।।प्रातःवंदन।।
" पहरे हैं ज़ुबानों पर, लफ्ज़ नज़रबंद हैं,
आज़ाद बयानों पर लगे, फतवों के पैबंद हैं,
फाड़ देते हैं सफ्हे, जो नागावर गुजरे,
तहरीर के नुमाइंदे ऐसे, मौजूद यहाँ चंद हैं।"
सजीव सारथी
छोटी सी बात विशाल मनोभाव लिए तैयार कर इक पैगाम ... आज शामिल है..✍️
सुबह-सुबह मोबाइल पर यूँ ही उँगली फिरा रहा था कि स्क्रीन पर सहसा एक छोटी खिड़की खुल गई।‘मैं आपकी सहायिका हूँ।कहिए आपके लिए क्या कर सकती हूँ ?’ यह बात उसने बोली नहीं बल्कि मुझे लिखकर बताई।मैं मूलतः भावुक किस्म का व्यक्ति हूँ।व्यक्तिगत क्षणों में यह संदेश पाकर एकदम से भाव-विह्वल हो उठा।..
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प्यारे नीम के पेड़
मैं खुश हूँ कि
देख पा रही हूँ तुम्हें
फिर से हरा भरा .
बीत गया बुरे सपने जैसा
वह समय..
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लोचनों का नीर लेकर,
पीर की जागीर लेकर,
सुप्त सब सुधियाँ जगाने,
अन्तर के नन्दन वन में ।
मेघ घिर आये गगन में
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सोच रही हूं...
कृष्ण के हिस्से,
उनके जीवन में क्या नहीं था !
दहशत भरा अतीत,
वहां से निकलने का रास्ता,
माता पिता से दूर जाने का विकल्प,
घनघोर अंधेरा,
मूसलाधार बारिश,
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
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बेहतरीन रचनाएं
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