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शुक्रवार, 16 अगस्त 2024

4219.... नभ में जब तक रहे ध्रुवतारा

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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आज कवि अटलबिहारी वाजपेयी
की पुण्य तिथि है।
 उनकी रचना एक रचना की चंद पंक्तियाँ-

सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?

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कल हम सभी ने धूमधाम से पूरी श्रद्धा भक्ति से अपना राष्ट्रीय त्योहार मनाया। सबसे ज्यादा उत्साहित बुद्धिजीवी वर्ग ने एक बार फिर से बुराइयों का पिटारा खोलकर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रयोग पूरी क्षमता से किया। चलिए मान लिया लाख़ बुराइयाँ है हमारे देश में गरीबी,भुखमरी,बेगारी,भ्रष्टाचार, घूसखोरी, बेईमानी,नारी के प्रति असम्मान राजनैतिक अराजकता और भी अनगिनत पर इस दिन इन बातों का विश्लेषण क्यों जरूरी है? क्या किसी के जन्मदिन पर उसे ऐसा कोई उपहार देते हैं  हम?  क्या इस विशेष अवसर पर सब भूलकर साथ मिलकर अपनी स्वतंत्रता की खुशी महसूस नहीं कर सकते हम? भावी पीढ़ी  नन्हें बच्चों को आज़ादी के स्वर्णिम इतिहास के प्रेरक प्रसंग बताकर,स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों,गीतों,सैनिकों से संबंधित ज्ञानवर्धक बातें बताकर हम उनके भीतर देश के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना क्यों नहीं भरते?प्रश्न तो अनगिनत हैं वैसे भी पर सिवाय असंतोष गिनवाने और अपने अधिकार  बखानने के हम कितने अपने कर्तव्य के प्रति सचेत हैंं यह सोचना भी जरूरी समझते हैं क्या? आप भी सोचिएगा हाँ एक  प्रश्न का उत्तर आप सभी से आपसे जरूर जानने को इच्छुक हूँ- 

आपके लिए स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?

आज की रचनाएँ-
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गगन  रंगा  केसरिया आज 

प्रकृति  भी फहराये तिरंगा, 

माटी का इक खंड नहीं है 

भारत भू है दिल धरती का !


देश आज आगे बढ़ता है 

बाधायें कितनी भी आएँ, 

क़ुर्बानी देकर जो पायी 

आज़ादी नव स्वप्न दिखाए !



महापुरूषों के स्वेद से,
मकरन्द यह निकला है।
योद्धाओं के सोणित से, 
हमें लोकतंत्र मिला है।।



आज देखा भोर में वो, 

खिल रहा था क्यारियों में।

फूल-फल से आच्छादित,

अनगिनत फुलवारियों में।

ओढ़ कर धानी चुनर

हर्षित धरा भी साथ थी

क्षितिज कंचन सुरमई

प्रमुदित मुदित मन भास्कर॥





ध्येय  भारत  का  है भाई चारा
विश्व  भर   में   बहे   प्रेम  धारा
हो अहिंसा का  सम्मान जग में
सब सुखी  हों यही अपना नारा
देश    भारत   अनोखा   हमारा
 


ज्यों
प्रेमिकाओं की आँखों से बहते मनके 
सिसकियों के साथ ठहर जाते हैं सांसों पर 
ज्यों 
अवचेतन में ठहरा है अस्तित्व 
चेतना की प्रतीक्षा में 


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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक
    तीन रंगो में रंगा अंक
    संग्रहणीय है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर सराहनीय संकलन।
    वाजपेयी की पुण्य तिथि पर उनकी कविता पढ़वाने हेतु दिल से आभार।
    क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
    कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?... वाह!
    कविता 'जीवन' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    जल्द ही सभी रचनाएँ पढ़ती हूँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सच में सभी रचनाएँ बेहतरीन है। सार्थकता से पूर्ण। सराहनीय प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात !! स्वतंत्रता दिवस के आलोक में रंगी सुंदर रचनाओं से सजा अनुपम अंक, आभार श्वेता जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! स्वतंत्रता दिवस की सुंदर छटा बिखेरता समृद्ध अंक।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार सखी श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं

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