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शुक्रवार, 12 सितंबर 2025

4509.....कल-कल निनाद के बीच...

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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साहित्य में समाज की विविधता, जीवन- दृष्टि और लोककलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन दृष्टिकोण प्रदान करता है जिससे सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है। रचनाएँ समाज की भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं। हिन्दी लिखने पढ़ने वालों के हिन्दी महज एक दिवस नहीं
होती बल्कि आत्मा को उदात्त करने में, मनुष्य के गुणों का परिष्कार करने में, उसे आनंद की अवस्था में पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साहित्य अतीत से जीवन मूल्यों को लेकर आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने में सेतु की तरह है।
रचनात्मकता का पैमाना तय करना उचित नहीं है।
क्लिष्ट या सरल लिखना अपनी क्षमता और रुचि पर निर्भर है।  
क्या लिखा जाय ,किस पर लिखा जाय,कितना लिखा जाय 
यह बहस का कोई मुद्दा नहीं।
हाँ,जो भी लिखा जाय वह मौलिक हो और उसकी 
वर्तनी शुद्ध हो यह जरुरी है। 
"भावी पीढ़ी आपसे वही सीख रही है जो आप सिखा रहे हैं इस बात 
का ध्यान रखना हम सभी रचनाकारों की मूल ज़िम्मेदारी है।"
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आज की रचनाएँ-
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छंद, ताल, लय, बिंब अनोखा 

हर युग में नव रचना होगा, 

ओढ़ पुरानी चादर कब तक 

इतिहासों को तकना होगा!




द्वैपायन .”—ड्राइवर ने मुस्कराकर कहा तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ । यह तो व्यास जी का नाम था । बाली में रामायण के साथ महाभारत के प्रभाव का यह एक और उदाहरण था ।

हम लोग युवती के पीछे-पीछे घनी झाड़ियों के कुंज बीच नम सीढ़ियों से उतरते यही सोच रहे थे कि आखिर कहाँ ,किस पाताललोक में ठहरने वाले हैं हम । सीढ़ियाँ और ढलान जहाँ खत्म हुई वहाँ एक लकड़ी की लिफ्ट हमें और नीचे ले जाने तैयार थी । रास्ते भर का उत्साह अब हवा निकले गुब्बारे सा हो रहा था । लिफ्ट ढलान पर बिछे लोहे के मजबूत सरियों के सहारे ऊपर से नीचे जाती आती थी । उसमें केवल चार लोग बैठ सकते थे ।





रहे न
जाने कितने चेहरे कुछ उजागर, कुछ धुंध
में छुपे हुए, अँधेरे उजाले का अंतहीन
खेल चलता रहता है यथावत,
किसे ख़बर कहाँ पर है
मौजूद पुरसुकून
का मरहला
,



ओ बादल तुम आते हो तो आते हैं तुम्हारे साथ
तुम्हारे ही भीतर छुपे हुए कई कई लोग
मैं देखता हूँ उनमें अपने जाने-पहचाने चेहरे
जो मिले होते हैं जीवन में किसी मोड़ पर कभी
फिर होती है आँख-मिचौली उनके साथ
बहुत अच्छा लगता है तुम्हारा आना





रोता बच्चा चुप होकर सो गया।
माँ ने सामने वाले माँ और जिद करते बच्चे को देखा,
भूख से वह भी रो रहा था, कोई डांट-फटकार उसे चुप नहीं करा पा रही थी,
भूखा है बच्चा तुम्हारा। कब से देख रही हूं, ...
बुरा न मानो तो ये बचा दूध उसे पिला दो,
दूसरी मां ने बिना ना-नुकुर किए बच्चे के मुख में बोतल दे दी।
बच्चे की क्या जात?

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक
    आभार और आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. मुग्ध करता अंक, सभी रचनाएं व प्रस्तुति अनुपम हैं मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार । नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन अंक, सभी रचनाएं बेहतरीन व दिल को छूने वाली हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. मुग्ध करता अंक, सभी रचनाएं व प्रस्तुति अनुपम हैं मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार । नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  5. 'जो भी लिखा जाय वह मौलिक हो और उसकी
    वर्तनी शुद्ध हो यह जरुरी है'
    अति सार्थक भूमिका और पठनीय रचनाओं का चयन, शुभकामनाएँ और आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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