शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक में पढ़िए पाँच रचनाएँ-
बालगीत "मेरी पोती अंशिका का अन्नप्राशन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मिले सभी को ठौर-ठिकाना,
उतरें सब भवसागर पार।
बना रहे आशीष मात का,
माता सृष्टि की पतवार।
मना रहे इस दिन को सारे,
जैसे हो घर में त्योहार।5।
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रात फिर नींद नहीं आई
कि अनायास महकती रही यादें
कि हरसिंगार बरसता रहा टप- टप
भीनी- भीनी ख़ुशबू से
शब्दों का बरसना देखती रही
और बुनती रही नायाब सी
अपनी प्रेमासक्त कविता...!!!
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पुस्तक परिचय - 'नावक के तीर'(साझा दोहा-संग्रह)
दो पंक्तियों में बड़ी सी बड़ी बात कहने का जो जादू ग़ज़ल के एक शेर में होता है वही दोहे की दो पंक्तियों में भी होता है।यही कारण है कि अनेक प्रख्यात शायरों ने भी उत्कृष्ट दोहे कहे हैं। हिंदी के अनेक कवियों के दोहों के स्वतंत्र संग्रह प्रकाशित हुए हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है। यह देखकर हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं की दोहा विधा का भविष्य उज्ज्वल है।आईए इस संकलन के कुछ दोहों पर नज़र डालते हैं :
चाहे तुम मेरा कहो, या अपनों का स्वार्थ।
मैं अंदर से बुद्ध हूं, ऊपर से सिद्धार्थ।।
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छत्तीसगढ़ मा छन्द के अलख जगइया - जनकवि कोदूराम "दलित"
दोहा छन्द - दू पद अउ चार चरण के छन्द आय। दुनों पद आपस मा तुकांत होथें अउ पद के अंत गुरु, लघु मात्रा ले होथे। 13 अउ 11 मात्रा मा यति होथे। कोदूराम दलित जी के नीतिपरक दोहा देखव -
संगत सज्जन के करौ, सज्जन सूपा आय।
दाना दाना ला रखै, भूँसा देय उड़ाय।।
दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन। उनकर दोहा मा समाज के आडम्बर ऊपर व्यंग्य देखव -
ढोंगी मन माला जपैं, लम्भा तिलक लगाँय।
मनखे ला छीययँ नहीं, चिंगरी मछरी खाँय।।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
दलित जी मूलतः हास्य व्यंग्य के कवि रहिन।
जवाब देंहटाएंउनकर दोहा मा समाज के आडम्बर
ऊपर व्यंग्य देखव
शानदार हवय
सुंदर अंक