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रविवार, 17 दिसंबर 2017

884..पीछे की बहुत हो गयी बकवासें कुछ आगे की बताने की क्यों नहीं सीख कर आता है

गणित आप बताएँगे....
क्या होगा आज नया कुछ
और क्या हुआ होगा...
बरसों पहले...... 
सच में कुछ भी नही हुआ
शांत बीता दिन
सादर अभिवादन स्वीकारें....
.......आज की पसंदीदा रचनाएँ....

   नव प्रवेश   

तुम और तुम्हारा एहसास....ज्योति
सुबह की गुनगुनी धूप और तुम एक जैसे ही हो
दोनों ही मन मोह लेते हो
तुम्हारा प्यार भरा आगोश
और ये सतरंगी धूप
दोनों की तासीर एक जैसी ही तो है


हम ग़ज़ल कह रहे हैं तुम्हारे लिये.....डॉ. सुभाष भदौरिया
हम ग़ज़ल कह रहे हैं तुम्हारे लिये.
मुस्कराओ ज़रा तुम हमारे लिये.

एक हम थे जो तूफ़ान से भिड़ गये,
लोग बैठे रहे सब किनारे लिये.

...........


कोमल सर्दी की गुलाबी ठिठुरन......स्मृति आदित्य
याद 
जो बर्फीली हवा के 
तेज झोंकों के साथ 
तुम्हें मेरे पास लाती है, 
तुम नहीं हो सकते मेरे 
यह कड़वा आभास 
बार-बार भुला जाती है,


विधवा......श्वेता सिन्हा
भरी कलाई,सिंदूर की रेखा
है चौखट पर बिखरी टूट के
काहे साजन मौन हो गये
चले गये किस लोक रूठ के
किससे बोलूँ हाल हृदय के
आँख मूँद ली चैन लूट के



कुत्तों ने "शोले" देखी....गगन शर्मा
गंदे से आदमी ने उस लड़की से कहा, छमिया नाच के दिखा। तो खंबे से बंधा हट्टा-कट्टा आदमी बोला, नहीं बासंती, इस कुत्ते के सामने मत नाचना। अब बोलो अंदर हाल में इतने लोग नाच देखने को इकट्ठे हुए थे। उधर वह गंदा सा आदमी और बहुत से लोग बंदुके लिये खड़े थे अब मेरे कारण नाच नहीं हो पाता तो सबने मिल कर मुझे मारना ही था सो मैं भाग आया।



दिल के अनुसार नहीं होता....लोकेश नशीने
इन्कार नहीं होता इकरार नहीं होता
कुछ भी तो यहाँ दिल के अनुसार नहीं होता

लेगी मेरी मोहब्बत अंगड़ाई तेरे दिल में
कोई भी मोहब्बत से बेज़ार नहीं होता


चूहे के न्याय से बिल्ली का अत्याचार भला...कविता रावत
गीदड़ भाग जाते हैं पर बंदरों को डंडे पड़ते हैं
कानून से अधिक उल्लंघन करने वाले मिलते हैं।

चूहे के न्याय से बिल्ली का अत्याचार भला
अन्यायपूर्ण शान्ति से न्यायपूर्ण युद्ध भला




आज की सोच....पहले भी यही थी सोच
सोच बदलती नहीं कभी...उलूक के पन्ने से

जिंदगी 
ने समझा 
कुछ 
‘उलूक’ के 
उल्लूपन को 
कुछ 
उल्लूपने ने 
जिंदगी के 
बनते 
बिगड़ते 
सूत्रों का राज 
जिंदगी को 
बेवकूफी 
से ही सही 
बहुत अच्छी 
तरह से 
समझाया
....
छपते - छपते.....
एक और नया पन्ना


रहने दे ‘उलूक’ 
क्यों खाली खुद 
भी झेलता है और 
सामने वाले को 
भी झिलाता है 

कभी दिमाग लगा कर 
‘एक्जिट पोल’ जैसा 
आगे हो जाने वाला 
सच बाँचने वाला 
क्यों नहीं हो जाता है 




आज रचनाएँ काफी से अधिक हो गई हैं
आदेश दें दिग्विजय को ..
















12 टिप्‍पणियां:

  1. सुध्रभातम्आदरणीय सर जी,
    विविधतापूर्ण रंगों से सजी आज की सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए बहुत आभार आपका। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है। सभी सााथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई राजा की अति सुंदर प्रस्तुतीकरण
    अक्षय शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. हर रंग से सजा उम्दा संकलन
    सभी रचनाकारों की बेहतरीन रचनायें
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा संकलन
    सभी रचनाकारों की बेहतरीन रचनायें....शुभकामनायें
    हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. समझ में नहीं आता है कैसे झेल लेते हैं कुछ लोग बाकवासों को? जो है सो है आभार है 'उलूक' का ।

    जवाब देंहटाएं
  7. शानदार प्रस्तुति सभी रचनाऐं असाधारण रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुंदर संकलन प्रस्तुत किया है सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं

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