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बुधवार, 17 सितंबर 2025

4514..सीखा है,कुछ ?

प्रातःवंदन 

 "लो,पृथ्वी पर आ पहुँची

ये सुषमायें अम्बर की
उतरे हों ज्यों गुच्छ गीत गाने वाले फूलों के
सजल कंठ से गीत,हँसी से
फूल झरे जाते है
तन पर भीगे हुए वसन है
किरणों की जाली के,
पुश्परेण-भूशित सब के आनन यों दमक रहे है"
दिनकर
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण के साथ आज शामिल रचनाए को जरूर देखिए..

मन ख़ाली है 

और इसे ख़ाली रखना 

अस्तित्त्व का काम है 

किसी ने इसे ख़ाली रखा है 

हर साल 14 सितंबर को भारत में 'हिन्दी दिवस' मनाया जाता है, जो भारतीय संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करने की याद दिलाता है. यह दिन हिन्दी भाषा के महत्व और..
✨️


पौध 

हमारी संस्कृति सुविचारों की

धीरे-धीरे 

मरती जा रही..
✨️

कभी-कभी सच,
गले में अटका काँटा होता है।
निकालो तो लहू बहता है,
दबा दो तो साँसें छिलती हैं।

मैंने सीखा है,
कुछ सच्चाइयों..
।।इति शम।।
धन्यवाद 
पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '..✍️

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात! दिनकर की सुंदर रचना पढ़वाने के लिये आभार, पठनीय रचनाओं का चयन, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर
    Welcome to my blog

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर अंक बधाई आपको. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं

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