निवेदन।


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शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

4407 ...बेटों की सेवा का थोड़ा सुख और ले लो

 


सादर अभिवादन


22 फरवरी
ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 53वॉ दिन है।
साल में अभी और 312 दिन बाकी है
फिर हैप्पी न्यू इयर

रचनाएं देखें




नगरी अति प्राचीन अयोध्या
युग बीते जब राम हुए थे,
स्मृतियाँ संजो रखी देश ने
कैसे अनुपम कर्म किए थे !





कई बार जीती हूँ , कई बार हारी हूँ
जीत-हार की जंग में..,
न अपनों से शिकवा न ग़ैरों से गिला है





निर्मल नभ है मन चंचल है, सुधरा है परिवेश,
माटी के कण-कण में, अभिनव उभरा है सन्देश,
गीतों में लावणियाँ लेकर, आया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!!





बुरांश मूल रूप से भारतीय है, यह पूरे हिमालयी इलाकों में फैला हुआ है। यह भूटान, चीन, नेपाल और पाकिस्तान, थाईलैंड और श्रीलंका में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में पारंपरिक उपयोग के तौर पर बुरांश के फूल की पंखुड़ियों का उपयोग खाने में किया जाता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। लगभग सभी धार्मिक कार्यों में देवताओं को बुरांश के फूल चढ़ाए जाते हैं।






दादी जब बीमार हुईं तो उन्होंने बता दिया था कि वे पूर्णमासी को चली जाएंगी क्योंकि सपने में बाबा बता गए थे बेटों की सेवा का थोड़ा सुख और ले लो फिर पूर्णमासी को हम साथ ले जाएंगे।

पूर्णमासी वाले दिन सुबह से दादी की तबीयत में बहुत सुधार था। सब चैन की साँस ले रहे थे। लेकिन दादी ने शोर मचा दिया कि जल्दी खाना बनाओ और सब लोग जल्दी खा लो। खाना बनते ही सबसे पहले जो युवा सेवक घर के काम के लिए नियुक्त था कहा पहले इसे खिलाओ। बोलीं मैं चली गई तो तुम सब तो रोने-धोने में लगे रहोगे ये बेचारा भूखा रह जाएगा। वो मना करता रहा पर अपने  सामने बैठा कर उसे खूब प्रेम से खिलाया -पिलाया फिर सबको कहा तुम सब भी जल्दी खाओ।


आज बस
वंदन

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

4406...फिर से एक नया जीवन..


शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मौसम बदल रहा है। माघ की शीतल छुअन
 और फागुन की हल्की मीठी-सी आँच के मध्य खिलते पलाश कितने मनमोहक लगते हैं न...।


पिघल रही सर्दियाँ
झर रहे वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश

सुंदरता बिखरी फाग की
चटख रंग उतरे घर आँगन
लहराई चली नशीली बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश।

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आज की रचनाएँ


स्त्रियाँ गालियां खाती हैं
अपनी गलतियों पर 
दूसरों की गलतियों पर 
यहाँ तक कि वे गालियां खाती हैं 
अच्छे काम के लिए 
औरों से बेहतर काम के लिए 
जब वे तेजी से आगे बढ़ रही होती हैं 
वे पीछे गालियां खा रही होती हैं । 




मृतक मुड़-मुड़ कर देखता है
कुछ समय तक तक
जब सब कुछ होने लगता है सामान्य
वो देखना बंद कर कूद जाता होगा आगे की तरफ
आगे की तरफ कुछ भी हो सकता है
स्वर्ग-नर्क,शून्य या फिर से एक नया जीवन
 




पूर्णमासी वाले दिन सुबह से दादी की तबियत में बहुत सुधार था। सब चैन की साँस ले रहे थे। लेकिन दादी ने शोर मचा दिया कि जल्दी खाना बनाओ और सब लोग जल्दी खा लो। खाना बनते ही सबसे पहले जो युवा सेवक घर के काम के लिए नियुक्त था कहा पहले इसे खिलाओ। बोलीं मैं चली गई तो तुम सब तो रोने-धोने में लगे रहोगे ये बेचारा भूखा रह जाएगा। वो मना करता रहा पर अपने  सामने बैठा कर उसे खूब प्रेम से खिलाया -पिलाया फिर सबको कहा तुम सब भी जल्दी खाओ।



  जब वह स्त्री 60 वर्ष की हुई, तो उसने अपने बेटों से चार धाम यात्रा की इच्छा जताई। बेटे तुरंत तैयार हो गए और मां को लेकर यात्रा पर निकल पड़े। एक दिन यात्रा के दौरान भोजन के लिए वे रुके। बेटों ने मां के लिए भोजन परोसा और उसे खाने का आग्रह किया। तभी स्त्री की नजर एक भूखे और गंदे वृद्ध पुरुष पर पड़ी, जो बड़ी कातर निगाहों से उनके भोजन की ओर देख रहा था।





शालिनी जब अपना त्यागपत्र पदाधिकारी को सौंपती है तो पदाधिकारी के सुझाव पर त्यागपत्र नहीं देकर अवैतनिक छुट्टी पर जाने का विचार मान लेती है। पदाधिकारी उसके मन में शक का बीज रोपने में सफल रहते हैं और उसे चौकन्ना रहने की सलाह भी देते हैं। शालिनी अपने अवैतनिक छुट्टी पर जाने की बात शान से छुपा लेती है और शान की मदद से अपना स्टार्टअप शुरू करती है। उसकी दिन-रात की मेहनत और शान के साथ से उसे लगता है कि उसका जीवन सहज रूप में गुजर रहा है तो वह शान से शादी का प्रस्ताव रखती है। शान उसे कुछ दिन और प्रतीक्षा करने की बात करता है। 





गाँधी पर बहस मुबाहिसे होते ही रहते हैं,……..ऐसा करते- करते  कब गाँधी मन में गहरे समा गये पता ही नहीं चला। …….उस समय जब मंच पर बापू को देखती तो मेरे मन के भीतर की ‘स्त्री’  बापू को ‘बा’ की नज़र से परखती। तभी जब टीकम ने कहा कि गाँधी पर नाटक लिखो जो अलग नज़रिए से हो। 


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2025

4405..प्रेम क्या है.. कौन करे परिभाषित इसको

 


सादर अभिवादन

बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

4404..धूप गिरी गवाक्ष से..

।।प्रातःवंदन। ।

सुबह उठा तो ऐसा लगा कि शरद आ गया,

आँखों को नीला-नीला आकाश भा गया,

धूप गिरी ऐसे गवाक्ष से

जैसे काँप गया हो शीशा

मेरे रोम-रोम ने तुम को

पता नहीं क्यों बहुत असीसा,

शरद तुम्हारे खेतों में सोना बरसाए,

छज्जों पर लौकियाँ चढ़ाए !

 केदारनाथ स

बुधवारिय प्रस्तुतिकरण में शामिल हुए रचनाए आप सभी के समक्ष..अथ सीसीटीवी कथा

कई चीजें जीवन में घटनाओं के जरिए आती है, ऐसी ही एक चीज है- सीसीटीवी कैमरा! बीते 8 फ़रवरी को शहर पूर्णिया वाले मेरे घर में चोरों ने ढंग से उत्पात मचाया। और इसी बदरंग घटना की वज़ह से सीसीटीवी कैमरे का जाल अपने घर आया!

✨️

फिर श्रृंगार नहीं होता...... 

बिन शब्दों का कभी भी

वाक्य विस्तार नहीं होता

जैसे बिन खेवनहार के

भव सागर पार नहीं होता


मूर्ख लोग ईर्ष्यावश दुःख मोल ले लेते हैं।

द्वेष फैलाने वाले के दांत छिपे रहते हैं।।

ईर्ष्यालु व्यक्ति दूसरों की सुख सम्पत्ति देख दुबला होता है।

कीचड़ में फँसा इंसान दूसरे को भी उसी में खींचता है।।

✨️

मायके न लौटने वाली स्त्रियाँ

 कुछ स्त्रियाँ 

कभी नहीं लौटतीं मायके 

जब भी वापसी का कदम उठाती हैं 

उनकी स्मृतियों में कौंध उठता है 

माँ का बेबस चेहरा 

पिता की घृणा और तिरस्कार 

वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट

अपने भीतर खोल में कछुए की तरह । 

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

4403... धरती की खीझ

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मनुष्य अगर  प्रकृति के तमाम गुणों को समझकर आत्मसात कर लें तो अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव कर सकता है। दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे- पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। 

दिन ढलने का अर्थ सिर्फ़ अंधकार नहीं होता प्रकृति जीवन को नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है जरूरत है उसके संदेश को समझने की।

सोचती हूँ 
समय-समय पर हमें चेताती
प्रकृति की भाषा समझकर भी 
संज्ञाशून्य है मनुष्य, 
   तस्वीरों में कैद प्रकृति के अद्भुत सौदर्य 
और पुस्तक में 
लिपिबद्ध जीवनदायिनी
गुणों की पूँजी
 आने वाली पीढ़ियों के लिए 
धरोहर संजो रही
शायद...?

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आज की रचनाएँ-


जितनी भी कोशिश करते हैं हम
उतनी ही अधिक बिगड़ रहा है
मौसम का मिजाज
बढ़ रही है 
धरती की खीझ। 



भीतर अंतहीन गहराई है 

जो नहीं भरी जा सकती 

किसी भी शै से 

इसी कोशिश में 

कुछ न कुछ पकड़ लेता है मन 

और जिसे पकड़ता 

वह जकड़ लेता है 





प्रेम हास्य चाहता है      

     रुदन नहीं

        प्रेम विश्वास चाहता है

            अविश्वास नहीं

          प्रेम साथ चाहता है

            तन्हाइयां नहीं

          प्रेम मौन होता है

                मुखर नहीं         




अलविदा—
गहरे कोहरे में हिलता हाथ,
या जैसे
कोई समंदर के बीचो-बीच
डूबता हुआ एक हाथ।



झूठ की उम्र छोटी लेकिन जबान बहुत लम्बी रहती है।
हवा हो या तूफान सच की ज्योति कभी नहीं बुझती है।।

एक झूठ को छिपाने के लिए दस झूठ बोलने पड़ते हैं।
सच और गुलाब हमेशा कांटों से घिरे रहते हैं।।


★★★★★★★

आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

4402 ....नंगाड़ों की आवाज के साथ फाग चालू आहे

 सादर अभिवादन



फरवरी की पूंछ बाकी है
नंगाड़ों की आवाज के साथ
फाग चालू आहे
झूम के गा रहे हैं लोग
मस्ती फागण की


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अब नहीं रहीं वे उँगलियाँ,
जो अधिकार से टहला करती थीं
मेरे घने बालों में,
अच्छा ही हुआ
कि अब वे बाल भी नहीं रहे.





एक ठंडी शाम, जब मैं खिड़की के पास बैठा था, हाथ में कलम थी और दिल में बेइंतहा दर्द, मैंने एक ऐसी ग़ज़ल लिखी जो सिर्फ़ शब्द नहीं, एक सिहरन थी। हर लफ्ज़ में तड़प थी, हर मिसरा मानो किसी के दिल की धड़कन से बंधा था। ग़ज़ल पूरी करने के बाद मैंने आख़िरी शेर हवा में बुदबुदाया—

"समझाया था कि मोहब्बत अधूरी छोड़ दो, अब देखो... तुम्हारे ख्वाब भी बिखर गए।"






कुछ लम्हों की मुलाकात और बातों ने मुझे
ज़िन्दगी-भर जीने की ऊर्जा और ख़ुशी देदी  !

ये वैलेंटाइन का दिन भी कितना गज़ब है
प्यार के नए बीज़ बोने की जगह बना गयी !




क्या लाइक़-ए-सितम भी नहीं अब मैं दोस्तो
पत्थर भी घर में आए ज़माने गुज़र गए

जान-ए-बहार फूल नहीं आदमी हूँ मैं
आजा कि मुस्कुराए ज़माने गुज़र गए





रोज़ बदला है  चाँद सा चहरा
रफ़्ता -रफ़्ता शबाब आ ही गया

बस इशारा सा इक किया उस ने
लेके साक़ी शराब आ ही गया





पथ पर कठिनतम
हुई साधना है
अडिग है जो पत्थर
हिलेंगे डुलेंगे


आज बस
वंदन

रविवार, 16 फ़रवरी 2025

4401...गुलाब के सम्मोहन में फंसा प्रेम

सादर अभिवादन


फरवरी की पूंछ बाकी है
छोटी है न फरवरी
अपने आप मे बड़ी 
पर पूरे ग्यारह महीने के मुकाबले 
छोटी ही कहलाएगी न

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उपस्थित विद्वानों ने जोर-शोर से तालियां बजाईं। उस समय एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा (जो उस समय मंच पर आइंस्टीन बना हुआ था) - "सर! क्या आप उस सापेक्षता की परिभाषा को फिर से समझा सकते हैं?

असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा। अब तो वाहन चालक पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वे हैरान रह गये। ड्राइवर ने जवाब दिया - क्या यह आसान बात आपके दिमाग में नहीं आई? आप इसे मेरे ड्राइवर से पूछिए !! वह आपको समझाएगा।




उस गली के अंत में दिखता है
डूबते सूरज का मंज़र,
बेइंतहा चाहतें हैं बाक़ी
बेक़रार दिल के बहोत अंदर,




गुलाब के
सम्मोहन में फंसा प्रेम
एक दिन
सूख जाता है

प्रेम को  
गुलाब नहीं
गुलाब का
बीज चाहिए






उन दिनों सारा हिंदुत्व इसे अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत सनातन संस्कृति पर हमला बता रहा था। पीड़िता और पीड़िता के पिता के पहले मददगार बने, एसीपी लांबा और दूसरे वकील पीसी सोलंकी।

आसाराम के गुर्गो बनाम भक्तों द्वारा अनेक गवाहों पर जानलेवा हमले करते हुए उन्हें मौत के घाट उतार देने के बावजूद पीसी सोलंकी हिमालय की तरह अटल रहे।




कह देना
इतना आसान होता है क्या ?
किसी से कह देने से पहले
जरूरी होता है खुद से कहना
और जब दिल सुनना ही न चाहे
बार- बार एक ही जिद-
प्रेम कहा नहीं,जिया जाता है
प्रेम कहा नहीं,ओढ़ा जाता है


आज बस
वंदन
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