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शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

4205.....जीवन की परिभाषा

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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वैचारिकी मंथन के क्षण में मन से फूटे कुछ सवाल..। बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित कविताओं का 
आम जीवन में क्या योगदान है?
सोच रही हूँ कविता क्या है? प्रतिदिन उकेरे 
जाने वाले मनोभावों की सार्थकता कितनी है? 
क्या लिखना चाहिए?
प्रकृति,प्रेम,समाज,राजनीति आखिर कौन सा 
विषय लिखना कवि या कवियित्री 
की परिभाषा तय करता है?
वैसे लेखक जिसके पाठक वर्ग सीमित है 
एक निश्चित परिधि में के बीच घूमती 
कविताओं को किस श्रेणी में रखा जाय?
उपर्युक्त सारे सवालों का मेरा मन एक ही 
जवाब दे रहा है।
कविता चाहे किसी भी संदर्भ में हो,
कविता वही सार्थक है जो अपने शब्दों और 
भावों को पाठक के मन से जोड़ती है।
जब कविता में रचे सारे मनोभाव साधारण पाठक स्वयं के भीतर महसूस करे तो रचनात्मकता सफल है।आप क्या सोचते हैं आपके विचार सादर आमंत्रित हैं।

आज की रचनाएँ-



जैसे ही बेटियाँ 

बचपन की दहलीज़ से 

बड़प्पन के आँगन में जुड़ती है 

तब ..,

जीवन की परिभाषा 

बदल सी जाती है 

अनुभूत जीवनानुभव.., 

उनको माँ के अस्तित्व का 

बोध कराते हैं 

और तब बेटियों को

पूरे घर को सरल सहज भाव से

एक सूत्र में जोड़ती




मकान कहीं भी हो सकता
लेकिन घर मातृभूमि में ही होता है
जहाँ मातृत्व की महक 
अपनेपन की चहक
बृद्धों की कड़क
और पित्रों की तड़प होती है
जो श्रद्धा की पाती मांगते हैं
तर्पण के रूप में



हमें मझधार में फिर से बहा कर ले गया दरिया
हमारे घर की पुख़्ता नींव सैलाबों पे ठहरी थी

ज़रा से ज़लज़ले से टिक नहीं पाये ज़मीं पर हम
हमारी शख़्सियत कमज़़ोर दीवारों पे ठहरी थी




थोथे हो गए वेद-शास्त्र भी
धर्म ने पहना जाति चोला
नीम-करेला चढ़ा जीभ पर
जिसने भी अपना मुख खोला
पुरखे भी सिर अपना धुनते
बात भला कैसे समझाओ
सूखे हो जब कूप बावड़ी 
कैसे अपनी प्यास बुझाओ।




इन दिनों अमेरिका में हूँ ! बस शिकागो ही हवाई जहाज से गए थे और लौटे थे बाकी बच्चों के साथ शिकागो से परड्यू यूनीवर्सिटी, जहाँ मेरा बड़ा पोता कम्प्युटर साइंस में ग्रेजुएशन कर रहा है, और सेनोजे से सैनफ्रांसिस्को, सेंटा बारबारा, लॉस एन्जीलिस, लेक टाहो, सेक्रामेन्टो, सेंटा क्लारा, ओकलैंड, लिवरमोर आदि कई स्थानों की सैर सड़क मार्ग से ही कर रहे हैं ! ये ड्राइव इतनी खूबसूरत हैं कि उस सौन्दर्य को शब्दों में व्यक्त कर पाने की क्षमता अभी तक तो मुझमें विकसित नहीं हो पाई है ! कदाचित भविष्य में शायद हो जाए आप सब प्रतिष्ठित साहित्यकारों की संगति में रह कर !



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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. सारगर्भित अग्रलेख के साथ
    अप्रतिम अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सोच रही हूँ कविता क्या है? प्रतिदिन उकेरे
    जाने वाले मनोभावों की सार्थकता कितनी है?
    क्या लिखना चाहिए?
    प्रकृति,प्रेम,समाज,राजनीति आखिर कौन सा
    विषय लिखना कवि या कवियित्री
    की परिभाषा तय करता है?

    मन को छूने वाला प्रश्न आखिर कौन परिभाषित करेगा??
    सारगर्भित भूमिका के साथ

    वेहतरीन लिंकों का संयोजन

    जवाब देंहटाएं
  3. “कविता वही सार्थक है जो अपने शब्दों और
    भावों को पाठक के मन से जोड़ती है।”
    कविता की परिभाषा को बहुत सुन्दरता से आपने परिभाषित किया है श्वेता जी !
    वैचारिकी मंथन को प्रेरित करती भूमिका के साथ सुन्दर सूत्रों के सुसज्जित प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदयतल से हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. कविता सुषुप्त हृदय में चेतना जगा दे, समाज का प्रतिबिम्ब दिखा दे, कविता में वह शक्ति है कि मनुष्य को उसका कर्तव्य बोध करा दे। लेकिन बिड़बना है कि कविता के मर्म को स्पर्श करने वाला वर्ग सीमित है।यही मेरी अपनी राय है। बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान के लिए सहृदय आभार प्रिय श्वेता जी सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. आज बहुत दिनों के बाद अपनी पोस्ट 'हलचल' पर देख कर हार्दिक प्रसन्नता हो रही है ! आपका दिल से आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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