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सोमवार, 1 दिसंबर 2025

4588 ...केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती

 सादर अभिवादन

महीना बदल गया
सच्चाई यह है कि
वर्ष का समापन महीना

केवल ऊंचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है.

चलिए आगे बढ़ें




अगर तुम्हें औरत में आज भी
‘चीज़, खिलौना या वस्तु’  नजर आती है,
तो तुम्हे ज़रूरत है -
अपनी सोच का पोस्टमॉर्टम करने की।





आए हैं आप शायद
दिखलाने आईना मुझे
इस भरी महफ़िल में,
पर दिखेगा केवल
मुखौटा भर मेरा,
जान नहीं पायेंगे आप
बात जो है अभी मेरे दिल में।




हमी से की मोहब्बत हमी से शिकायत है
चलो छोड़ो ये तो तुम्हारी पुरानी आदत है

तुम वादा तो करो हम इंतज़ार ही कर लेंगे
कई दिनों से मेरे अंदर कुछ सुगबुगाहट है






प्रलय ले आई, छम-छम करती बूंदें,
गीत, कर उठे थे नाद,
डाली से, अधूरी थी हर संवाद,
बस, बह चली वो पात!


आज बस अब चलती हूँ
सादर

वर्ष का समापन महीना
आज रात 08 बजे से 10 मिनट तक




6 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन संग आभार आपका ...🙏
    आपकी भूमिका पर असहमति जताने के लिए अग्रिम क्षमप्रार्थी होते हुए - पहाड़ हमारे परिवेश का ही हिस्सा तो है। अकेला भी नहीं होता, वो तो जंगल, वृक्षों, पशु, पक्षियों, बादल, बर्फ़, झरनों के साथ -साथ आस्तिकों के अधिकांश धामों को अपने आग़ोश में समेटे हुए .. लाखों लोगों की भीड़ को एकत्रित करने की मादा रख कर हमेशा आबाद भी तो रहता है .. शायद ...😐🙄🤔

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात! शायद पहाड़ के बहाने बात उस व्यक्ति की है जो शीर्ष पर पहुँच कर अकेला रहा जाए, सुंदर प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं

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