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सोमवार, 5 अगस्त 2024

4208 ...रावण के महलों में से एक

नमस्कार


श्रावण मास
शुक्ल पक्ष..
पहला सोमवार
आप सभी के लिए
शुभ फलदायी हो

 चलें रचनाओं की ओर



मैं जीवन के अन्तिम पल तक
नतमस्तक हूं तुम्हारे लिए
मैं प्रेम की रीत निभाऊंगी,
बस मन से तुम मेरे रहना..
नियति ने बेशक हमें दूर किया,
पर सांसें सब तुम्हारी हैं,
मेरी अंतिम अभिलाषा,





कहने को हम सभी लोग हैं एक ही
शहर के बाशिन्दे, ये और बात
है कि दिल से मिलने की
कोशिश नहीं होती,
न जाने कितने
मोड़ से
मिलता है ये एक अदद रास्ता, नीले




अभी एक और आवाज की स्मृति शामिल है इसमें
दूर फैले पहाड़ों पर होती हुई बारिश देखने
दो और आँखें कभी शामिल थीं

पत्तों से छनकर आती बूंदों की आवाजें सुनो-
कहा था उसी ने





मुख्यधारा की इतिहास की किताबों में कुछ मौलिक रूप से गलत है जो प्राचीन लोगों को 
छेनी और हथौड़े से चट्टानों को काटने की बात करती है। लेकिन यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं है, 
हमारे आंखों के सामने वास्तविक सबूत हैं।
क्या यह अद्भुत नहीं है?





अपने बल्द की मार खाया हुआ जो था,
किसी और पर मड़ने पड़ने की थी नहीं।

जज्बात तो फायदे के लग रहे थे अडिग
पर जो बात थी वो कायदे की थी नहीं।




भट्ठे पर ईंट पाथती छुटकी
सहती रहती ताने अक्सर है
धुआँ नहीं उठता अब झुग्गी में
पाँच किलो गैस का सिलेंडर है
मुफलिस की राह भी सँभलती है
बात यही महलों को खलती है।

आज  बस
सादर

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