सादर अभिवादन
पाँच लिंकों का आनन्द
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
निवेदन।
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फ़ॉलोअर
शनिवार, 27 अप्रैल 2024
4109 ...कोयल कूहके ठूँठ पर कैसे पात हो गये पीत
शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
4108....संदेह सबकी निष्ठाओं पर
सोचती हूँ
विश्व के ढाँचें को अत्याधुनिक
बनाने के क्रम में
ग्रह,उपग्रह, चाँद,मंगल के शोध,
संचारक्रांति के नित नवीन अन्वेषण
सदियों की यात्राओं में बदलते
जीवनोपयोगी विलासिता के वस्तुओं का
आविष्कार,
जीवनशैली में सहूलियत के लिए
कायाकल्प तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है
किंतु,
कुछ विचारधाराओं की कट्टरता का
समय की धारा के संपर्क में रहने के बाद भी
प्रतिक्रियाविहीन,सालों अपरिवर्तित रहना
विज्ञान,गणित,भौतिकी ,रसायन,
समाजिक या आध्यात्मिक
किस विषय के सिद्धांत का
प्रतिनिधित्व करता है?
#श्वेता सिन्हा
आइये आज की रचनवो देखता था विस्मय के साथ सबको
वो करता था संदेह सबकी निष्ठाओं पर
वो प्रेम के ग्रह पर पटका गया था
किसी धूमकेतु की तरह
बिना किसी का कुछ बिगाड़े
वो पड़ा था अकेला निर्जन
ऐसे बात करते हैं
कि मुंडेर पर बैठी चिड़िया
बिना डरे बैठी रहे,
कलियाँ रोक दें खिलना,
सूखे पत्ते चिपके रहें शाखों से,
हवाएं कान लगा दें,
दीवारें सांस रोक लें,
ठिठककर रह जाएं
सूरज की किरणें.
खोज लगातार जारी रखना ।
हार कर द्वार बंद मत करना ।
शायद थोङा समय और लगेगा,
अवसर इसी रास्ते से आएगा,
तुम अपनी जगह मुस्तैद रहना ।
गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
4107...गज़ब था बुढापा अजब थी जवानी...
शीर्षक पंक्ति:आदरणीया साधना वैद जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में प्रस्तुत हैं पाँच
पसंदीदा रचनाएँ-
खेल
कैसा है रचाया
अश्रु
हर क्योंकर बहाया,
नयन
स्वयं को देखते न
रहे
उनमें जग समाया!
ऐसा क्यों ? कारण सुनो,
दुख इतना हावी हो जाता,
सुख धूमिल हो
आँसुओं में बह जाता ।
गज़ब था बुढापा
अजब थी जवानी
वो थी शाहजादी
बला की दीवानी
भाया था उसको
एक बूढा अमानी
कसौली की खुशबू ने थाम लिया था...
बुधवार, 24 अप्रैल 2024
4106..हाँ, हम फिर तैयार हैं
।।प्रातःवंदन।।
"लगा राजनीतिज्ञ रहा अगले चुनाव पर घात,
राजपुरुष सोचते किन्तु, अगली पीढ़ी की बात।
शासन के यंत्रों पर रक्खो आँख कड़ी,
छिपे अगर हों दोष, उन्हें खोलते चलो।
प्रजातंत्र का क्षीर प्रजा की वाणी है,
जो कुछ हो बोलना, अभय बोलते चलो..!!"
रामधारी सिंह 'दिनकर'
प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए...✍️
चुम्बक
कोर्ट परिसर में लगातार चहल कदमी करते लोग।
जिनमें शामिल थी खिचड़ीनुमाँ जमात।
कुछ मज़दूर और निम्न वर्गीय लोग, कुछ आम घर परिवारों के नौकरी
पेशा क़िस्म के लोग, कुछ उद्यमी और व्यवसायी लोग। अधेड़, उम्रदराज़
हर उम्र के लोग- कहीं..
✨️
खो रहा मेरा गाँव
खो रहा मेरा गाँव
पंछी और पथिक ढूँढ़ते सघन पेड़ की छाँव,
रो-रो गाये काली चिड़िया खो रहा मेरा गाँव।
दहकती दुपहरी ढूँढ़ रही मिलता नहीं है ठौर;
स्वेद की बरखा से भींजे तन सूझे न कुछ और..
✨️
दिल, दाग, दरिया दुबकते नहीं हैं
हृदय, हाय, हालत बहकते नहीं हैं
प्रयासों से हरदम प्रगति नहीं होती
पहर दो पहर में उन्नति कहीं होती..
✨️
टटोलते टटोलते
एक भूले बिसरे दराज को
मिली है आज एक डायरी पुरानी
जर्जर हो गई है
कुतर भी डाला था ..
✨️
पुराने घर की अंतिम मुसकुराती हुई तस्वीर
आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते-बुझते एक जमाना लगता है....
जाने कितनी बार सुनी यह गज़ल इन दिनों ज़िंदगी का सबक बनी हुई है।
अब जब मन थोड़ा संभल रहा है तो इस बारे में लिखना जरूरी लग रहा है
। घटना जनवरी के किसी दिन की है। संक्षेप में इतना ही कि सुबह हमेशा ..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
4105...मौन की भाषा
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
मौका पाते ही पसरे
ढीठ पीपल की तरह,
बेशर्मी से खींसे निपोरता,
क्यों नहीं है चिंतित मनुष्य
अपने क्रियाकलापों से ...?
मनुष्यों के स्वार्थपरता से
चिंतित ,त्रस्त, प्रकृति के
प्रति निष्ठुर व्यवहार से आहत
विलाप करती
पृथ्वी का दुःख
सृष्टि में
प्रलय का संकेत है।
कबीर का प्रेम..
निर्गुण ब्रह्म में सब कुछ देखता है
सूर का प्रेम ..,
शिशु मुस्कुराहट में खेलता है
गृहस्थी के सार में साँसें लेता है
तुलसी का प्रेम
तो अरावली की उपत्यकाओं में
गूँजता है मीरां का प्रेम
सुन लेते हैं जो मौन की भाषा
जहां छाया है
अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा
वहीं गूंजता है
अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य
और चन्द्रमा का स्पंदन
मिट जाती हैं दूरियाँ
हर अलगाव हर अकेलापन
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सोमवार, 22 अप्रैल 2024
4104 ...खबरची की खबर पर वाह कह के मगर जरूर आता है
सादर अभिवादन