शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आज पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित रचनाएँ-
शायरी | रिश्तों की तासीर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
आज पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित रचनाएँ-
शायरी | रिश्तों की तासीर | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
।।प्रातःवंदन।।
धुंध में लिपटी सर्द सुबह
बीते समय की देहरी पर ठहरी है,
कल भी सब अस्पष्ट था
आज भी वही धुंधली कहानी है।
सड़कें, रास्ते, चौखटें
अब भी तुम्हारी आहट की आस में,
मौन होकर इंतज़ार करती हैं।
(अनाम)
समयानुकूल रचना पढकर ब्लॉग पर भी आप सभी के लिए शेयर कर रही, चयनित रचनाए कुछ इस तरह है..✍️
होना चाहिए इस बात का जिक्र कि
साल के बदल जाने के बाद
क्या क्या बदलेगा
और क्या क्या रह जायेगा
पहले जैसा? .
✨️
जीवन में हमारे साथ कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं जिनसे मिलकर मन विश्राम पाता है । आज अनीता निहलानी जी जिनके ब्लॉग से ही यह शीर्षक लिया है , ग्वालियर भ्रमण पर हैं और मेरा सौभाग्य के उनके..
✨️
सपने भी देखना चाहिए
क्योंकि सपने—
ज़िंदा रहने का सबूत होते हैं।
कुछ सपने
मैं रिकमेंड करता हूँ
ज़रूर देखना—
“बिना साम्प्रदायिकता भड़काए”..
✨️
सर पर प्रभु का हाथ
हिम्मत भी दे साथ
कोई न देगा मात !
मेरे मन के मीत..
✨️
तुझको नम न मिला
और तू खिली नहीं
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '✍️
।।प्रातःवंदन।।
प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए...✍️
आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ लोग बर्फबारी का आनंद लेने के लिए पहाड़ी स्थानों की ओर रुख़ कर रहे हैं। पूरे NCR को प्रदूषण ने अपनी चपेट में ले रखा है। कुल मिलाकर शीत ऋतु का प्रभाव अलग-अलग ढंग से सबको प्रभावित कर रहा है।ठंड में अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए आइए सर्दी वाले कुछ दोहों का आनंद लिया जाए 👇👇
आज की रचनाऍं-
मन की क्षितिज पर, रमते अब भी वही, छलक उठते, ये नयन, जब भी बढ़ती नमी, यूं तो, घेरे लोग कितने, पर है इक कमी, संग, उनकी दुवाओं का, असर, वो हैं, इक नूर शब के, दूर कब हुए! वो, आसमां पे रब हुए.....
साथ है उसके वो
कुछ ख़ास
कुछ अपने
कुछ मन पसंद
कुछ लोग बस लोग
मैं चुप हो गई
चुप शांत नहीं
मेरे टुकड़े खोजती
ना खोजती
कहीं गुम
कहीं खुली
बस हूँ।
किसी दिन बरसूँगी
चीखें तुम नहीं सुन पाओगे।
वह लोकल पकड़कर विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पहुँचा और पैदल गेटवे ऑफ इण्डिया तक चला गया. टिकट लिया और थोड़ी देर बाद नाव में बैठ गया. नाव तट से दूर हुई तो समुद्र की लहरें और तेज़ हवाएँ उसे रोमांचित करने लगीं. बाल हवा में उड़ रहे थे. नाव में दस-पंद्रह किशोर भी थे, जो पिकनिक के लिए एलिफेंटा जा रहे थे. नाव में ही उन से परिचय हुआ. नाव एलीफेंटा पहुँचती तब तक किशोरों से उसकी दोस्ती भी हो चुकी थी.
व्यस्ताओं की चहलकदमी में
सोंधी ख़ुशबुएँ जाग रही थीं
किसी की स्मृति में
शब्द बौराए हुए उड़े जा रहे थे
ठंडी हो रही साँझ के लिए
गर्माहट की ललक में
धूप की कतरन चुनती हुई
अंधेरों में खो जाती हूँ...।
आज की रचनाऍं-
रूखी,सर्द हवाओं से सहमी ,काली-भूरी और सड़क की धूल से धूसर पड़ी पत्तियों वाले उस पेड़ पर झूमते बैंगनी रंग के कचनार दिसंबर की उदासीनता पर हौले से थपकी देता हैं...
समय के नाजुक डोर से
मोती बेआवाज़ फिसल रहा हैं
जाने अनजाने गुज़रते लम्हों पर
आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है
तारीखों के आख़िरी दरख़्त से
जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।
क्यारियों में खिलते गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे की फूटती खुशबू .... अदरक ,इलायची की तुर्श या मसाले वाली करारी चाय से उठती भाप और हथेलियों को आराम देते कप के गुनगुनेपन के बावजूद...
दिसंबर उदास करता है....
प्रतिदिन के कार्यों में से कुछ वक्त निकालकर योग और ध्यान अवश्य करना चाहिए । आपकी बहुत सी अनसुलझी समस्याओं से छुटकारा पाने व तनाव चिंता से मुक्त होने में योगचिकित्सा सहायक सिध्द होती है । आज की तकनीकी भागम-भाग भरी जिंदगी में खुशहाल रहने एवं अपने चारों ओर एक पाॅजिटिविटी बनाए रखने में योग और ध्यान काफी असरकारक है ।
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ईश्वर का एक विशेषण । उ॰—प्रलख अरूप अबरन सो करता । वह सबसों सब वहि सों बरता ।-जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—अलख जगाना=(१) पुकारकर परमात्मा का स्मरण करना या कराना । (२) परमात्माके नाम पर भिक्षा माँगना । यौ॰—अलखधारी । अलखनामी । अलखनिरंजन । अलखपुरुष= ईश्वर । अलखमंव=निर्गुण संत संप्रदाय में ईश्वर मंत्र ।