अपने आस-पास की कराह को अनसुना करना,
परिचित,अनजानी दर्द भरी सिसकियों भर निर्विकार रहना
मरघट में बदलती बस्तियों के मध्य अपने किले की सुरक्षा के लिए रात-दिन प्रार्थना करना सामयिक दौर में मृत्यु औपचारिक समाचार है,जीवन की जटिलता समझने का प्रयास व्यर्थ है तटस्थ रहकर,अगर जीना है बस सकारात्मकता के मंत्र का जाप करना होगा...
सकारात्मक रहो, सकारात्मकता जरूरी है,जीने के लिए आस चाहिए,उम्मीद पर दुनिया कायम है,समय है रूकेगा थोड़ी गुज़र जायेगा।
क्या सचमुच सकारात्मकता की ओर अग्रसर है हम या असंवेदनशीलता के नये युग की ओर बढ़ चुके हैं?
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शाश्वत, सुंदरता उभरती है
तभी जब हृदय बने
उन्मुक्त देवालय,
मृत्पिंडों से
निर्मित है
देह का
संग्रहालय ।





आभार और आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
सादर वंदन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति,,,
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