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मंगलवार, 2 सितंबर 2025

4499...कोई बस चुटकी भर प्रेम बाँट रहा...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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“प्रेम कभी अधिकार नहीं जमाता है और प्रेम को मुट्ठी में बांधा नहीं जा सकता है। सच्चा प्रेम आपको स्वतंत्रता में ले जाता है। स्वतंत्रता सर्वोच्च शिखर है, परम मूल्य है। और प्रेम स्वतंत्रता के सबसे करीब है; प्रेम के बाद अगला कदम स्वतंत्रता है। प्रेम स्वतंत्रता के विरुद्ध नहीं है; प्रेम स्वतंत्रता की ओर एक कदम है। यही जागरूकता आपको स्पष्ट कर देगी: उस प्रेम का उपयोग स्वतंत्रता के लिए एक सीढ़ी के पत्थर के रूप में किया जाना चाहिए। अगर तुम प्रेम करते हो तो तुम दूसरे को मुक्त करते हो। और जब तुम दूसरे को स्वतंत्र करते हो, तो तुम दूसरे के द्वारा मुक्त हो जाते हो। -ओशो


आज की रचनाएँ-

और इधर,
कोई बस चुटकी भर
प्रेम बाँट रहा है…


धरती तुच्छ को भी 
व्यर्थ नहीं समझती
सड़ी लकड़ी पर भी
उग आता है फूल
कोई उसे मशरूम कहता है,
कोई कुकुरमुत्ता



गुदगुदाती, बहती ये पवन,
यूं, रोक लेते कदम,
यूं, छू लेते बदन,
सरकती, यूं जमीं कदमों तले,
सोए, एहसासों को लगे,
ज्यूं, संग कोई चले,
और दे संबल!



राग दीपक सुनाता हूँ,
अब बुझाना नहीं मुझको।

एक महब्बत अधूरी सी,
फिर निभाना नहीं मुझको।

आँख नम, गाल गीले हैं,
पर छुपाना नहीं मुझको।




उन्होंने सोचा कि इस निर्बल जीव के जीवन की रक्षा करनी चाहिए। यही सोचकर उन्होंने इधर उधर देखा और कोई वस्तु न मिलने पर उन्होंने हाथ से पकड़कर उसे नदी से बाहर करने की सोची। उन्होंने उस बिच्छू को हाथ से पकड़कर पानी से निकालने का प्रयास किया,तो उस बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया। इससे संत निराश नहीं हुए। उन्होंने अगली बार फिर प्रयास किया। इस बार भी वही हुआ। 




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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

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