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रविवार, 8 जनवरी 2017
541.. फूल से नाराज़ होकर तितली सो गयी है
9 टिप्पणियां:
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Wow
जवाब देंहटाएंRegards
सुंदर लिंक्स ... आभार मुझे शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति विरम जी ।
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंस्वागतम्
सुन्दर हलचल प्रस्तुति nh
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा संकलन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीरम सिंह जी मेरी रचना शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंHalchalwith5links मे मेरी रचना शमिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरी यह रचना आज मेरे ब्लॉग से अपडेट करते समय विलुप्त हो गयी है जोकि 7.01.2017 को प्रकाशित की गयी थी. ब्लॉग पर रचना पुनः प्रकाशित कर दी गयी है. पांच लिंकों का आनंद के 541 वें अंक में चयनित होने के कारण इसे यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ.
जवाब देंहटाएंफूल से नाराज़ होकर तितली सो गयी है।
बंद कमरों की ऐसी हालत हो गयी है।।
हो चला सयाना फूल ज़माने के साथ।
मुरझाई हैं पाँखें महक भी रो गयी है।।
नसीहत अब कोई हलक़ से नीचे जाती नहीं।
दिल्लगी की प्यारी खनक अब खो गयी है।।
आशियाँ दिलक़श बने जो तेरी शोख़ियाँ हों।
ताज़ा हवा आँगन में बीज-ए -ख़ुलूस बो गयी है।।
यादों के आगोश में बैठा हुआ है बोझिल दिल।
एक मुलाक़ात मैल मन का मनभर धो गयी है।।
- रवीन्द्र सिंह यादव