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मंगलवार, 2 दिसंबर 2025

4589....गीत नहीं मरता है साथी

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीत बयार 
सिहराये पोर-पोर
धरती को छू-छूकर
जगाये कलियों में खुमार
बेचैन भँवरों की फरियाद सुन
दिसम्बर मुस्कुराया।

चाँदनी शबनमी
निशा आँचल में झरती 
बर्फीला चाँद पूछे
रेशमी प्रीत की कहानी
मोरपंखी एहसास जगाकर
दिसम्बर मुस्कुराया।
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आज की रचनाऍं-


रास्ते भटक गए हैं

और ढूढ रहे हैं 

अपने ही पदचिह्न

सिसक रहीं हैं जहाँ सिसकियाँ

हर कथन पर जहाँ हाबी हैं हिचकियाँ

 

मेरे ही सवाल

मेरे ही सामने

लेकर खड़ी हो गईं हैं

सवालों की तख्तियाँ

जवाब नदारत है

 




खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |




आत्मा के द्वार पर 

ध्यान का हीरा जड़ें,

ईश चरणों  में रखी  

भाग्य रेखा ख़ुद पढ़ें !




धीरे-धीरे यह आदत फैलने लगी। अभय ने इसे नाम दिया—“रुकने का साहस अभियान।” उसने पोस्टर बनवाए, जिन पर लिखा था: “अगर ट्रैफिक सिग्नल नहीं है, तो इंसानियत ही सिग्नल बने।”

कुछ लोग हँसे, कुछ ने हॉर्न बजाया, लेकिन कई ने सीखा। राहगीरों के चेहरों पर भरोसा लौटने लगा। बच्चे अब डरते नहीं थे, महिलाएँ अब ठिठकती नहीं थीं।



कब से साफ सफाई से
बहुत साफ सुथरा सा लिख रहे कुछ
कुछ लिखा रहे हैं साफ कूड़ा कुछ 
कुछ सिखा रहे हैं सरताज कूड़ा 
कुछ पहले बेतरतीब लिख फ़ैला रहे थे
 जो कुछ घेर कर बाड़े में उनको
 सबक सीखा रहे हैं कुछ



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. दिसम्बर मुस्कुराया।

    जवाब देंहटाएं
  2. दिसंबर
    यानि ठंड
    सभी को शुभकामनाएँ
    एक शामदार अंक
    आभार
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात!! एक से बढ़कर एक रचनाओं की खबर देता अंक, आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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