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गुरुवार, 27 अप्रैल 2017

"अतिथि चर्चा-अंक-650" (चर्चाकार-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

प्रथम नमन माँ शारदे, दूजा कलम-दवात। 
माता जब हों साथ तो, बन जाती हर बात।।
--
बिना साज संगीत के, बजा रहा हूँ साज।
पालन अतिथि धर्म का, करता हूँ मैं आज।।

शब्दों से मत कीजिए, कोई तोड़-मरोड़।
जो उपयोगी हैं नहीं, उन्हें दीजिए छोड़।।

क्या आदमी सच में आदमी है ? 

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भैंसे से जब आदमी, जोत रहा हो खेत।
पानी बरसा गगन से, कुदरत हुई सचेत।।
! कौशल ! पर Shalini Kaushik  
तिनका-तिनका जोड़कर, बना लिया जब नीड़।
देख सलोना घोंसला, मिटी ह़दय की पीड़।।
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम

उम्र के खत 

(अमृता प्रीतम) 

...यह मेरी ज़िन्दगी की सड़क कैसी है,जिसके सारे मील के पत्थर हादसों  के बने हुए हैं ।तुम थे तो घर नहीं था ।आज घर है तो तुम नहीं हो  थोड़े से मीलो की दूरी होती है ,पर एक कानून की छोटी सी मोहर उसे दूसरी दुनिया की दूरी बना देती है ।मैं अजीब तरह से परेशान हूँ और ऐसा लग रहा है जैसे यह बेचनी मेरी उम्र जितनी लम्बी है ,या मेरी उम्र का नाम ही बैचनी है ।
29 .3.62
आशी 
ranjana bhatia 

----- ।। उत्तर-काण्ड ५६ ।। ----- 

 पुनि जलहि कर जोर जोहारे | 
सजिवनिहु जियन तुअहि निहारे || 
आरत जगत राम सुखदाता | 
त्रसित जीउ के रामहि त्राता... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal  

सुकुमा काण्ड पर तीन कविताएँ 

मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल 

क्या हादसा ये अजब हो गया..... 

महेश चन्द्र गुप्त ‘ख़लिश’ 

क्या हादसा ये अजब हो गया 
बूढ़े हुए, इश्क़ रब हो गया 
चाहत का पैग़ाम तब है मिला 
पूरा सभी शौक जब हो गया... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
कविता : 
हिंदी 
हिंदी दिवस पर अरमान लगाए रखना,
हिंदी में बिंदी लगाकर,
इसकी पहचान बनाए रखना | 
इस संसार में भाषाएँ है अनेक, 
उनमें से हिंदी भाषा है एक  | 
रंग लाएगी एक शब्द बोलकर देखो 
न होगी कोई कठिनाई,
बाजार में बाल काट रहा होगा नाइ | 
नहीं आएगी तो चिल्लाओगे माई -माई,
क्योंकि लगा दिया है हमने,

हिंदी में बिंदी भाई |
बाल सजग 
हिन्दी उर्दू भाषाएँ व लिपियाँ -  
नवीन 
"फ़ारसी लिपि (नस्तालीक़) सीखो नहीं तो हम आप की ग़ज़लों को मान्यता नहीं देंगे" टाइप जुमलों के बीच मैं अक्सर सोचता हूँ क्या कभी किसी जापानी विद्वान ने कहा है कि "हाइकु लिखने हैं तो पहले जापनी भाषा व उस की 'कांजी व काना' लिपियों को भी सीखना अनिवार्य है"। क्या कभी किसी अंगरेज ने बोला है कि लैटिन-रोमन सीखे बग़ैर सोनेट नहीं लिखने चाहिये।

मेरा स्पष्ट मानना है कि:-
तमाम रस्म-उल-ख़त* सरज़मीन हैं जिन पर। ज़ुबानें पानी की मानिन्द बहती रहती हैं॥ *लिपियाँ
उर्दू अगर फ़ारस से आयी होती तब तो फ़ारसी लिपि की वकालत समझ में आती मगर यह तो सरज़मीने-हिन्दुस्तान की ज़ुबान है भाई। इस का मूल स्वरूप तो देवनागरी लिपि ही होनी चाहिये - ऐसा मुझे भी  लगता है। हम लोगों ने रेल, रोड, टेम्परेचर, फ़ीवर, प्लेट, ग्लास, लिफ़्ट, डिनर, लंच, ब्रेकफ़ास्ट, सैलरी, लोन, डोनेशन जैसे सैंकड़ों अँगरेजी शब्दों को न सिर्फ़ अपनी रोज़मर्रा की बातचीत का स-हर्ष हिस्सा बना लिया है बल्कि इन को देवनागरी लिपि ही में लिखते भी हैं। इसी तरह अरबी-फ़ारसी लफ़्ज़ों को देवनागरी में क्यों नहीं लिखा जा सकता। उर्दू के तथाकथित हिमायतियों को याद रखना चाहिये कि देवनागरी लिपि उर्दू ज़ुबान के लिये संजीवनी समान है... 


ठाले बैठे 
सुमन की पाती 

बावरा मन 
तू इसमें रहेगा 
और यह तुझ में रहेगा  
रेम में डूबे जोड़े हम सब की नजरों से गुजरे हैं, एक दूजे में खोये, किसी भी आहट से अनजान और किसी की दखल से बेहद दुखी। मुझे लगने लगा है कि मैं भी ऐसी ही प्रेमिका बन रही हूँ, चौंकिये मत मेरा प्रेमी दूसरा कोई नहीं है, बस मेरा अपना मन ही है। मन मेरा प्रेमी और मैं उसकी प्रेमिका। हम रात-दिन एक दूजे में खोये हैं, आपस में ही बतियाते रहते हैं, किसी अन्य के आने की आहट भी हमें नहीं होती और यदि कोई हमारे बीच आ भी गया तो हमें लगता है कि अनावश्यक दखल दे रहा है। मन मुझे जीवन का मार्ग दिखाता है और मैं प्रेमिका का तरह सांसारिक ऊंच-नीच बता देती हूँ, मन कहता है कि आओ कहीं दूर चलें लेकिन मैं फिर कह देती हूँ कि यह दुनिया कैसे छोड़ दूं? मन मुझे ले चलता है प्रकृति के निकट और मैं प्रकृति में आत्मसात होने के स्थान पर गृहस्थी की सीढ़ी चढ़ने लगती हूँ। हमारा द्वन्द्व मान-मनोव्वल तक पहुंच जाता है और अक्सर मन ही जीत जाता है। मैं बेबस सी मन को समर्पित हो जाती हूँ। मन मेरा मार्गदर्शक बनता जा रहा है और मैं उसकी अनुयायी भर रह गयी ह.... 
अजित गुप्ता का कोना 

12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    आदरणीय मयंक भाई साहब
    सादर अभिवादन
    अविस्मरणीय अंक का संयोजन किया आपने
    निसन्देह यह अंक याद किया जाएगा
    हम सब "पांच लिंकों का आनन्द" के चर्चाकार गण
    हृदय से आभारी हैं.....
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर संयोजन । मेरी रचना CRPF के 26 जवानों की शहादत पर आक्रोश करती रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। 650 वें अंक की बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह्ह्ह...शानदार संकलन...बहुत सुंदर..650वें अंक लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभप्रभात सर...
    आनंद आ गया...
    आदरणीय सर...
    ब्लौग चर्चा की जो अलख आपने चर्चा मंच के रूप में प्रजवलित की है...
    पांच लिंकों का आनंद उसी प्रेर्णा का एक छोटा सा अंकुर है...
    आप का आशिर्वाद हमे मिलता रहेगा हमे आशा ही नहीं विश्वास भी है....
    पुनः आभार...

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह..
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. सुप्रभात
    सादर प्रणाम
    बहुत ही अच्छी हलचल प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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