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रविवार, 8 जनवरी 2017

541.. फूल से नाराज़ होकर तितली सो गयी है

नमस्कार  दोस्तो
 सुप्रभात
कुछ  राज्यों  मे चुनाव  नजदीक है तो नेता लोग अपनी
अपनी दाल गलाने की कोशिश मे लगे हुए है । अब किसकी दाल गलेगी और किसकी  नही वो तो भविष्य के गर्भ मे छुपा हुआ है लेकिन नेता लोग अपनी दाल गलाने के लिए जिस प्रकार की भाषा और भाषण का उपयोग कर रहे है वो बहुत विचारणीय  प्रश्न है, कि क्या चुनाव  के  समय ऐसी बाते  की जानी चाहिए?  चुनाव  तो एक दो महीने  मे हो जाएगे  फिर तो अपने  गांव और अपने गांववालो के  साथ  रहना है । इसलिए  ऐसा कोई काम या ऐसा कोई शब्द  न कहे कि  फिर पछताना  पडे ।

अरे  भाई  मै भी क्या ज्ञान झाड़ने बैठ गया  । आप को इंतजार है आज की पाँच  लिंको  का  तो प्रस्तुत  है  आज की पाँच  बेहतरीन  लिंक. ......


 ऎसी क्या हो गई खता
नज़रों से उसको गिरा दिया
सम्हलने का अवसर न दिया
आइना उसे दिखा दिया
यदि एक मौक़ा भी दिया होता
मन में गिला न रह जाता


फूल    से  नाराज़   होकर   तितली   सो   गयी     है।

बंद     कमरों    की   ऐसी    हालत     हो   गयी     है।।

हो    गया     सायना    फूल    ज़माने    के    साथ।

मुरझाई    हैं    पाँखें     महक   भी   रो   गयी    है।।


कुछ मीठा हो जाए

              शिद्दत ...

गज़लों के लम्बे दौर से बाहर आने की छटपटाहट हो रही थी ... सोचा नए साल के बहाने फिर से कविताओं के दौर में लौट चलूँ ... उम्मीद है आप सबका स्नेह यूँ ही बना रहेगा ...

तुम्हें सामने खड़ा करके बुलवाता हूँ कुछ प्रश्न तुमसे ... फिर देता हूँ जवाब खुद को खुद के ही प्रश्नों का ... हालांकि बेचैनी है की बनी रहती है फिर भी ... अजीब सी रेस्टलेसनेस ... आठों पहर ...   

क्यों डूबे रहते हो यादों में ... ?
क्या करूं

संगठन की शक्ति – सबसे शक्तिशाली हथियार

“एकता का दुर्ग इतना सुरक्षित होता है कि इसके भीतर रहने वाले कभी भी दुःखी नहीं होते है |”आप ने कभी अंगीठी में जलते हुए कोयले देखा है ? सभी कोयले एक साथ मिलकर कितने तेजस्वी हो जाते है | पर आपने कभी सोचा है जो कोयला अंगीठी में इतना तेजस्वी है अगर उसमें से किसी एक कोयले को अंगीठी से बाहर निकाल कर रख दें तो उस कोयले का क्या हश्र होगा ? जी हां वह अकेला पड़ने पर राख हो जाएगा | इंसान के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है |


अब दिजिये  आज्ञा 
विरम  सिंह  सुरावा 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर लिंक्स ... आभार मुझे शामिल करने का ...

    जवाब देंहटाएं
  2. धन्यवाद वीरम सिंह जी मेरी रचना शामिल करने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. Halchalwith5links मे मेरी रचना शमिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी यह रचना आज मेरे ब्लॉग से अपडेट करते समय विलुप्त हो गयी है जोकि 7.01.2017 को प्रकाशित की गयी थी. ब्लॉग पर रचना पुनः प्रकाशित कर दी गयी है. पांच लिंकों का आनंद के 541 वें अंक में चयनित होने के कारण इसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ.

    फूल से नाराज़ होकर तितली सो गयी है।

    बंद कमरों की ऐसी हालत हो गयी है।।




    हो चला सयाना फूल ज़माने के साथ।

    मुरझाई हैं पाँखें महक भी रो गयी है।।




    नसीहत अब कोई हलक़ से नीचे जाती नहीं।

    दिल्लगी की प्यारी खनक अब खो गयी है।।




    आशियाँ दिलक़श बने जो तेरी शोख़ियाँ हों।

    ताज़ा हवा आँगन में बीज-ए -ख़ुलूस बो गयी है।।




    यादों के आगोश में बैठा हुआ है बोझिल दिल।

    एक मुलाक़ात मैल मन का मनभर धो गयी है।।

    - रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं

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