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बुधवार, 3 सितंबर 2025

4500..खैर ख़बर लेते रहना..

 ।।प्रातःवंदन।।

"भोर की हर किरण को मैं बांध लेना चाहती हूँ,

तिमिर की सारी दिशाएं लाँघ लेना चाहती हूँ।

बहुत दिन तक मौन रहकर फिर कहीं जो खो गया था,

आज उस स्वर को तुम्हारे द्वार पर गुंजन करूंगी।

एक दिन माथे चढ़ाकर मैं इसे चंदन करूंगी."

निर्मला जोशी

स्वयं को उठायें और चलते रहे.. साथ ही नज़र डालें लिंकों पर..

अभियुक्त


समूह में होकर भी समूह से ना मैं संयुक्त


जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभियुक्त



हिंदी जगत के जंगल का हूँ एकल राही


दायित्व भाषा साहित्य का उसका संवाही


स्व विवेक ने मुझे स्वकर्म हेतु किया नियुक्त

..

✨️

देख रही मैं सपन अनोखे


आ पहुँची प्रिय प्रणय की बेला!


निशा भोर की गैल चली है

तारों ने तब घूँघट खोला।

मन्द समीर उड़ाये अंचल

रश्मि किरण का मन है डोला।

पागल मन हो जाता विह्वल

रोज सजाता जीवन मेला !

जुड़ाव भूलकर कह उठे मुझे अभिभूत..

✨️

क्या शी ने कहा, क्या तुमने सुना


#क्या_शी_ने_कहा #क्या_तुमने_सुना


गौर से देखिए इस तस्वीर को! तियानजिन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हाथ मिला रहे हैं पीएम नरेंद्र मोदी से! मेजबान शी का चेहरा देखिए, स्वागती मुस्कान गायब है, हाथ मिलाते वक्त भी हाथ शरीर से दूर है यानी यथासंभव फासला बनाकर रखा गया है।

✨️

चिट्ठी लिखते रहना


चाहे जहाँ भी रहना


अपने हाथों से लिखना


कुशल-क्षेम कह देना..

✨️

असलियत - -


अक्सर हम भूल जाते हैं ख़ुद की अहमियत,

किसी और की नज़रों में ढूंढते हैं अक्स

अपना, मुमकिन नहीं हर किसी को

ख़ुश करना, हर शै ज़रूरी नहीं

बन जाए घरेलू, कई बार

फ़ीकी पड़ जाती

है मद्दतों की।

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

7 टिप्‍पणियां:

  1. आकर्षक अंक, सुंदर प्रस्तुति, स्थान देने हेतु असंख्य आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. पम्मी त्रिपाठी जी आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. अस्मिता से अहमियत तक के भावों को समेटता अंक । इसी में चिट्ठी की बात जुङी ! बधाई और धन्यवाद, पम्मी जी । सभी रचनाकारों को अभिवादन।

    जवाब देंहटाएं

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