जैसे, बादल निकल गये।

★★★★★


आदरणीय रवीन्द्र भारद्वाज

बारिश में ....

हल्की बारिश में हाथ फैलाकर वो नाँची थी 
कौतुहल से भरा मन मेरा नाँचा
उसे इतना खुश देखकर

★★★★★



कवयित्री डॉ. अनु सपन का प्रसिद्ध 

बरखा गीत।


.....................
एक फिल्मी गीत बारिश पर

रिमझिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाये मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
★★★★★★

आज बस यही तक
काफी लंबी प्रस्तुति है
आराम से पढ़ियेगा।
हमक़दम का
अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।

#श्वेता सिन्हा



17 टिप्‍पणियां:

  1. रचनाओं की बारिश
    तन-मन भींग गया..
    शानदार..
    सभी को शुभकामनाएं..
    सादर..
    शुभ प्रभात..

    जवाब देंहटाएं
  2. व्वाहहहह..
    ब्लॉग के अंदर स्लाइडिग ब्लॉग..
    हमारे ही मोबाईल पर है या सभी के...
    ये चमत्कार है या कलाकारी..
    बहरहाल रचनाएँ सारी रसभरी है..
    आभार...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. वाहः
    उम्दा
    शानदार
    गज़ब
    अद्धभुत
    प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार और अद्वितीय प्रस्तुति... बारिश पर लाजवाब लिंक्स ।
    दिन भर में बारिश में भीगी रचनाएँ पढ़ेंगे । बहुत खूबसूरत संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. इतना कुछ समेट लायी श्वेता जी। लाजवाब अंक। आभार 'उलूक' की बारिश पर भी नजर डालने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!श्वेता ,आज तो रचनाओं की बारिश से हम भी तरबतर हो गए । मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार । सभी रचनाओं का रसास्वादन कुछ समय बाद फुरसत से करूंगी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. "सोना करे झिलमिल झिलमिल
    रूपा हँसे कैसे खिलखिल
    आहा आहा वृष्टि पड़े टापुर टुपुर
    टिप टिप टापुर टुपुर
    वृष्टि पड़े टापुर टुपुर, टापुर टुपुर..."

    इन्ही पंक्तियों सी सोने रूपे सी झिलमिलाती प्रस्तुति, टापुर टुपुर बरखा का आनंद देते अभिनव लिंक और रचनाएं।
    प्रसिद्ध रचनाकारों की कालजयी कृतियां, चलचित्र जगत के झिरमिर फूहार से गीत, क्या नही है इस प्रस्तुति में जो मन को बांध न ले।
    अनुपम संयोजन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी दो रचनाओं को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार ।
    सस्नेह ।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहद खूबसूरत रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. बारिश में भीगने का मजा दे गया अंक। इतनी सुंदर रचनाएँ, इतनी ज्यादा संख्या में....
    ये मौसम का जादू है मितवा !!!
    बहुत सारा धन्यवाद मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए प्रिय श्वेता।
    श्रमसाध्य काम है कम समय में इतनी सब रचनाओं को पढ़ना और समय पर अंक में डालना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. अरे वाह ! खूबसूरत मनभावन विषय और उतनी की मनमोहक रचनाएं ! आज तो खुल कर रचनाओं की बारिश हुई है ! मानसून सच में आ गया ! मेरी भी तीनों रचनाओं को आज के अंक में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! हार्दिक अभिनन्दन !

    जवाब देंहटाएं
  11. वाह अद्भूत प्रस्तुति श्वेता बारिश की वर्षा से सराबोर मन झूम उठा ।बहुत ही सुंदर सरस और मनभावन अंक लाई।
    सभी रचनाएँ काफी मधुर और बेहतरीन हैं। मेरी तीन रचनाओं को एक साथ प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।सप्रेम।

    जवाब देंहटाएं
  12. रिमझिम फुहारों की तरह हर रचना ने सराबोर कर दिया
    सुंदर प्रस्तुति स्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  13. प्यासी नदियाँ, सूखे कुएँ
    चील चिचियाती, उठते धुएँ
    धनके सनके, सूरज पागल
    अब भी भला, न बरसे बादल!... इतनी सुंदर प्रस्तुति कि पढ़ते ही बाहर विकल वारिद वृन्द ने बरबस हल्ला बोल दिया है और धरती लाज से पानी-पानी हो रही है।... सभी रचनाकारों और चर्चाकार को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुंदर सुरुचिपूर्ण अंक प्रिय श्वेता | बारिश का अत्यंत सुहावना अंक जो हमकदम के यादगार अंकों में से एक रहेगा | सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक | सच कहूं तो अभी तक पूरी रचनाओं पर नजर भर मारना भी संभव नहीं हो पाया है | पर जो पढ़ी है वे सराहना से परे हैं उस पर वर्षा के गीतों ने समां बांध दिया | मेरी पसंद के गीत को जगह देने के लिए हार्दिक आभारी हूँ वैसे मैं भी पहले तुम्हारे वाला गीत भेजने वाली थी पर एन मौके पर गीत बदल दिया | सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें | ईश्वर करे वर्षा सबके जीवन में शुभता और खुशहाली लेकर आये बदहाली और तबाही नहीं | मेरी रचना लिख ना पाई सो भेज ना पायी | फिर भी वर्षा के नाम कुछ पंक्तियाँ ---
    वर्षा के बाद ----------------
    भीगी बरसाती रात ढली
    उजला उजला सा दिन निकला
    धुले -धुले सब पेड़ हुए
    खुला सा नीलगगन निकला |
    भरकर पांखों में जान नयी
    खगदल ने भरी उड़ान नयी
    सरिता की चंचल लहरों ने
    उफनकर छेडी तान नई ;
    सागर से मिलने इसका जल
    सब तोडके तट बंधन निकला
    तुम्हे इस सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक शुभकामनायें और आभार |



    जवाब देंहटाएं
  15. सच मे लंबा संकलन है चार चार पंक्तियों ने ही मन मोह लिया है बेहद ऋचीक होगा एक एक रचना को पढ़ना मेरी रचना को भी इस तालिका में संग्रहित करने को बेहद आभार हलचल और स्वेता जी आपको

    जवाब देंहटाएं
  16. लाजवाब अंक
    बारिश पर आधारित रचनाओं का विशेषांक

    मुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार आपका आदरणीया सादर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,रचनाओ का मानसूनी सत्र,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार प्रिय श्वेता,सादर

    जवाब देंहटाएं

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