निवेदन।


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मंगलवार, 21 जनवरी 2025

4375....दरअसल, तुम समझे नहीं

मंगलवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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धर्म हो या अधर्म,

कोई भी विचार जब तक स्वविवेक से

न उत्पन्न हुआ हो, तबतक धूलकणों की आँधी मात्र होती है 

जिसमें कुछ भी सुस्पष्ट नहीं होता है।

उधार का ज्ञान किसी भी विषय के अज्ञान को ढक 

सकता है समाप्त नहीं कर सकता।

अंधश्रद्धा, कल्पना,आडंबर और ढोंंग का

आवरण जब कठोर हो जाता है तो आत्मा की कोमलता और

लचीलेपन को सोखकर पूरी तरह अमानुषिक और कट्टर 

बना देता  है और अगर धर्म की "कट्टरता" 

मानवता से बड़ी हो जाती है तो

उस व्यक्ति के लिए परिवार, समाज या देश से 

बढ़कर स्व का अहं हो जाता है और वह

 लोककल्याण,परोपकार जैसे मानवीय गुण को अनदेखा कर,

अपने लोग,अपनी जाति का चश्मा पहनकर सबकुछ  देखने 

लगता है। धर्म का अधकचरा ज्ञान 

ऐसे विचार जिसमें उदारता न हो, उसमें हम अपनी आत्मा की नहीं, छद्म ज्ञानियों के उपदेश से प्रभावित होकर

उनके स्वार्थपूर्ति का साधन मात्र रह जाते हैं।

काश कि हम समझ पाते कि हम अन्य मनुष्यों की भाँति ही एक मनुष्य सबसे पहले हैं,

किसी भी जाति या धर्म के अंश उसके बाद।

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आज की रचनाएँ-

 कौतूहल


भीड़ से चिल्लाते हुए जब मैंने कहा
मैं आया हूँ तुम तक बहुत भटक कर
उन्होंने पिलाया मुझे पानी खिलाया
खिलाया अपना अन्न 
और कही एक गहरी बात
‘दरअसल तुम समझे नहीं’




धूल जो मुझमें है, 

मुझे ही साफ करनी है, 

यह जहां है, 

कोई पहुँच नहीं सकता वहाँ 

मेरे सिवा,

पर मैं जानता हूँ 

कि वहाँ पहुँच गया, 

तो उसे हटा भी दूँगा,

कोई धूल कितनी भी 

ज़िद्दी क्यों न हो, 



आंखों में लाल डोरे

धुंआ- धुंआ रात में

हैरान देख हर जगह

ड्योढ़ी,छत,झरोखों में

लिए पूजा का थाल

निर्जल व्रत-उपवासी 

माँ ओढ़े ओढ़नी 

लगा कर टकटकी

करती इंतज़ार..

कब आएगा चाँद ..




वर्तमान पर पड़ते निशान 
भविष्य को अंधा ही नहीं करते,
धरती की काया,
उसकी आत्मा बार-बार तोड़ते हैं।
उन्हें नहीं लिखना चाहिए
कि नैतिकता फूल है,
या
फूलों से खिलखिलाता बगीचा है।




2025 आया। मनन हुआ, चिंतन हुआ, डायरी में नए नए गोल लिखे गए। पूरी रूपरेखा तैयार हो गई। कल शाम को जाकर जिम भी ज्वाइन कर आए थे। हर नन्हें कदम के साथ डायरी में सही का निशान भी लगाते जा रहे थे कि ये स्टेप हो गया अब अगला स्टेप लेना है। जिम ज्वाइन करके जब साइकिल से घर लौट रहे थे तब रास्ते में कहीं डायरी ही गिर गई। काफी खोजा मगर मिली नहीं।


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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 20 जनवरी 2025

4374 ....पैदल तो छाँव-छाँव बस निकल गया

 सादर अभिवादन


वर्ष का 20 वाँ दिन है। 
साल में अभी और 
345 दिन बाकी हैं
क्या-क्या होगा सब 
अभी नेपथ्य में है

आज की रचनाएँ




तिनका तिनका काँटे तोड़े
सारी रात कटाई की
क्यूँ इतनी लम्बी होती है
चाँदनी रात जुदाई की

नींद में कोई अपने-आप से
बातें करता रहता है
काल-कुएँ में गूंजती है
आवाज़ किसी सौदाई की




सात रंग की ओढ़ चुनरिया,
सात रंग का चोला।
भारत को रंगीन बनाने,
सात रंग है घोला।
हाँ जी हाँ हमने घोला,
मिलकर घोला, सात रंग है घोला।




निश्छल मन की बनाये मंजूषा
रह न जाए कोई अभिलाषा ।
लिख लेखनी मन की भाषा
रह न जाये कोई अभिलाषा ।।






जो धूप में रहा वही तो जल गया.
पैदल तो छाँव-छाँव बस निकल गया.

क़िस्मत वो अपने आप ही बदल गया,
गिरने के बावज़ूद जो संभल गया.






पिता जी कोई देह नहीं है वैचारिक तार
दैहिक थे जो चले गए उनके रहे विचार

पिता जी परमार्थ रखे पिता है यथार्थ
वे तो मेरे प्रिय सखे मैं हूं केवल पार्थ

आज बस
वंदन

रविवार, 19 जनवरी 2025

4373 ..सभी को अच्छा बनाने की कोशिश में लगे रहता हैं

शनिवार, 18 जनवरी 2025

4372 ..वसंत आगमन भीनी सी उत्तेजित हवाएं चल रही है

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

4371...मन ही तो वह पानी है जो तन नौका के छिद्रों से भीतर चला आया है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय प्रस्तुति में आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तर प्रदेश साहित्य सभा रामपुर इकाई की काव्य गोष्ठी संपन्न

जो   मुखौटा   कहीं   उतर  जाए,

आज का शख़्स ख़ुद से डर जाए।

उन्होंने मकर संक्रांति पर यह दोहा भी पढ़ा --

समरसता  है बांटता, खिचड़ी  का  यह  पर्व।

करें न क्यों संक्रांति पर,हम सब इतना गर्व।।

कुछ पागल लोग

इन पागल लोगों के कारण ही

कई बार महफिलों की रौनक बढ़ती है

जब ये किसी भी मौके पर  नाच लेते हैं

कर देते हैं सबका मनोरंजन

और लौट आते हैं अपने अंधेरी गुफा में

सुबकते हुये

*****

भव सागर में डोले नैया

मन ही तो वह पानी है

जो तन नौका के छिद्रों से

भीतर चला आया है

तभी तन की यह नाव

जर्जर होती जाती है

नाविक ने कहा भी था

छिद्रों को बंद करो

पानी को उलीचो बाहर

नाव हल्की हुई तो तिर जाएगी

*****

रघुपति राघव राजा राम

गाँधी के हम तीन बंदर।

छल-कपट नहीं मन अंदर।

रघुपति...........

मुंह बंद हम अपना रखते।

बुरी बात हम कभी न कहते।

रघुपति............

***** 

यादों के गलियारों से

ऐसा नहीं था कि खुद रुकना नहीं चाहते थे , पर जिद रुपी शैतान ने बचपन में हमेशा हमारे मन पर कब्जा किया जकड़ कर रखा। जैसे - जैसे बड़े  हुए अपने मन के अड़ियल घोड़े की लगाम कसी, उस पर क़ब्ज़ा किया और कई बार मन की न सुन कर जीवन में बहुत कुछ खोयाहार दोनों  तरह से हमारी  ही…!

खैर अब तो बहुत ही सयाने हो गए हैंकोई शक ????? 😂

*****

 

गुरुवार, 16 जनवरी 2025

4370...कोहरे से ढकी सुबह हुई

गुरूवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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आज की रचनाएँ-
अस्तित्व


 रोशनी का अस्तित्व है 
अंधेरे से 
सुख का 
दुख से 
प्रेम का 
घृणा से 
बसंत का 
पतझड़ से । 


कोहरे से ढकी सुबह हुई 
धुंध छँटी जब धूप खिली
नीली चुनरी पर बूटियों सी
पतंगें नभ पर छाने लगीं

छतों पर टोलियाँ आ जमीं
तिल-गुङ गजक मूँगफली 
केतलियाँ गर्म चाय की
बल्लियों उछलते जोश की



ना हाथ में डब्बा था नमकीन भरा
ना घी चुपड़ी रोटी और आचार
ना थी घर की वो पुरानी नेमते
थोड़ी सी रोली चावल की गोदी
और झूठमूठ के वादे और
वो सच्ची कसमें और सख़्त हिदायते
आज जो फिर मैं सफर पर चला।।



तेरी तस्वीर तो देखता हूँ मगर,
पहले की तरह अब चूमता भी नहीं.
काट लेता हूँ तनहाइयों का नरक,
बेवजह अब कहीँ घूमता भी नहीं.




एक कहावत है कि हर चीज के बिकने की एक कीमत होती है ! तो कीमत लगी, माल खरीदा गया और उसे तरह-तरह के नाम और अलग-अलग तरह की थालों में रख, दुकानों में सजा दिया गया ! इधर पब्लिक अपनी उसी पुरानी भेड़चाल के तहत, अपने-अपने मिजाजानुसार उन दुकानों पर बिकते असबाबों की परख किए बगैर, उनकी गुणवत्ता को नजरंदाज कर, उनके रंग-रूप-चकाचौंध पर फिदा हो अपने सर पर लाद अपने-अपने घरों तक लाती रही ! भले ही बाद में पछताना ही पड़ रहा हो !



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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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बुधवार, 15 जनवरी 2025

4369..अपना सही पता दे...

 ।।प्रातःवंदन।।


"वे रंग बिरंगे रवि की
किरणों से थे बन जाते
वे कभी प्रकृति को विलसित
नीली साड़ियां पिन्हाते।।

वे पवन तुरंगम पर चढ़
थे दूनी–दौड़ लगाते
वे कभी धूप छाया के
थे छविमय–दृश्य दिखाते।। "
हरिऔध
प्रकृति की बदलती तस्वीरें और सूर्य उपासना के पावन पर्व मकर संक्रांति की शुभकामना के साथ शामिल रचनाएँ. .✍️

‘मकर-क्रान्ति से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है , सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर गति करता है ,यानी सूर्य का उत्तरायण होना प्रारम्भ होता है । आज के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने जाता है इसलिये लोग तिल का दान करते हैं ।..वगैरा वगैरा .”
✨️


……
ना ही
सफेद पंखों वाली मासूम परी है।
जिसके पंख काट दिए जाते हैं,
✨️
स्मृतियों में डूबा...भला, बुरा सोचता
 प्रश्नों से जूझता...हलों को ढूंढ़ता
कल को खोजता...आज में जीता 
आस को जगाता...बिश्वास को सूली पे 
लटका हुआ कभी पाता..
✨️



तू आसमां में है
लेकिन अपना
सही पता दे।

कौन जात है तेरी..
✨️
वक्त

बिन जिए ये जिन्दगी जाने कैसे गुजर जाती है।।
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


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