हाज़िर हूँ मैं आपके बीच आज पाँच लिंकों का आनंद ले कर ....प्रयास तो है कि आप सभी आनंदित हों ...... लेकिन फिर भी कुछ भूल चूक हो भी जाती है । अपने पाठकों से इतनी ही विनती है कि हर चर्चाकार काफी मेहनत से लिंक्स को अपनी चर्चा में लाता है , केवल उसका यही ध्येय होता है कि आप लोगों तक वो अच्छे से अच्छे लेखन को पहुँचा सके । अपनी तरफ से अपनी पसंद के साथ पाठकों की पसंद का भी ख्याल उसके ज़ेहन में होता है , तो पाठकों की जो प्रतिक्रियाएं आती हैं उसी के आधार पर लिंक्स का चयन करने में चर्चाकार को मदद भी मिल जाती है ।
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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सोमवार, 5 अप्रैल 2021
2089 ........ प्रेम के गणित में .... बदलते दृष्टिकोण
37 टिप्पणियां:
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प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।
आभार ,आभार, और न जाने कितने आभार..
जवाब देंहटाएंनमन है आपके समीक्षक दृष्टिकोण को..
श्वेता कहा करती थी हम अपना ध्यान मात्र काव्य विधा पर ही केंद्रित रखते हैं, क्यों? और विस्तृत नहीं करूँगी
कल ही मंजू दीदी की लघुकथा को फेसबुक में साझा की थी, और वो आज इस अंक में भी है.. पता नहीं क्यों साहस नहीं है मुझमें, हम चर्चाकर पाठकों को काव्यों से अवगत कराते रहते हैं, पर गद्य वाकई अछूता सा रह जाता है, अभी कुछ वर्षों से लघुकथाएं लिखी जा रही हैं, आदरणीय विभा दीदी भी लगता है दृढ़प्रतिज्ञ हैं कि लघुकथाएं कथाएं लिक्खी जाएं और पढ़ी/पढ़वाई जाए.. लघुकथाएं अक्सर हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी के अवलोकन से ही जन्म लेती है,
आभार दीदी..मन और लिखने को कह रहा है पर विवश हूँ,एक उँगली से टाइपिंग और छोटी स्क्रीन बाधक बन रही है..
पुनः आभार..
सादर नमन..
प्रिय यशोदा ,
हटाएंमुझे ये आभार के भार से तो थोड़ा बचा लो ।एक ही मंच पर हैं तो जो कुछ यहाँ लिखा जाता है वो सब साझा ही होता है । विभाजी अधिकांश अपनी चर्चा में लेख के ही लिंक लाती हैं , तो ऐसा नाहीनभाई कि गद्य विधा पर ध्यान नहीं दिया जाता , हाँ मुझे लगता है कि नए लेखों के लिंक्स पर हमें ध्यान देना होगा ।
तुमको चर्चा अच्छी लगी ,इसके लिए शुक्रिया ।
एक शानदार अंक
जवाब देंहटाएंभार्गव दीदी के ब्लॉग में नयी रचना नहीं है
बहुत सारी लघुकथा कापी कर व्हाट्सएप में प्रवेश पा चुकी है,कुछ स्वरूप बदल कर पोस्ट की गई थी
यहाँ पर पढ़ी तो लगा की मूल रचना को तोड़-मरोड़ कर पुनः प्रकाशित करने की आदत से लाचार हैं लोग,
कविताओं के साथ तोड़-मरोड़ नहीं कर सकते लोग कारण भाव व अर्थ बदल जाते हैं..
सादर नमन..
प्रिय दिव्या ,
हटाएंतुमने सही कहा कि ये उनकी नई पोस्ट नहीं है , लेकिन मुझे लगा कि जो लघु कथाएं पढ़ना चाहेंगे वो इस ब्लॉग तक पहुंच सकता है ।उनके प्रोफाइल मेन्वेक और ब्लॉग है धूप छाँव , उसे भी देखा जा सकता है ।वैसे व्हाट्सप्प पर तो बहुत कुछ लिखा घूमता रहता है ....कविताएँ भी ।
शुक्रिया
चुम्बन..
जवाब देंहटाएंएक शिक्षाप्रद कथा..
माता-पिता को बच्चों के सामने
सयंमित व्यवहार करना चाहिए
आभार.. ध्यान रक्खूँगी..
सादर..
संगीता जी इतने सुंदर और सार्थक लिंकों के साथ मुझे भी इस मंच पर स्थान देने के लिए और स्नेहपूर्ण टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसादर
मंजु
मंजु जी ,
हटाएंआपने यहाँ आ कर हौसला बढ़ाया , इसके लिए शुक्रिया । आपका ब्लॉग वर्डप्रेस पर है तो अक्सर टिप्पणीकर्ता को कठिनाई होती है ,अलग पासवर्ड बनाना पड़ जाता है । हो सकता है पढा तो गया होगा लेकिन टिप्पणियाँ नहीं हो पाई होंगी ।
सादर
सहेजने योग्य प्रस्तुति,गर्मी की दुपहरी और सार्थक लिंकों का चयन..मतलब दिन बन गया। अभी कुछ पढ़ी हूँ पर टिप्पणी करने से रूक नहीं पायी।बड़ी शिद्दत से आपकी प्रस्तुतिकरण के अनोखे अंदाज का इंतजार करते हैं।
जवाब देंहटाएंआभार।
प्रिय पम्मी ,
हटाएंआपको लिंक्स पसंद आये ,इसले लिए तहेदिल से शुक्रिया । यूँ मैं कुछ विशेष तो चर्चा नहीं ही करती हूँ , जैसे सबके लिंक्स लगे होते हैं वैसे ही मेरे भी होते हैं । बल्कि मैंने तो देखा है कि आप लोग चर्चा का प्रारम्भ बहुत सुंदर तरीके से ,कुछ विशेष लिख कर करते हैं । सभी चर्चाकार इसके लिए बधाई के पात्र हैं ।
जी दी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंसही कहा दी हम सभी अपनी प्रस्तुतियों को सबसे बेहतर तरीके से पाठकों के समक्ष रखते हैं ताकि रचनाओं और रचनाकारों का उत्साह वर्धन हो।
रेणु दी के कथन से सहमत हूँ दरअसल दी समयाभाव या रूचि के अभाव में आत्मकेंद्रित होता लेखन या अन्य कारण हो सकते हैं गद्य रचनाओं को पाठकों की कमी से जूझना पड़ता है। परंतु हमें अपना प्रयास करते रहनाहै।
आपकी सहज शैली में लिखी भूमिका विमर्श के लिए आमंत्रित कर रही है।
सभी सूत्र सराहनीय है सुधा जी की कहानी में बच्चों का व्यवहार बड़ों के आचरण का प्रतिबिंब है संदेश मिला।
मंजू जी से विनम्रतापूर्वक क्षमा सहित कहूँगी बहुओं का मान बढ़ाने में बेटियों की मानसिकता पर प्रश्न चिह्न लगाना अखर गया वैसे कहानी का संदेश स्पष्ट समझ आ रहा आदरणीया मंजू जी की लघुकथा पर प्रतिक्रिया न लिख पायी कुछ टेक्निकल प्राब्लम है।
ज्योति खरे सर की अभिव्यक्ति सदैव बहुत सारे भाव.समेटे हुए पाठकों को बाँधती है।
अनिता सुधीर जी की रचना की कोमलता और सरलता ने प्रभावित किया।
मंटू जी की रोचक कविता अच्छी लगी।
आपके द्वारा संकलित एक बेहतरीन और शानदार अंक पढ़कर आनंद आया।
आज के अंक ने बिल्कुल निराश नहीं किया अगले सोमवार की प्रतीक्षा है:)
सादर प्रणाम दी।
जी, श्वेता जी 😍😍,
हटाएंसंबोधन से इतर .... तुमने सब लिंक्स पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त की है , इसके लिए आभार नहीं स्नेह कहूँगी । इस मंच पर सभी चर्चाकार पूरी मेहनत से और सभी की रुचि का आदर करते हुए चर्चा लगाते हैं इसमें दो राय नहीं है । सभी चर्चाकारों को बधाई ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी, आपकी हर प्रस्तुति अलग हटकर होती है। बहुत अच्छी प्रस्तुति है इस बार की भी। आज के लिंकों के सभी लेखकों को पहले भी पढ़ती रही हूँ। केवल मंजू मिश्रा जी के ब्लॉग पर पहली बार पहुँचना हुआ। उनकी लघुकथा बदलते 'दृष्टिकोण' बहुत पसंद आई। आदरणीया सुधा भार्गव जी के ब्लॉग्स भी पढ़े हैं और उनके लेखन की तो मैं मुरीद हूँ। उनके ब्लॉग्स 'बचपन के गलियारे' और 'धूप-छाँव' तो विशेष तौर पर पाठक को बाँधकर रखते हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ज्योति खरे जी की कविताएँ अधिक लंबी नहीं होती लेकिन 'देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर' की तरह छोटी छोटी रचनाओं में वे कितनी गहरी बात कह जाते हैं !!!
आदरणीय मन्टू कुमार जी को भी पहले पढ़ा है। आज शामिल की गई उनकी रचना भी मन को छू लेने वाली है। आदरणीया अनिता सुधीर जी की सरल सहज अभिव्यक्तियाँ प्रभावशाली व पठनीय होती हैं, उन्हें भी पढ़ती रही हूँ।
इतनी मेहनत से हमारे लिए पठनीय प्रस्तुतियाँ बनाने और नए पुराने ब्लॉगर्स की प्रतिभा से परिचित कराने के लिए हृदय से धन्यवाद। सस्नेह।
प्रिय मीना ,
हटाएंकितनी शिद्दत से तुमने मेरी इस प्रस्तुति को पढा और सभी लिंक्स पर जा कर पढ़ा और उन पर अपनी विशेष प्रतिक्रिया दी इसके लिए हृदय से शुक्रिया ।
आप लोगों की प्रतिक्रिया ही हमें हौसला देती हैं ।
मीना जी धन्यवाद। 🙏
हटाएंआदरणीय दीदी आपकी श्रमसाध्य प्रस्तुति को नमन है,अच्छी कहानियां,एवम अच्छी कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला,बहुत बहुत सरहनीय है सभी । सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जिज्ञासा , आप सभी पाठक वृन्द की टिप्पणियों के मुझे इंतज़ार रहता है , क्यों कि उसी से हम आगे की योजना तैयार करते हैं ।आपको प्रस्तुति पसंद आयी , शुक्रिया ।
हटाएंआपकी अभिव्यक्ति-प्रस्तुति बेहद सराहनीय है
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भारती जी , आपके ब्लॉग से अब जुड़ चुके हैं । आप तक भी पहुंचेंगे ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीया मैम, सदा की तरह अत्यंत सुंदर एवं सशक्त और विविधताओं से परिपूर्ण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदोनों लघुकथाएँ बहुत ही सामायिक और शिक्षाप्रद हैं। हर एक कविता का आनंद भी अनूठा है।चुम्बन जैसी लघु-कथाएँ आज की पीढ़ी के बच्चों के जीवन में घट रहीँ घटनाओं को दर्शाती हैं और माता-पिता को सचेत करतीं हैं। बदलते दृष्टिकोण में एक सशक्त सन्देश तो है पर यदि बहु और बेटी दोनों को समान दिखाया जाए तो अधिक अच्छा लगे। प्रेम का गणित, बचपन की गलियां और दुनिया बहुत संस्कारी है, तीनों रचनाएँ सुंदर व अनंदकर है।
हृदय से आभार इस अत्यंत सुंदर और हट कर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम।
प्रिय अनंता ,
जवाब देंहटाएंआज ,अभी आपके ब्लॉग से जुड़ कर आ रही हूँ । आप नियमित पाठिका हैं इस मंच की तो मुझे लगा आपका ब्लॉग शायद मेरी लिस्ट में नहीं है ।खैर आब आप मेरी पकड़ में हैं । वैसे फरवरी के बाद से कोई नई पोस्ट आपने नहीं लगाई है ।परिहास सदा इतना सुख दे,
किसी रोगी को स्वस्थ करे।
किसी की चिंता हरण करे,
किसी का मन आश्वस्त करे।
कितने सुंदर विचार हैं । आप निरंतर लिखें ,ऐसी कामना है ।आपको लिंक्स पसंद आये इसके लिए हृदय से शुक्रिया ।
आदरणीया मैम,
हटाएंआपके इस स्नेह के लिए आभार के सभी शब्द छोटे हैं। सोंचा था कि आपके ब्लॉग पर आ कर आपसे अनुरोध करूँगी कि आप मेरे ब्लॉग पर आयें और मुझे अपना आशीष दें पर देर हो गयी जिसका मुझे खेद था और सोंचा था कि आज ये काम भी करूँगी ।
आपका स्वयँ मेरे ब्लॉग पर आना ही मेरे लिए आशीष है।
अभी कुछ नया नहीं लिख पा रही हूँ पर आप सभी बड़ों के आशीर्वाद है तो कोई न कोई प्रेरणा आ जायेगी।
एक और बात, आप मुझे "तुम"कह कर ही पुकारें, में आपसे बहुत छोटी हूँ और ऐसे अपनत्व ज़्यादा लगता है। अनेकों बार प्रणाम।
पहली बार देख रहा हूँ कि पाठकों की प्रतिक्रिया का चर्चाकार संज्ञान ले रही हैं। यह आने वाले अच्छे दिनों के शुभ संकेत हैं। आपके सुस्वादु संकलन की बधाई!!!
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी ,
हटाएंमेरा ये संकलन सुस्वादु लगा इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
(बदलते दृष्टिकोण में एक सशक्त सन्देश तो है पर यदि बहु और बेटी दोनों को समान दिखाया जाए तो अधिक अच्छा लगे) मेरा यह कहने का अर्थ किसी का निरादर करना नहीं है। आप सब मुझ से बड़े हैं, आपका निरादर करना या आपको दुख पहुंचाने का तो सपने में भी विचार नहीं कर सकती। यदि ऐसा हुआ हो तो मैं आपसे क्षमा मांगती हूँ।बस ऐसे ही अपनी इच्छा बता दी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता ,
हटाएंआप एक पाठक हैं और संवेदनशील हैं । आपकी भावनाओं का हम आदर करते हैं।कहानीकार ने अपनी सोच , और अपने अनुभव के आधार पर कुछ लिखा , उसमें संदेश जो दिया गया वो प्रमुख है , पाठकों ने पढ़ा और उन्होंने अपनी सोच और अनुभव के आधार पर प्रतिक्रिया दी । इसमें क्षमा मांगने जैसा कुछ नहीं । हमेशा जीवन में सबके साथ एक सी ही परिस्थिति हो ऐसा नहीं होता न । तो विचार भी अलग अलग हो सकते हैं । आपकी प्रतिक्रिया से दुःख पहुँचने वाली कोई बात नहीं है । निश्चिंत रहें ।
प्रिय दीदी , एक सशक्त अंक के साथ मेरी छोटी सी सलाह को प्रमुखता से प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक आभार | लेख समय की जरूरत हैं और ये चिंतन को विस्तार देते हैं | निश्चित रूप से चर्चाकार अपने आप में बहुत सक्षम हैं सब करने में पर पाठकों की भी अपेक्षाएं होते हैं यदि दोनों में सामजस्य हो तो अच्छा रहता है | अछि लघुकथाएं पढवाई आपने | बड़ों का व्यवहार बच्चों का संस्कार बन जाता है | किसी समय में - माता पिता एक खाट पर साथ साथ भी बैठने में भी संकोच करते थे | आज प्रेम की नुमाइश ने बच्चों को भी इसी रास्ते पर चलने के लिए विवश कर दिया है | एक सशक्त कथा है चुम्बन अच्छा लगा एक बढ़िया ब्लॉग पर पहुंचकर | और मंटू जी को पहले भी पढ़ा है पर आज प्रेम के विश्वास में डूबी रचना मन को छू गयी |यादों के आंगन में जीवन के अनमोल पल ढूंढती रचना के साथ ज्योति सर के प्रेम के गणित का कोई जवाब नहीं | उनकी रचनाएँ ब्लॉग जगत में अपनी अलग पहचान रखती हैं | सभी रचनाकारों को नमन और आपको शुभकामनाएं | ये महफ़िलें यूँ ही आबाद रहे यही दुआ है |सादर
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबदलते दृष्टिकोण के लिए मंजू जी को बधाई और शुभकामनाएं |
प्रिय रेणु ,
हटाएंआपको अपनी सलाह हो सकता है छोटी लगी हो लेकिन हम यहाँ हर पाठक की सलाह को संजीदगी से लेते हैं।
आपको सब रचनाओं के लिंक पसंद आये , इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ।यूँ ही सलाह देती रहा करें।
शानदार लिंक। सुधा जी की बाल कहानियां भी जबरदस्त हैं। सच है। गद्य विधाओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिखा , अमूल्य सुझाव । कभी उनकी बाल कहानियों का भी लिंक ले कर आऊंगी ।
जवाब देंहटाएंइस बार आपने गद्य विधा पर ध्यान दिया देख कर प्रसन्नता हुई. अभी दो रचना ही पढ़ी हैं चुम्बन- बहुत सही शिक्षा है आजकल अश्लील आचरण और गालियों का प्रयोग जिस तरह घरों में होता है तो बच्चे और क्या सीखेंगे ? दूसरी कहानी बदलते दृष्टिकोण- पढ़ कर हजम मुश्किल से भले हो पर क्या होती नहीं कुछ बेटियाँ ऐसी जिनका लालच ही ख़त्म नहीं होता और कई बार बहुएं बहुत ममता और स्नेह से भरा व्यवहार करती हैं ...दोनों कहानियाँ बढ़िया...बाकी पढने के बाद...😊
जवाब देंहटाएंशुक्रिया उषा जी ,
जवाब देंहटाएंबदलते दृष्टिकोण पर आपकी सटीक टिप्पणी है । कुछ बेटियों को आपत्ति हुई थी लेकिन सच तो ये है कि कहानी के पात्र इसी समाज से उठाए जाते हैं । हर बात हर एक पर लागू नहीं होती , लेकिन फिर भी ऐसी घटनाएं होती हैं समाज में तो उनको भी सामने लाना एक लेखक का दायित्त्व होता है ।
एक बार फिर शुक्रिया
ज्योति खरे जी की रचना....प्रेम का कमजोर ही होता है गणित मन में टीस भर गई तो अनीता जी की कविता ने गाँव में बिताए बचपन के दिन याद दिला दिए...खेत की माटी लपेटे खेलता फिर बचपना था।...मन्टु कुमार क्या खूब लिखते हैं-इतिहास पढने वाली लड़की से गणित पढने वाले लड़के को मुहब्बत नहीं करनी चाहिए...😊यभी लिंक बहुत बढ़िया 👌👌
जवाब देंहटाएंउषा जी ,
जवाब देंहटाएंआपने सारे लिंक पढ़ कर सभी रचनाओं के बारे में अपनी प्रतिक्रिया दी , आपको सभी दिए हुए लिंक्स पसंद आये इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।।
कमाल की भूमिका के सुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
आपको साधुवाद