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शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

4225....किसी निर्जन द्वीप पर

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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कभी-कभी समझ नहीं आता कि भूमिका क्या लिखें...।
क़लम के इस मौन को आत्ममंथन की प्रक्रिया समझ सकते हैं या फिर आहत करने वाले घटनाक्रमों पर
भावों की स्तब्धता।

आज की रचनाएँ-


पिता मेरे होने के जैविक सूत्रधार थे
कभी कभी वे अँग्रेजी के शब्द ' एंकर' सरीखे भी थे
मगर जीवन के सभी तूफानों में
वे बंधे रह गए अपनी जगह
जीवन द्वारा जब भी किसी निर्जन द्वीप पर
अकेला पटका गया मैं
तब याद आई पिता की अँग्रेजी वाली भूमिका
जिसे याद कर हिंदी में लिखी मैंने कविता।




बड़ा मुश्किल है जीना अब, किसी के  साथ रहना भी।
यहाँ हर शख़्स खुद में ही, बहुत वीरान रहता है।।

उठा आवाज़ तू  खुलकर  , बदल दे  दश्त के मंजर।
सियासत की फज़ा में रूह , जो तूफ़ान रहता है।।



नियति मेरी बस यही
तुम मुझे बचा नहीं पाओगी,
ढाल मेरी बन नहीं पाओगी,
चिंता में जियोगी मर-मर कर,
विष पियोगी भर-भर कर,
मसल देना अपने हाथों से 
मिलेगी तसल्ली तुम्हें ...!!





पुरस्कार, सम्मान लेने के लिए स्वयं प्रबंध करना होता है। “ - समझाने की गरज से कवि उत्थानक बोले - “ जैसे आपको अखिल भारतीय कवि शिरोमणि का पुरस्कार लेना हो तो सारी व्यवस्था हमारी होगी। “

हतप्रभ आहत सुन रहे थे।

“ आपको अंगवस्त्रम के साथ एक लाख का चेक भेंट किया जाएगा, जो वस्तुतः आपका ही होगा। “ - ठठाकर हँसते हुए उत्थानक बोले - “ वह बाद में आप हमें वापस देंगे। व्यवस्था का सारा खर्च और मेरा कमीशन उसी में से तो होगा। “





“मिस्टर सुरेश पहेलियां मत बुझाओ। मैं तुम्हारी सब चाले समझता हूं। आग लगाकर उस पर पानी डालने का ढोंग करते हो? और फिर बड़ी बेशर्मी से आकर मुझसे कह रहे होे कि क्या हुआ। तू और तेरा बेटा धोखेबाज हो। मैं चाहूं तो तुम दोनों को सजा अभी दिला दूं, लेकिन मेरे जिगर के टुकड़े ने तुम जैसे इंसान के बेटे के साथ रहना मंजूर किया है तो इसलिए चुप हूं।“ जगत बाबू ने अपने भड़ास निकाली।

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आप सभी का आभार
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अंक
    सुंदर अग्रलेख
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका बहुत शुक्रिया मेरी रचना को यहां स्थान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. ज़माने की सियासत और बेटी का दर्द, वाकई बेहतरीन रचना है। अन्य रचनाएँ भी सार्थक है।
    सभी को शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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