आपसभी का हार्दिक अभिनन्दन।
दिसंबर,
वर्ष के कैलेंडर पर
आख़िरी पन्ना है;
सर्र-सर्र सीतलहरी की आड़
सुनहरी खिली हुई है धूप
टहनी से टूटकर
तने पर अटका हुआ पीला पत्ता,
सिकुड़े दिन और कंपकंपाती रात
किसी के लिए रूई की गर्माहट
किसी के लिए फटी हुई चादर
किसी के कटोरे में ठंडा भात है
किसी के गर्म दूध
एक तारीख़ से दूसरे की यात्रा
निर्विघ्न,अनवरत
क्या फर्क पड़ता है
दिसंबर हो या जनवरी।
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ढ़ल चिता राख तर्पण मिल गयी गंगा चरणों धाम
मोह काया दर्पण भूल गया उस परिचित सजी बारात
संग कफन जनाजे जब वो निकली सज सबे बारात
'रियल कश्मीर फुटबॉल क्लब' उस दरगुजर होती कश्मीर की खूबसूरती को, उस ख़ुशबू को सहेजता है। 8 एपिसोड की यह सीरीज देख लीजिये। देख लीजिये कि कश्मीर के नाम पर नफ़रत का समान बहुत परोसा गया है, लेकिन यह प्यार है। जब-जब लगता है कि अरे, यह तो सीरीज है, ऐसा होता भी काश, तब तब ध्यान आता है कि यह सच्ची कहानी पर आधारित है। यानि हैं कुछ दीवाने लोग जो नफरत की आंधियों में मोहब्बत का दिया जलाए हुए हैं।
मिलते है अगले अंक में।
सादर आभार।






















