आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥
अर्थात्
मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, अग्नि में उष्मा हूँ, समस्त प्राणियों में वायु रूप में प्राण हूँ और तपस्वियों में तपस्या भी मैं ही हूँ।
गीता में कृष्ण ने स्वयं कहा है कि
संसार के समस्त प्राणियों में उनका अंश है फिर
जीवन में कर्म ही प्रधान है,सर्वोपरि है।
श्री कृष्ण एक ऐसा चरित्र है जो बाल,युवा,वृद्ध,स्त्री पुरुष सभी के लिए आनंदकारक हैं।
कृष्ण का अवतरण अंतःकरण के ज्ञान चक्षुओं को खोलकर प्रकाश फैलाने के लिए हुआ है।
भगवत गीता में निहित उपदेश ज्ञान,भक्ति,अध्यात्म,सामाजिक,वैज्ञानिक,राजनीति और दर्शन का निचोड़ है जो जीवन में निराशा और नकारात्मकता को दूर कर सद्कर्म और सकारात्मकता की ज्योति जगाता है।
*बिना फल की इच्छा किये कर्म किये जा।
*मानव तन एक वस्त्र मात्र है आत्मा अजर-अमर है।
*क्रोध सही गलत सब भुलाकर बस भ्रम पैदा करता है। हमें क्रोध से बचना चाहिए।
*जीवन में किसी भी प्रकार की अति से बचना चाहिए।
*स्वार्थ शीशे में पड़ी धूल की तरह जिसमें व्यक्ति अपना प्रतिबिंब नहीं देख पाता।
*आज या कल की चिंता किये बिना परमात्मा पर को सर्वस्व समर्पित कर चिंता मुक्त हो जायें।
*मृत्यु का भय न करें।
और भी ऐसे अनगिनत प्रेरक और सार्थक संदेश है
कर्म के संबंध में श्रीकृष्ण के बेजोड़ विचार अनुकरणीय है। भटकों को राह दिखाता उनका जीवन चरित्र उस दीपक के समान है जिसकी रोशनी से सामाजिक चरित्र के दशा और दिशा में कल्याणकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
एकमात्र सत्य यही है कि
कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है।
आज की रचनाएँ-
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पीताम्बर कण्ठ वैजयन्ती स्वर्ण कुंडल शोभितम्
अधर मधुर मुरली हस्त विराजे चक्र सुदर्शनम्
काली नागनथनम कंसकाल कवलितकम्
धरा शुचि संकल्पम प्रभुदहन पापनाशकम्
धरा अति सुशोभितम् भिनन्दनम् बिन्दम् ।
मन कहानियों का प्रेमी है
गढ़ लेता है नायक स्वयं ही
खलनायक भी चुनता है
फिर क्या हुआ ?
यही चलाता है उसे
सच से घबराता है !
लेकिन कृष्ण जैसा सखा है उसके साथ - क्षीण होता मनोबल साधने को ,विश्वास दिलाने को कि तुम मन-वचन-कर्म से अपने कर्तव्य-पथ पर डटी रहो तो कोई बाधा सामने नहीं टिकेगी .तुम उन सबसे बीस ही रहोगी क्योंकि तुम्हारी बुद्धि, बँधी नहीं है ,विवेक जाग्रत है, निस्स्वार्थ भावनायें और निर्द्वंद्व मन है . पाञ्चाली के विषम जीवन की सांत्वना बने कृष्ण, उसे प्रेरित करते हुए आश्वस्त करते हैं कि दुख और मनस्ताप कितना ही झेलना पड़े , अंततः गरिमा और यश की भागिनी तुम होगी.और कृष्ण-सखी के जीवन में कृष्ण के महार्घ शब्द अपनी संपूर्ण अर्थवत्ता के साथ चरितार्थ होते हैं।
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कृष्ण को शब्दों में बाँध पाना असंभव है।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
जय दीननाथा भगवान योगेश्वर श्रीकृष्ण नटवर लाल की । सुन्दर भगवान की भक्ति में सरोवार सरोवार अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक.आभार
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग साहित्य सुरभि पर प्रकाशित पोस्ट को सबके सामने के लिए हार्दिक आभार
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