शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.टी.एस.दराल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
सोमवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
खाली घर में रहकर हाथ पैर भी टेढ़े हो जाते हैं,
सेवानिवृत होकर तो जवान भी बूढ़े हो जाते हैं।
इसीलिए कहते हैं भैया रिटायर्ड हुए तो क्या, टायर्ड मत हो,
मिलो मिलाओ, कविता लिखो, सुनो सुनाओ, फिर ना कोई ज़हमत हो।
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मुद्दा बनता
वोट का,झूठे बोलें बोल।
कड़वी बातें
बोलते, बातों में है झोल।
देश हित
सोचें नहीं,ओछी इनकी सोच,
दूजे की
निन्दा करें,पहले खुद को तोल।
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तिरस्कृत है वह कटु भाषा
जिससे टूटता हृदय की तार
परवाह नहीं जिसे अपनों की
कष्ट वेदना देता है अपार।
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हवा सभी को मिलती है, जल सबको देता जीवन,
सूरज की किरणें पूछतीं नहीं, किस मज़हब का है तन।
दीवारों के साए में क्यों, नफ़रत के बीज उगाते हो?
इंसान हो जब पैदा होते, फिर क्यों धर्म बतलाते हो?
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंसादर
वंदन