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रात्रि
का दूसरा प्रहर, निःशब्द ओस पतन । जो
पल जी लिया हमने एक संग बस वही
थे अमिट सत्य, बाक़ी महाशून्य,
आलोक स्रोत में बहते जाएं
आकाशगंगा से कहीं
दूर, देह प्राण बने
अनन्य, लेकर
अंतरतम
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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Wow
जवाब देंहटाएंRegards
जी ! .. सुप्रभातम् सह मन से नमन संग आभार आपका ... इस मंच तक मेरी बतकही को घसीट कर ला पटकने के लिए ...
जवाब देंहटाएंआपकी आज की भूमिका के श्लोक वाले तथाकथित ब्रह्मा जी इस धरती के केवल बलात्कारियों, भ्रष्टाचारियों, मांसाहारियों और नशेड़ियों (विशेषतः 8 pm वालों को) को उनके कुकर्मों को सुधारने के लिए समझा दें तो .. इतना ही काफ़ी होगा .. शायद ...
भूमिका वाली बिम्बों से सजी रचना भी मन को उद्वेलित करने के लिए पर्याप्त है। बिम्ब विशेषतौर पर ..
" उड़ती भाप की लच्छियों से
बुनता गरम ख़्वाब
उसके मासूम गाल पर उभरी
मौसम की खुरदरी लकीर "
पर हम दोष दिसम्बर को क्यों दें भला ! .. ये दोष तो हम इंसानों और हम इंसानों के समाज की अपंग व्यवस्था है।
जैसे - एक-दो हिंसक कुत्तों के कारण गली के सभी देशी नस्ल के बेसहारा कुत्तों को उन्हीं हिंसक कुत्तों के साथ एक ही 'शेल्टर (?) होम' में रखे जाने का सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला या यूँ कहें कि .. फरमान .. शायद ...
सुंदर अंक दिया है आज का
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
वंदन
बहुत सुंदर
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