निवेदन।


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बुधवार, 26 मार्च 2025

4439..तुम कह देना..

 ।।प्रातःवंदन।।

देख रहे क्या देव, खड़े स्वर्गोच्च शिखर पर

लहराता नव भारत का जन जीवन सागर?

द्रवित हो रहा जाति मनस का अंधकार घन

नव मनुष्यता के प्रभात में स्वर्णिम चेतन!

 सुमित्रानंदन पंत

  आज की पेशकश में शामिल रचनाए..✍️

मैं लौट आता हूं अक्सर ...


लौट आता हूं मैं अक्सर 

उन जगहों से लौटकर

सफलता जहां कदम चूमती

है दम भरकर 

शून्य से थोड़ा आगे

जहां से पतन हावी

होने लगता है मन पर..

✨️

जूडिशियरी में बहुत पुराना है अंकल जज सिंड्रोम, जस्टिस वर्मा विवाद के बाद फ‍िर छिड़ी बहस..


 



दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 14 मार्च 2025 को करोड़ों रुपए के अधजले नोट बरामद होने के बाद अंकज जज सिंड्रोम एक बार फिर बहस का केंद्र बन ..

✨️


तुम कह देना / अनीता सैनी

एक गौरैया थी, जो उड़ गई,

 एक मनुष्य था, वह खो गया।

 तुम तो कह देना

 इस बार,

 कुछ भी कह देना,

✨️

कोई तो उस तरह से अब मेरे करीब नही,

कोई शिकवा कोई शिक़ायत कोई उम्मीद नही,

बस मुलाक़ात से बढ़कर हमे कोई चीज़ नही,

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️


मंगलवार, 25 मार्च 2025

4438...आत्मा का चरम संगीत

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------

अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः!उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् !!


हिन्दी अर्थ : निम्न कोटि के लोगो को सिर्फ धन की इच्छा रहती है, ऐसे लोगो को सम्मान से मतलब नहीं होता. एक मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा करता है वही एक उच्च कोटि के व्यक्ति के सम्मान ही मायने रखता है. सम्मान धन से अधिक मूल्यवान है।


असली प्रश्न यह नहीं कि मृत्यु के बाद
जीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि 
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?


आज की रचनाएँ-

चहक उठती है सुबह सुबह  
गुलमोहर की टहनियों में
कोई चिड़िया ।
गाती है आत्मा का चरम संगीत
प्रेम तोड़ता नहीं , जोड़ता है परम से    .
मनाती है आनन्द का उत्सव ,
अपने आप में डूबी हुई
एक उम्रदराज स्त्री ,
जब होती है किसी के प्रेम में ,
गाती गुनगुनाती हुई
उम्र की तमाम समस्याओं को
झाड़कर डाल देती है डस्टबिन में ।   


उन जिद्दी हवाओं की खुशबू 
रोज एक गीत लिखती है
कि दुनिया एक रोज 
सबके जीने के लायक होगी 
न कोई हिंसा होगी, न कोई नफरत 



कहीं   हल  नहीं  , तो   चुप   रहो    शांत   हो   जाओ ,  अशांति  और    क्या    माँगती   है  -  शांति । लयबद्ध  एकाकार    साधन  की   खोज   में  फिरने  से  अच्छा   , एक  बार   खँगाल   ले ढंग   से  ,  व्यर्थ   की खोजबीन   से  बच  जायेंगे  ,   जो  चीज   निकट   में   है  उसको  खोजना  इधर - उधर  भटकना   बेकार   हीं   तो   है ,  और    फंस  भी   गए    तो कोई   बुरी   बात    नहीं   ,   क्या  दुबारा  हम   उसे   खोज  नहीं    पायेंगे  ,   ऐसा   तो   कोई  नियम  नहीं   ।


खेत में जाकर उसे निहारना,

उसकी मिटटी को सूँघना,

मेड पर बैठकर, दूब को नोचना

और कभी-कभी

मुंह में रखकर चबाना;

और महसूस करना उसका स्वाद,

यह भी मेरे लिए जरूरी काम है !


 
सूखी आँखों से बहता पानी है —
कभी न पूरी होने वाली 
प्रतीक्षा है
शिव के माथे पर चमकता
अक्षत है।


 ★★★★★★★


आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 24 मार्च 2025

4437 ...कुछ सीख लेने की सच्ची ललक मन में ठान लो तो गुरु स्वयं प्रकट हो जाता है

 सादर अभिवादन



अगर आपके अंदर थोड़ा भी देशप्रेम हो तो 
शहीद दिवस पर हमारे अपने शहीदों
भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को श्रद्धांजलि अवश्य अर्पित करें

देखें रचनाएं




राज अनोखा जाना जिसने
वही ठगा सा खड़ा रह गया,
ख़ुद को देखे या अनंत को
भेद न कोई बड़ा रह गया !






कवि प्रेम की कल्पना करता
सर्वदा शुभ कामना करता
कर्तव्यों की अवधारणा करता
सद्भावों की प्रेरणा देता।
देश की गौरव गान सुनाता
मातृभूमि का मान बढ़ाता





कौन कब क्या किससे सीख ले कुछ कहा नहीं जा सकता है। कहते हैं कि अगर कुछ सीख लेने की सच्ची ललक मन में ठान लो तो गुरु स्वयं प्रकट हो जाता है। यही प्रकृति का नियम है। कई बार तो गुरु प्रकट होता है और वो सिखाने से मना कर देता है, तब पर भी सच्चा सीखने वाला छिप छिप कर सीख लेता है। जैसे कि एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य से सीख लिया था। हालांकि छिप छिप कर सीखने की ट्यूशन फीस में अंगूठा काट कर देना पड़ा। आजकल के जमाने में तो सामने सामने एग्रीमेंट करके सिखाओ तो भी ट्यूशन फीस की वसूली का काम वसूली एजेंसी को देना पड़ता है।






अपनी सफलता  से तो सभी खुश होते हैं,परन्तु किसी को  सफलता कि और  आगे बढ़ाने में सहायता  करना भी  सच्ची सफलता के लक्षण  हैं।
बस थोड़ा सा  प्रोत्साहन का  टॉनिक  और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
अपने विषय का पूर्ण ज्ञान होने पर  आत्मविश्वास की जड़े मजबूत  होती हैं ,तब दुनियाँ कि कोई भी आँधी आपकी सफलता में बाधक  नहीं बन सकती।


फिर मिलते हैं
वंदन

रविवार, 23 मार्च 2025

4436 ...खूब हंसो तुम पंछी खूब हंसों

 

शनिवार, 22 मार्च 2025

4435 ...शब्द बहते, गंगोत्री है, मौन की ....

 सादर अभिवादन

आज विश्व जल दिवस



यह निर्विवाद सत्य है कि सभी जीवित प्राणियों की उत्पत्ति जल में हुई है। वैज्ञानिक अब पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर पहले पानी की खोज को प्राथमिकता देते हैं। पानी के बिना जीवन जीवित ही नहीं रहेगा। इसी कारणवश अधिकांश संस्कृतियाँ नदी के पानी के किनारे विकसित हुई हैं। इस प्रकार ‘जल ही जीवन है’ का अर्थ सार्थक है। दुनिया में, 99% पानी महासागरों, नदियों, झीलों, झरनों आदि के अनुरूप है। केवल 1% या  इससे भी कम पानी पीने के लिए उपयुक्त है। हालाँकि, पानी की बचत आज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। केवल पानी की कमी पानी के अनावश्यक उपयोग के कारण है। बढ़ती आबादी और इसके परिणामस्वरूप बढ़ते औद्योगीकरण के कारण, शहरी मांग में वृद्धि हुई है और पानी की खपत बढ़ रही है। आप सोच सकते हैं कि एक मनुष्य अपने जीवन काल में कितने पानी का उपयोग करता है,  किंतु क्या वह इतने पानी को बचाने का प्रयास करता है? असाधारण आवश्यकता को पूरा करने के लिए, जलाशय गहरा गया है। इसके परिणामस्वरूप, पानी में लवण की मात्रा में वृद्धि हुई है।



वैश्विक जल संरक्षण के वास्तविक क्रियाकलापों को प्रोत्साहन देने के लिये विश्व जल दिवस को सदस्य राष्ट्र सहित संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाता हैं। इस अभियान को प्रति वर्ष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की एक इकाई के द्वारा विशेष तौर से बढ़ावा दिया जाता है जिसमें लोगों को जल से संबंधित मुद्दों के बारे में सुनने व समझाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ ही विश्व जल दिवस के लिये अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों का समायोजन भी शामिल है। इस कार्यक्रम की शुरुआत से ही विश्व जल दिवस पर वैश्विक संदेश फैलाने के लिये थीम (विषय) का चुनाव करने के साथ ही विश्व जल दिवस को मनाने की सारी जिम्मेवारी संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण तथा विकास एजेंसी की हैl

देखें रचनाएं








ठहर कर
एक पल
मादक वसंत
झरने सा
झर झर
बह गया
लहर कर
गाल ऊपर
बाल काले
मोहक छवि
को गढ़ गया




नीले हम आकाश रहे है
नीला निर्मल जल
नीले फूलों से महका है
कलरव करता दल
नीली पहने प्यार चुनरिया
जीवन का हर पल
नीले जल झांका करता है
नित दिन अस्ताचल




उसे बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा कि कल गांव वालों की मदद से इस पत्थर को खेत से निकालकर ही दम लेगा। उसने अगले दिन काफी लोगों को खेत में जमा किया। लोगों को देखकर उसने पत्थर को खोदना शुरू किया। दो-तीन बार फावड़ा चलाने पर वह पत्थर बाहर निकल आया।

सबने देखा कि वह पत्थर बहुत ही छोटा था। इतने छोटे पत्थर को देखकर लोगों ने कहा कि इस पत्थर को तुम पहले भी निकाल सकते थे। किसान ने कहा कि मैंने सोचा कि यह बड़ा पत्थर होगा, लेकिन यह तो बहुत छोटा निकला। यदि मैं ऐसा जानता तो पहले ही निकाल दिया होता। बार-बार इतनी चोट क्यों खाता?






शून्य भीतर,
अनहद का नाद,
कौन सुनेगा?

प्यासी मछली,
जग वैतरणी में,
प्यास न बुझी ।

तन का बीज,
मन के तल पर,
खेत हैं मौन।

शब्द बहते
गंगोत्री है मौन की,
सुनेगा कोई?


फिर मिलते हैं
वंदन

शुक्रवार, 21 मार्च 2025

4434...हमारी समझ न आए

सभी का हार्दिक अभिनंदन।
--------

आपने ध्यान दिया कि नहीं
मार्च के महीने में तापमान 
झुलसाने लगा है... 
गरमी के मौसम के दस्तक के साथ ही
कुछ नारे बुलंद हो जाते हैं।
"बिन पानी सब सून"
"जल ही जीवन है"
"पानी की एक भी बूँद कीमती है"
इन नारों को
मात्र मौसम के अनुरूप स्लोगन बनाकर
ही प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि
 आत्मसात करने की आवश्यकता है।
पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
भूगर्भीय जल का लगातार कम होना 
कितना गंभीर है इसे समझना बहुत जरूरी है
धरती का 75 प्रतिशत भाग जल है।
पर जो जल जीवों के जीवन के लिए संजीवनी जैसी है उसका प्रतिशत मात्र 2.7 है।
हम मानवोंं की लापरवाही से उत्पन्न
पारिस्थितिकीय असंतुलन की वजह से
जो परिवर्तन प्रकृति में हो रहा
आप भी महसूस करते है न? 
देशभर से मिलने वाले समाचार और तस्वीरों की माने तो आने वाले सालों में पेयजल की समस्या का कोई हल न निकला तो बूँद-बूँद पानी के लिए हमें जूझना होगा।

आज की रचनाएँ-
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दो में करके हृदय विभाजित, 
क्यों खुद को आधा करता है
सूत्रों के जंजाल में फँसना,
जीवन में बाधा करता है ।
मन से मन की दूरी को,
मन ही तो कम-ज्यादा करता है
एक तीर से कई निशाने,
लक्ष्य कई साधा करता है ।

मानव का यह छद्म वेष, यह
असली - नकली चरित हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए 



अब भूले भटके
आँगन में बैठकर
देखती है टुकुर मुकुर
खटके की आहट सुनकर
उड़ जाती है फुर्र से

वह समझ गयी है कि
आँगन आँगन
दाना पानी के बदले
जाल बिछे हैं
हर घर में
हथियार रखे हैं




नकारात्मक मूल्यों की गंध पर 
विवेक की पंखुड़ियों का 
सतत सख़्त पहरा रहा होगा
कालांतर में क्षरण हुआ 
सजगता और 
सत्य के प्रति आग्रह का   
छल अति क्षुधित पाषाण-सा 
टकराता रहा सत्य की दीवार से 



एहसान चुकाने के लिए ही सही,
इसकी मरम्मत करा दो
या यही सोचकर करा दो
कि कल किसने देखा है,
कौन जाने,
इसी सड़क से तुम्हें
कभी वापस लौटना पड़े?




तोतले बोलों से पुकार बजाती ताली बार-बार है ! 
आहट सुन मुन्नी की माँ जाग कर उसे बुलाती है
पास न पाकर घबराकर बाहर खोजने भागती है ।
मुन्नी को गौरैया संग खेलता देख दंग रह जाती है !
आते देख उसे जो गौरैया फुर्र से उङ जाती है ..
मुन्नी की ताली पर वही आज बेधङक फुदकती है !
फुदक-फुदक हथेली पर चहचहा कुछ कहती है 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

गुरुवार, 20 मार्च 2025

4433...मन चंगा तो कठौती में गंगा!

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरं जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए विभिन्न ब्लॉग्स पर सद्य प्रकाशित पाँच रचनाएँ-

अफ़सोस कि सद्य रचनाएँ लिखने की मेरी समझ की संभावना पर तुषारापात हुआ क्योंकि ब्लॉगर रीडिंग सूची में प्रस्तुति तैयार करते समय 19.03.2025 सांय 6 बजे तक केवल एक रचना 'स्वर्ण-विहान' ही नज़र आई। लगता है ब्लॉग-जगत का दिवाला निकल चुका है!

मुट्ठी भर की गौरैया

छपाक-छपाक खूब नहाना!

मन चंगा तो कठौती में गंगा!

तिनके जोङ नीङ बनाना!

चारों दिशाओं में चहचहाना!

*****

एकाकीपन

तेरी तरह

जब कोई गलतियों पर

न हो नाराज

तेरी तरह

जब कोई टोके नहीं

घर से बाहर निकलते हुए

मेरी तरह

यह आजादी नहीं

एकाकीपन है!

*****

स्वर्ण-विहान

रंग - बिरंगे  फूल खिलें है,

मुख पर ले मुस्कान।

रंग- बिरंगी उड़ी तितलियाँ,

कर  रहे  रस  पान।

*****

लड्डू गोपाल जी के संरक्षण में चल रही एक मिठाई की दुकान

बलपुर के नेपियर टाउन में रहने वाले ऐसे ही एक प्रभु भक्त हैं, विजय पांडे जी। उनका मिठाई का कारोबार है। उनकी बचपन से ही श्री कृष्ण जी के बालरूप लड्डू गोपाल में गहरी आस्था व श्रद्धा है। चौबीस घंटे खुली रहने वाली उनकी दुकान 2014 से मंदिरों और पूजास्थलों के साथ-साथ श्रद्धालुओं की मांग पूरी करती आ रही है। पर उस दूकान में ना हीं कोई मालिक है, ना हीं कोई विक्रेता है, ना हीं कोई कैशियर है, ना हीं कोई सुरक्षा कर्मी ! यह दुकान पूरी तरह से विश्वास और ईमानदारी पर टिकी हुई है और पूरी तरह से भगवान के भरोसे चल रही है। यहां आने वाला हर ग्राहक अपनी जरूरत के अनुसार मिठाई उठाता है और पूरी ईमानदारी से पैसे रखकर चला जाता है।

*****

दुआ की ताकत

विदा होकर आई नव-वधू इस सब चिन्ताओं से अनभिज्ञ ऊपर की मंजिल पर अपने कमरे में अकेली बैठी खिड़की से बाहर झांक रही थी। सहसा उसकी दृष्टि बाहर खेत में गई तो देखा खेत में घास काट रही एक गरीब स्त्री प्रसव पीड़ा से जमीन पर पड़ी छटपटा रही है, उसका मन विचलित हो गया पर आसपास कोई नहीं, नया घर, किसी को जानती नहीं तो संकोचवश विवश होकर चुपचाप देखती रही।

 *****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


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