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गुरुवार, 22 अगस्त 2024

4225...भर भर के जल लाये बादल...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया सुधा देवराणी जी की रचना से।  

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

काली घटा 

सांप्रदायिक हिंसा, पैशाचिक कुकर्म अब यह सब समाज में बढ़ती घटनाओं पर क्या हमलोग मौन होकर अपने-अपने दायित्व को पूरा करते रहें! चुप रहने वाले अक्सर अनजाने ही सही अपराधी का हौसला बन जाते हैं, चुप्पी का सन्नाटा एक तरह से अपराधियों का साथ देना ही तो हुआ।

ग़ज़ल प्रकाशन

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कविताएँ

मौन की आवाज़कोरोना पर मेरी कविताओं का तीसरा संकलन है. पहला संकलन जमी हुई ख़ामोशीऔर दूसरा पत्तों पर अटकी बूँदेंके नाम से प्रकाशित हो चुका है. आशा है कि इन दो संकलनों की तरह यह संकलन भी आपको अच्छा लगेगा. इसे 49 रुपए में ख़रीदा जा सकता है।

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पावस के कजरारे बादल

घिरी घटा गहराये बादल,

भर भर के जल लाये बादल,

तीव्र ताप से तपी धरा पर,

मधुर सुधा बरसाये बादल।

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मीठे में कविता- जिक्रे यार चले

'ये जिस गुलमोहर के नीचे हम बैठे हैं न, उसके जन्मदिन पर मैंने उसे तोहफे में दिया था और हम दोनों ने इसे यहाँ रोपा था। मैं जानती हूँ वह भी कभी इस शहर में आता होगा तो कुछ पल इसके नीचे जरूर बैठता होगा...'अब कहो कि स्मृतियाँ सांस नहीं लेतीं...

प्रिय पल्लवी, ये लिखते मेरे रोएँ खड़े हैं और आँखें नम हैं कि तुमने ये सुंदर किस्से हमें दिये। आओ न गले लग जाते हैं, चाय तो श्रुति ही बनाएगी...है न?

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव  


5 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अंक। मेरी पुस्तक के बारे में सूचना शामिल करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्कृष्ट रचनाओं के साथ लाजवाब प्रस्तुति। मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.रविन्द्र जी !
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं

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