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शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

4592....शेष बचा हुआ ....

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शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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आज का विचार
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अज्ञः सुखमाराध्यः सुखातारामाराध्यते विशेषज्ञः|        ज्ञानलवदुर्विदग्धम ब्रह्मापि तं न रंजयति ||

भावार्थ – अज्ञानी व्यक्ति को सहज ही समझाया जा सकता है, विशेष ज्ञानी को और भी आसानी से समझाया जा सकता है. परन्तु लेश मात्र ज्ञान पाकर ही स्वयं को विद्वान् समझने वाले गर्वोन्मत्त व्यक्ति को साक्षात् ब्रह्मा भी संतुष्ट नहीं कर सकते।
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वो भी अपनी माँ की
आँखों का तारा होगा
अपने पिता का राजदुलारा 
फटे स्वेटर में कँपकँपाते हुए
बर्फीली हवाओं की चुभन
करता नज़रअंदाज़
काँच के गिलासों में 
डालकर खौलती चाय
उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर
देखकर सोचती हूँ
दिसम्बर! तुम यूँ न क़हर बरपाया करो।
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आज की रचनाऍं- 


रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम


वो ज़िंदगी जिसमें सपने
साइकिल के पैडल के साथ भागते थे,
और ये ज़िंदगी,
जहाँ कारें हैं, पर मंज़िल नहीं।

शायद हम बेहतर जी रहे हैं,
पर महसूस कम कर रहे हैं।
वो पुराने दिन सादे थे,
पर सुकूनदार,
ये आज के दिन चमकदार हैं,
पर थके हुए।





ये क्या है?
ये रोम-रोम में बहती गंग है,
ये मौन के मुख से फूटा गीत अभंग है।
ये दो पल की ओस, सदियों का सागर,
ये तुम्हारे होने का अनूठा अहसास है।



पारंपरिक मान्यता के अनुसार यह:
- आँखों की रोशनी बढ़ाने में सहायक
- डायबिटीज नियंत्रित करने वाला
- पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला
- त्वचा रोगों में लाभकारी
- ज्वर और सूजन कम करने वाला
- एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से युक्त है




बहू - " मृत व्यक्ति के परिवार द्वारा तयशुदा समय-सीमा में इन लोगों को सूचित करने पर ये लोग मृत व्यक्ति के दिए गए पते पर आकर बहुत ही आदरपूर्वक मृत देह ले जाते हैं। मृतक के उपयोगी अंगों को बाद में कई ज़रूरतमंद लोगों को शल्य चिकित्सा द्वारा लगा कर उन्हें नया जीवन प्रदान किए जाते हैं। जैसे .. आँखें, 'लिवर', 'किडनी'.. और भी बहुत कुछ और .. और तो और .. शेष बचा हुआ कंकाल 'मेडिकल स्टूडेंटस्' की पढ़ाई के काम में आ जाता है। "



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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4 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह मन से नमन संग आभार आपका ... इस मंच तक मेरी बतकही को घसीट कर ला पटकने के लिए ...
    आपकी आज की भूमिका के श्लोक वाले तथाकथित ब्रह्मा जी इस धरती के केवल बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों, मांसाहारियों और नशेड़ियों (विशेषतः 8 pm वालों को) को उनके कुकर्मों को सुधारने के लिए समझा दें तो .. इतना ही काफ़ी होगा .. शायद ...
    भूमिका वाली बिम्बों से सजी रचना भी मन को उद्वेलित करने के लिए पर्याप्त है। बिम्ब विशेषतौर पर ..
    " उड़ती भाप की लच्छियों से
    बुनता गरम ख़्वाब
    उसके मासूम गाल पर उभरी
    मौसम की खुरदरी लकीर "
    पर हम दोष दिसम्बर को क्यों दें भला ! .. ये दोष तो हम इंसानों और हम इंसानों के समाज की अपंग व्यवस्था है।
    जैसे - एक-दो हिंसक कुत्तों के कारण गली के सभी देशी नस्ल के बेसहारा कुत्तों को उन्हीं हिंसक कुत्तों के साथ एक ही 'शेल्टर (?) होम' में रखे जाने का सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला या यूँ कहें कि .. फरमान .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर अंक दिया है आज का
    आभार
    सादर
    वंदन

    जवाब देंहटाएं

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