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गुरुवार, 8 अगस्त 2024

4211...जो बिकास को चका चलो सो पेड़ेंई कट गए ...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।

गुरुवारीय अंक में आज पढ़िए चुनिंदा पाँच रचनाएँ-

बुंदेली ग़ज़ल | उन्ने कई थी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

जो बिकास को चका चलो सो पेड़ेंई कट गए 
सुख फर जैहें - हमने नईं, जे उन्ने कई थी।
मैंगाई ने कमर तोड़ दई, रीती पिकियां
घर भर जैहें - हमने नईं, जे उन्ने कई थी।

बरसती बूंदों का राग

ये कैसी अनजानी सी पीड़ा है

कि पहाड़ पर बारिश से बजती टीन की छत भी जैसे

किसी अनदेखे को पुकारती लगती है

मेरे लिए कोई है क्या इस दुनिया में

जो यूं बारिश को आत्मा से महसूस करता होगा...

*****

रहस्य

गर्मियों में एक दिन रात में छत पर सोते हुए साफ़ आकाश में जहाँ असंख्य तारों की झिलमिलाहट थी हल्के से बादलों की लकीर की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए माँ ने कहा-

देख! आकाश गंगा!

अच्छा जी! आपकी किताबों में आकाश गंगा भी होती हैं?”

मेरी बात को अनसुना करते हुए उन्होंने कहा-

उधर देख! वो सप्तऋषि मण्डल और वो ध्रुव तारा।

-“अच्छा तो यह बीच का हिस्सा जहाँ तारे नहीं दिखायी दे रहे ब्लैकहॉलहै। मैंने आँखों से दिखाई देने वाले उस छोटे से आकाश के हिस्से में मानो पूरे अन्तरिक्ष को नापने की ठान ली थी।

*****

जाओ दफा हो जाओ...स्मृतियों

मैं सच में सोच रही हूँ मैंने बिलकुल ठीक समय पर इस किताब को पढ़ा, पहले पढ़ती तो शायद संभाल न पाती. जिस दिन किताब का अंतिम हिस्सा पढ़ा. देर तक आसमान देखती रही। कुछ ही देर में बारिश उतर आई। मैंने हमेशा की तरह हथेली बढ़ा दी। वही हथेली जिसमें मैंने मांडू नहीं देखा लगातार रहती है। संज्ञा को बस इतना लिखा, पूरी हो गयी किताब...अनकहे शब्दों को पढ़ने में माहिर संज्ञा ने अपनी चुप की हथेली मेरी चुप पलकों पर रख दी।

*****

संगिनी | Prakash Sah

अपने नाम के साथ तुम्हें बांध नहीं पाया,

हाँ मालूम है तुम्हें बंधना पसंद नहीं।

तुम्हारी ज़ुल्फ़ें तुम्हारी ही तरह आज़ाद है,

बस उन ज़ुल्फ़ों में खुद को उलझा नहीं पाया तो क्या हुआ!

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति आदरणीय 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. वाकई सभी रचनाएँ बेहतरीन है...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित बहुत सुन्दर संकलन ।
    संकलन में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।

    जवाब देंहटाएं

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