सादर
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सोमवार, 23 जनवरी 2017
556.....आचार संहिता है हमेशा नहीं रहती है कुछ दिन के लिये मायके आती है
सादर
7 टिप्पणियां:
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जवाब देंहटाएंशानदार विविध रचनाओं का संगम
सादर
हलचल की बहुत सुंदर प्रस्तुति । धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआचार संहिता है हमेशा नहीं रहती है कुछ दिन के लिये मायके आती है लेकिन धमाल मचा के फिर ५ साल के लिए ससुराल में ही छुप जाती हैं ,,, हां हां ..सही कहा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति ...
सुंदर प्रस्तुति आभार आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति । एक हफ्ता बाहर रहा नहीं आ पाया । आभारी हूँ दिग्विजय जी 'उलूक' के एक पुराने पन्ने की धूल हटाने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल!रचना शामिल करने हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार ।
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