निवेदन।


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बुधवार, 17 दिसंबर 2025

4604..क्या क्या बदलेगा..

।।प्रातःवंदन।।

 धुंध में लिपटी सर्द सुबह

बीते समय की देहरी पर ठहरी है,

कल भी सब अस्पष्ट था

आज भी वही धुंधली कहानी है।

सड़कें, रास्ते, चौखटें

अब भी तुम्हारी आहट की आस में,

मौन होकर इंतज़ार करती हैं।

(अनाम)

समयानुकूल रचना पढकर ब्लॉग पर भी आप सभी के लिए शेयर कर रही, चयनित रचनाए कुछ इस तरह है..✍️

साल की आखिरी कविता में 


 होना चाहिए इस बात का जिक्र कि 

साल के बदल जाने के बाद 

क्या क्या बदलेगा 

और क्या क्या रह जायेगा 

पहले जैसा?  .

✨️

मन पाए विश्राम जहाँ

 जीवन में हमारे साथ कुछ लोग ऐसे अवश्य होते हैं जिनसे मिलकर मन विश्राम पाता है । आज अनीता निहलानी जी जिनके ब्लॉग से ही यह शीर्षक लिया है , ग्वालियर भ्रमण पर हैं और मेरा सौभाग्य के उनके..

✨️

अभी सपनों पर पाबंदी नहीं लगी”




सपने भी देखना चाहिए

क्योंकि सपने—

ज़िंदा रहने का सबूत होते हैं।

कुछ सपने

मैं रिकमेंड करता हूँ

ज़रूर देखना—

“बिना साम्प्रदायिकता भड़काए”..

✨️

त्रिपदा छंद

 

सर पर प्रभु का हाथ

हिम्मत भी दे साथ


कोई न देगा मात !

मेरे मन के मीत..

✨️

व्यथा

 तुझको नम न मिला

और तू खिली नहीं

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '✍️

मंगलवार, 16 दिसंबर 2025

4603..अकेला क्यों..

।।प्रातःवंदन।।

प्रस्तुतिकरण के क्रम को बढाते हुए...✍️

आधा दिसंबर गुज़र चुका है। ठंड धीरे-धीरे अपने तेवर दिखाने लगी है। कुहरे और सूरज दादा में जंग जारी है। कुछ लोग बर्फबारी का आनंद लेने के लिए पहाड़ी स्थानों की ओर रुख़ कर रहे हैं। पूरे NCR को प्रदूषण ने अपनी चपेट में ले रखा है। कुल मिलाकर शीत ऋतु का प्रभाव अलग-अलग ढंग से सबको प्रभावित कर रहा है।ठंड में अपना और अपनों का ध्यान रखते हुए आइए सर्दी वाले कुछ दोहों का आनंद लिया जाए 👇👇

दोहे सर्दी वाले 
***********
माह  दिसंबर  आ   गया,ठंड  हुई    विकराल।
ऊपर   से   करने  लगा,सूरज  भी   हड़ताल।।

हाड़   कँपाती   ठंड   से,करके   दो-दो   हाथ।
स्वार्थ  बिना   देती  रही,नित्य  रजाई   साथ।।
✨️
कुछ फटे बदरंगे अध लिखे पन्ने किताबों के संभाल रखने को दिल करता हैं l

इसकी कोई धुंधली तस्वीर जाने क्यों आज भी अक्सर अकेले में बातें करती हैं ll
✨️
स्विमिंग पूल में हार का जश्न खेलावन काका की कलम से बिहार के लोग भी अजीब बिहारी हैं। सब तरह की खुमारी है और हर जगह मारा-मारी है। मारा-मारी मतलब लाठी-डंडा नहीं बाबू, कुर्सी की। यहाँ कुर्सी ऐसी चीज़ है कि जिसको मिल जाए, वह बैठता नहीं, जम जाता है। और जम गया तो फिर पीढ़ियाँ बदल जाएँ, कुर्सी नहीं..
✨️


सबके फायदे की बात हो तो मैं लिखने से गुरेज़ नहीं करती, चाहे विषय थोड़ा संकोच वाला ही क्यों न हो, क्योंकि यह समस्या हर यात्रा करने वाली महिला की है।

सफ़र के दौरान—रेल, फ्लाइट, मॉल, ऑफिस, कहीं भी—पब्लिक टॉयलेट की साफ़-सफ़ाई सबसे बड़ी चुनौती बन जाती है।..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद 
पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '..✍️

सोमवार, 15 दिसंबर 2025

4602...चीख़े तुम सुन नहीं पाओगे

सोमवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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स्वयं समर्थ हो तुम
जीवन का सार
संपूर्ण अर्थ हो तुम
उठाओ कटारी 
काट डालो
दुख की हर डाली 
रोक लो लौटते
सुख को
अड़ जाओ पथ पर
बाँध दो
ज़िद की ज़जीर भारी।
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आज की रचनाऍं-


पूर्वज



मन की क्षितिज पर, रमते अब भी वही, छलक उठते, ये नयन, जब भी बढ़ती नमी, यूं तो, घेरे लोग कितने, पर है इक कमी, संग, उनकी दुवाओं का, असर, वो हैं, इक नूर शब के, दूर कब हुए! वो, आसमां पे रब हुए.....


एक शख़्स मौजूद था


साथ है उसके वो 

कुछ ख़ास 

कुछ अपने 

कुछ मन पसंद 

कुछ लोग बस लोग 

मैं चुप हो गई

चुप शांत नहीं 

मेरे टुकड़े खोजती 

ना खोजती 

कहीं गुम 

कहीं खुली 

बस हूँ। 

किसी दिन बरसूँगी 

चीखें तुम नहीं सुन पाओगे। 




देश हमारा है


हर मौसम के 
रंग यहाँ 
फूलों की घाटी है ,
अनगिन 
वीर शहीदों की 
यह पावन माटी है ,
सत्यमेव जयते 
इसका 

सदियों से नारा है |



ट्रेन मिल गयी



वह लोकल पकड़कर विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पहुँचा और पैदल गेटवे ऑफ इण्डिया तक चला गया. टिकट लिया और थोड़ी देर बाद नाव में बैठ गया. नाव तट से दूर हुई तो समुद्र की लहरें और तेज़ हवाएँ उसे रोमांचित करने लगीं. बाल हवा में उड़ रहे थे. नाव में दस-पंद्रह किशोर भी थे, जो पिकनिक के लिए एलिफेंटा जा रहे थे. नाव में ही उन से परिचय हुआ. नाव एलीफेंटा पहुँचती तब तक किशोरों से उसकी दोस्ती भी हो चुकी थी.





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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।



रविवार, 14 दिसंबर 2025

4601...सच तो यह है कि...

रविवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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व्यस्ताओं की चहलकदमी में

सोंधी ख़ुशबुएँ जाग रही थीं 

किसी की स्मृति में 

शब्द बौराए हुए उड़े जा रहे थे 

ठंडी हो रही साँझ के लिए

गर्माहट की ललक में 

धूप की कतरन चुनती हुई

अंधेरों में खो जाती हूँ...


आज की रचनाऍं-



मैं कुछ लिखना चाहता हूँ,
जो मौन का स्पन्दन हो,
शब्दों से पहले जो बोले,
पर कुछ लिख नहीं पा रहा।

मैं कुछ लिखना चाहता हूँ,
आंसुओं की सुर्ख स्याही से,
गालों पर लिखी कविता सा,
पर कुछ लिख नहीं पा रहा।



सच तो यह है कि
आईना हर रोज़
तुम्हारा इंतज़ार करता है
तुम्हारी आँखों के आईने में
खुद को देखने के लिए।



जीवन के प्रति सुख और दुख में श्रद्धावान बने रहना आपसे सीखा। अपनी संतान के प्रति कठोर और तरल समानांतर चलते हुए बने रहना सीखा। त्याग और परिश्रम से डरना नहीं। स्वाभिमान कायम रहे, विचारवान बने रहना सीखा। आपके आगे मेरा हर तर्क, हर शिकायत, हर अहं मौन हो जाता था और है। आप बच्चे जितनी सरल और विद्वानों जितनी कठोर थीं।


कंडाली रे कंडाली, अमृत का प्याला, ,
लेमन ग्रास तुलसी संग, ग्रीन टी निराला।
पहाड़ी की शान है, गढ़वाल का गीत,
कुमाऊँनी सिसूण संग, जुड़ता हर प्रीत।
गर्मी में नाजुक है, पानी से सँभालो,
बरसात में खिल उठे, बगिया को सँवारो।

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

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शनिवार, 13 दिसंबर 2025

4600...देखती हूॅं उस वक़्त को...

शनिवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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रूखी,सर्द हवाओं से सहमी ,काली-भूरी और सड़क की धूल से धूसर पड़ी पत्तियों वाले उस पेड़ पर झूमते बैंगनी रंग के कचनार दिसंबर की उदासीनता पर हौले से थपकी देता हैं...


समय के नाजुक डोर से

मोती बेआवाज़ फिसल रहा हैं

जाने अनजाने गुज़रते लम्हों पर

आवरण इक धुंधला सा चढ़ रहा है

तारीखों के आख़िरी दरख़्त से 

जर्द दिसंबर टूटने को मचल रहा है।


क्यारियों में खिलते गुलाब, गुलदाऊदी और गेंदे की फूटती खुशबू .... अदरक ,इलायची की तुर्श या मसाले वाली करारी चाय से उठती भाप और हथेलियों को आराम देते कप के गुनगुनेपन के बावजूद...

दिसंबर उदास करता है....





और तुम—
मुरादाबाद, गाज़ियाबाद
इतना मत इतराओ,
तुम्हारा हश्र भी
एक दिन यही होना है।
संस्कारित नाम मिलते ही
तुम्हारा पुराना नाम
किसी फाइल में
धीरे से दबा दिया जाएगा।



आँखों के नीचे
उभर आई महीन रेखाएँ
कभी दुलराती हैं मुझे,
कभी सच का पानी बनकर
आँखें साफ कर जाती हैं


ठि‍ठकती हूं, देखती हूं उस वक्‍त को
जो जाने कब, कैसे 
गुजर गया, अपनी छाप छोड़कर 



सीली लकड़ी
बुझ गया अलाव
जल उठा नसीब !

आज भी ‘हल्कू’
बिताते सड़क पे
पूस की ठण्डी रात


योग और आप


प्रतिदिन   के   कार्यों  में  से  कुछ  वक्त  निकालकर   योग  और   ध्यान   अवश्य  करना  चाहिए  ।   आपकी  बहुत  सी  अनसुलझी  समस्याओं  से  छुटकारा  पाने  व   तनाव  चिंता  से  मुक्त होने  में  योगचिकित्सा  सहायक  सिध्द   होती   है ।  आज  की  तकनीकी  भागम-भाग  भरी   जिंदगी  में  खुशहाल  रहने  एवं  अपने  चारों  ओर  एक पाॅजिटिविटी  बनाए   रखने  में  योग  और  ध्यान  काफी असरकारक  है  । 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025

4599...हम सब टाइम ट्रेवलर हैं

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज की रचनाऍं- 


स्टेशन आया
लोग उतरे, लोग चढ़े,
और आइंस्टीन ने खिड़की से झाँककर कहा,
देखो… हम सब टाइम-ट्रैवलर हैं
फ़र्क बस इतना है कि
कोई अपने अतीत में अटका है,
कोई भविष्य की चिंता ढोता है,
और कोई वर्तमान को
दोनों मुट्ठियों में पकड़े
खड़ा रह जाता है।




अब जब वह नहीं है,
तो पता चला है 
कि वह थी,
पर उसे कभी पता नहीं चलेगा 
कि हमें पता चल गया है 
कि वह थी। 



ग़फ़लत में अधूरा रह गया इश्क़ का फ़साना,
हम समझते रहे, वो हमसे ख़फ़ा नहीं होता।।

जानकर दूरियाँ बढ़ा लीं होंगी उसने,
वरना यूँ ही तो वो जुदा नहीं होता।।


 ईश्वर का एक विशेषण । उ॰—प्रलख अरूप अबरन सो करता । वह सबसों सब वहि सों बरता ।-जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—अलख जगाना=(१) पुकारकर परमात्मा का स्मरण करना या कराना । (२) परमात्माके नाम पर भिक्षा माँगना । यौ॰—अलखधारी । अलखनामी । अलखनिरंजन । अलखपुरुष= ईश्वर । अलखमंव=निर्गुण संत संप्रदाय में ईश्वर मंत्र ।


लोगों में अवॉर्ड्स और पुरस्कार पाने की होड़ जब देखती हूँ तो मन में हंसती हूँ।अपनी चालीस साल की जॉब को अच्छी तरह से निभा सकी। बहुत सम्मान और स्टुडेंट्स का प्यार पाया। अपने पढ़ाए बच्चों को अच्छी जगह सैटल्ड हुआ , अच्छा आर्टिस्ट बने देखती हूँ तो परम सन्तोष होता है। बच्चों की परवरिश पति , परिवार के सहयोग व ईश्वर कृपा से सन्तोषजनक रूप से पूरी कर सकी। उनके प्रति भी कर्तव्य पूरे कर मुक्त हुई। और असाध्य भीषण बीमारी को आस्था व विश्वास की उंगली थाम पार कर सकी , तो लगता है जैसे दुनियां के सारे अवॉर्ड्स मैंने जीत लिए हैं…सोते समय एक गहरी सन्तोष की साँस लेकर सोचती हूँ ….और क्या चाहिए ? 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

4598....दिल का बोझ उतार सको

 गुरूवारीय अंक में
आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
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दिसंबर,

वर्ष के कैलेंडर पर

आख़िरी पन्ना है;

सर्र-सर्र सीतलहरी की आड़

सुनहरी खिली हुई है धूप

टहनी से टूटकर

तने पर अटका हुआ पीला पत्ता,

सिकुड़े दिन और कंपकंपाती रात

किसी के लिए रूई की गर्माहट

किसी के लिए फटी हुई चादर

किसी के कटोरे में ठंडा भात है

किसी के गर्म दूध  

एक तारीख़ से दूसरे की यात्रा  

निर्विघ्न,अनवरत

क्या फर्क पड़ता है

दिसंबर हो या जनवरी।

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आज की रचनाऍं- 

वात्सल्य छवि अर्पण निखरी थी जिस मातृत्व छाँव
 को l
ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम
 को ll
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात 
को l
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात 
को ll




कुछ ही सब सुन पाते हैं 
कुछ ही सब कह पाते हैं,
सुनकर कुछ भी जज न करना,
तसल्ली से कह भर देना,
दिल का बोझ उतार सको तो 
ये कंधा हर बार मिलेगा,

रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब



'रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब' उस दरगुजर होती कश्मीर की खूबसूरती को, उस ख़ुशबू को सहेजता है। 8 एपिसोड की यह सीरीज देख लीजिये। देख लीजिये कि कश्मीर के नाम पर नफ़रत का समान बहुत परोसा गया है,  लेकिन यह प्यार है। जब-जब लगता है कि अरे, यह तो सीरीज है, ऐसा होता भी काश, तब तब ध्यान आता है कि यह सच्ची कहानी पर आधारित है। यानि हैं कुछ दीवाने लोग जो नफरत की आंधियों में मोहब्बत का दिया जलाए हुए हैं।



रामजन्म भूमि परिक्रमा मार्ग पर बनने वाले मंदिर, वहां बनी गिलहरी की मूर्ति भी अत्यंत सुंदर है।अब हम वहां से सरयू घाट के लिए निकल पड़े थे। वहां पर कार्ट चल रहीं थीं और ई रिक्शा व आटो की भी कमी नहीं थी। यहां भी नवीनीकरण का कार्य चल रहा था।सरयू की कल-कल धारा निर्बाध गति से बह रही थी। बहुत सुंदर है सरयू घाट...




इन सारी बातों के अलावा शादी विवाह में इतना दिखावा और फिजूलखर्ची का चलन हो गया कि आम औसत आमदनी के व्यक्ति के लिए ऐसी आडम्बरपूर्ण शादियाँ करना बिलकुल बस के बाहर हो गया ! लेकिन बेटी के ससुराल पक्ष के लोगों की डिमांड्स पूरी करने के लिए उन्हें इस तकलीफ से भी गुज़रना पड़ता है जो कि बहुत ही शर्मनाक एवं कष्टप्रद अनुभव होता है !


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आज के लिए इतना ही
मिलते है अगले अंक में।
सादर आभार।



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