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गुरुवार, 25 सितंबर 2025

4522...साहित्य लेखक के काम नहीं आएगा तो..

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय संतोष त्रिवेदी जी  जी की रचना से। 
सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच रचनाएँ-

आज की स्त्री


सँवारती थी जो कल तक घर 
आज वो घर सँभालती है,
आज की स्त्री 
दोहरा जीवन जीती है,
दुगुनी आँच को सहती है,
नाप ले चाहे पूरा अंबर 
पिंजरे में ही रह जाती है।

*****


दृश्य के परे


जो सिमट कर रह गई निगाह के बियाबां में
आ कर, उस बिंदु में अब बरसात नहीं
होती, उसे ख़बर है इस ऊसर
भूमि की ओर कोई रास्ता
नहीं आता, फिर भला
किसी का इंतज़ार
कैसा, दूर तक
है धुंध ही
धुंध,


मरूभूमि का श्राप


धैर्यहीनसंवेदनाहीन कृत्यों का सूत्रधार,
अमानवीय छल-कपट से परिपूर्ण आधार।
समग्र संसार ग्रसितकुंठितकर रहा हाहाकार,
सहन नहीं कर सकते अब ओर यह अभिशाप।
मुक्ति मिलेशीघ्र ही जग में सभी को,



परसाई की विरासत-1


इतने पर भी वह बात नहीं बन पा रही थी,जिसके लिए मेरा जन्म हुआ था।मैंने अपने प्रतिद्वंदियों से भी मिलकर दुरभिसंधियाँ की।कई बार ‘ सम्मान’ काटे और कई बार बाँटे भी।सरकारी संस्थानों में अपने शिष्य बनाये।वे लेखक बने और मुझे आर्थिक लाभ भी मिला,पर आपकी शपथयह सब मैंने अपने लिए नहीं पत्रिका के लिए किया।यह सब करते हुए मैंने ऐसी प्रतिभाओं में कबीर को तलाशा (या तराशा?)।आप चिंता  करें,आपको कहीं नहीं खोजा क्योंकि आप तो शुरू से मुझमें ही बसे हैं।आप मेरे प्राण हैं।*****परसाई की विरासत-2



काफ़ी दिनों से तुम्हारा आभार प्रकट करना चाह रहा था।पर क्या करूँ,अब वह दृष्टि नहीं रही।तुम्हारे पास दूर दृष्टि है।पहले केवल ख़ास पक्षी के पास ही पाई जाती थी,पर अब वे भी विलुप्त हो गए।अच्छा है कि तुमने व्यंग्य में वह परंपरा क़ायम रखी है।पूरा साहित्य इससे अभिप्राणित होगा।तुम व्यंग्य के नए शाह हो।परिस्थिति से घबराओगे नहीं,यह जानता हूँ।कुत्ते भौंकते हैं,हाथी अपनी चाल चलते हैं।इस मुहावरे को अपनी रक्षा के लिए इस्तेमाल करना।साहित्य लेखक के काम नहीं आएगा तो किसके लिए आएगा?

*****


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